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Hindi moral stories | दुष्टों से बचने का उपाय, एक कहानी

राजा युधिष्ठिर ने पूछा - पितामह! यदि कोई कमजोर मनुष्य मूर्खता से अपने पास रहने वाले किसी बलवान मनुष्य से बैर कर ले और वह क्रोध में भरकर आवे, तो उसे उस

दुष्टों से बचने का उपाय: सेमल वृक्ष और वायु का प्रसंग:

राजा युधिष्ठिर ने पूछा - पितामह! यदि कोई कमजोर मनुष्य मूर्खता से अपने पास रहने वाले किसी बलवान मनुष्य से बैर कर ले और वह क्रोध में भरकर आवे, तो उसे उससे किस प्रकार से अपना बचाव करना चाहिए ? 

भीष्म जी ने कहा -  भारत श्रेष्ठ!  इस विषय में सेमल वृक्ष और वायु का संवाद रूप पुराना इतिहास प्रसिद्ध है। मैं तुम्हें बताता हूँ, सुनो --

Hindi Moral Stories

बहुत दिन हुए,  हिमालय के ऊपर एक बहुत बड़ा सेमल का वृक्ष था। हरे - भरे पत्तों से लदी हुई उसकी शाखाएं चारों ओर फैली हुई थी। उसके नीचे अनेकों मतवाले हाथी और मृग आदि विश्राम करते थे। उसकी छाया बड़ी ही घनी थी तथा उसका घेरा चार सौ हाथ था। अनेकों व्यापारी और वन में रहने वाले तपस्वी लोग मार्ग में जाते समय उसके नीचे कुछ समय ठहरते थे।

एक दिन श्री नारद जी उधर से निकले। उन्होंने उसकी लंबी - लंबी शाखाएं और चारों ओर झूमती हुई डालियों को देखकर उसके पास जाकर कहा -  शाल्मले!  तुम बड़े रमणीय और मनोहर हो। तुम्हारी छाया के नीचे हमें बड़ा सुख मिलता है। तुम्हारी छत्रछाया में अनेकों पक्षी, मृग और गज सर्वदा निवास करते हैं।  मैं देखता हूं, तुम्हारी लंबी लंबी शाखा और सघन डालियों को वायु कभी नही तोड़ता। सो क्या पवन देव का तुम्हारे ऊपर विशेष प्रेम है अथवा वह तुम्हारा मित्र है, जिससे की इस वन में वह सदा तुम्हारी रक्षा करता है। 

अजी!  यह वायु तो जब वेग भरता तो छोटे - बड़े सभी प्रकार के वृक्षों और पर्वतशिखरों को भी अपने से हिला है।  और पिला देता है अवश्य करता है।

अवश्य, भीषण होने पर भी तुमसे बंधुत्व या मैत्री मनाने के कारण ही वायु देव सर्वदा तुम्हारी रक्षा करता रहता है।

मालूम होता है, तुम वायु के सामने अत्यंत विनम्र होकर कहते होगे कि  "मैं तो आप ही का हूं"   इसी से वह तुम्हारी रक्षा करता है।

 सेमल ने कहा -  ब्राम्हण!  वायु न मेरा मित्र है, न बन्धू है और न सुहृद् है। वह ब्रह्मा भी नहीं है, जो मेरी रक्षा करेगा, किंतु मेरे अंदर जो भीषण बल और पराक्रम है, उसके आगे वायु की शक्ति 18वें अंश के बराबर भी नहीं है।

जिस समय वह वृक्ष, पर्वत तथा दूसरी वस्तुओं को तोड़ता - फोड़ता मेरे पास पहुंचता है, उस समय मैं अपने पराक्रम से उसकी गति रोक देता हूं ।

नारद जी ने कहा -  शाल्मले! इस विषय में तुम्हारी दृष्टि नि:सन्देह ठीक नहीं है। संसार में वायु के समान कोई भी बलवान नहीं है। उसकी बराबरी तो इंद्र, यम, कुबेर और वरुण भी नहीं कर सकते, फिर तुम्हारी तो बात ही क्या है ? संसार में जीव जितनी भी  चेष्टाएं करते हैं, उन सब का हेतु प्राणप्रद वायु ही है। वास्तव में तुम बड़े ही सारहीन और दुर्बुद्धि हो और केवल बहुत सी बातें बनाना जानते हो। इसी से ऐसा झूठ बोल रहे हो।

चंदन, साल, देवदारू, बेंत और धन्वन आदि जो तुमसे अधिक बलवान वृक्ष हैं , वे भी वायु का ऐसा निरादर नहीं करते हैं।  वे अपने और वायु के बल को अच्छी तरह जानते हैं। इसी से वे वायु को सदा सिर झुकाते हैं।  तुम जो वायु के अनंत बल को नहीं जानते, यह तुम्हारा मोह ही है। 

हे सेमल! तो मैं अभी वायु के पास जाकर तुम्हारी यह घमंड भरी बातें सुनाता हूं ।

भीष्मजी बोले -  राजन!  सेमल को इस प्रकार डपटकर ब्रह्मवेत्ताओं में श्रेष्ठ नारद ने वायु देव के पास आकर उसकी सब बातें सुना दीं। इससे वायुदेव को बड़ा क्रोध हुआ और वह उस सेमल के पास जाकर कहने लगा, " शाल्मले ! जिस समय नारद जी तेरे पास होकर निकले थे , उस समय क्या तूने उनसे मेरी निंदा की थी ?  तू नहीं जानता,  मैं साक्षात वायुदेव हूँ। तुझे तो मैं अपनी शक्ति का परिचय कराऊंगा।

ब्रह्मा जी ने प्रजा की उत्पत्ति करते समय तेरी छाया में विश्राम किया था; इसी से मैं अब तक तुझपर कृपा करता आ रहा था और तू मेरी झपट से बचा रहता था,  परंतु अब तो तु एक साधारण जीव की भांति व्यवहार करने लगा ।तुझे तो मैं सुबह में अपना बल दिखाऊॅंगा, जिससे फिर कभी तुझे मेरा तिरस्कार करने का साहस ना हो ।

वायु के इस प्रकार कहने पर सेमल ने हंसकर कहा-  पवन देव! यदि तुम मुझ पर कुपित हो तो अवश्य अपना रूप दिखलाना। देखें,  क्रोध करके तुम मेरा क्या कर लेते हो। मैं तुमसे बल में कहीं बढ़ - चढ़कर हूं,  इसलिए तुमसे जरा भी नहीं डर सकता।

अजी!  अधिक बलवान तो वही होते हैं जिनके पास बुद्धिबल होता है। जिनमें केवल शारीरिक बल होता है उन्हें वास्तविक बलवान नहीं माना जाता। 

इतने ही में रात आ गई। सेमल ने अपने को वायु के समान बलवान न देखकर सोचा,  'मैंने नारद से जो कुछ कहा, वह ठीक नहीं था। बल में वायु के सामने मैं कुछ भी नहीं हूँ । इसमें संदेह नहीं है, मैं तो दूसरे कई वृक्षों से भी दुर्बल हूं, परंतु बुद्धि में मेरे समान उनमें से कोई नहीं है। अतः मैं बुद्धि का आश्रय लेकर ही वायु के भय से छूटूंगा।

 यदि दूसरे वृक्ष भी इसी प्रकार बुद्धि का आश्रय लेकर वन में रहेंगे तो नि:संदेह उन्हें कुपित वायु से किसी प्रकार की क्षति नहीं हो सकेगी।'

भीष्म जी कहते हैं --   सेमल ने ऐसा विचार कर स्वयं ही अपनी शाखा, डालियाँ और फूल - पत्ते गिरा दिए तथा प्रात:काल आने वाली वायु की प्रतीक्षा करने लगा।

समय आने पर वायु क्रोध से सनसनाता और अनेकों विशाल वृक्षों को धराशाई करता हुआ वहां आया। जब उसने देखा कि वह अपनी शाखा और फूल - पत्ते गिराकर ठूॅंठ की तरह खड़ा है, तो उसका सारा क्रोध उतर गया ,और उसने मुस्कुराकर पूछा --  अरे सेमल!  मैं भी क्रोध से भरकर तुझे ऐसा ही देखना चाहता था। तेरे पुष्प, स्कन्द और शाखादि नष्ट हो गए हैं तथा अंकुर और पत्ते भी झड़ चुके हैं। अपनी कुमति से ही तू मेरे बल - पराक्रम का शिकार बन गया।

वायु की ऐसी बातें सुनकर सेमल को बड़ा संकोच हुआ और वह नारद जी की कही हुई  बातें याद करके बहुत पछताने लगा। 

Conclusion:

राजन! इस प्रकार जो व्यक्ति दुर्बल होने पर भी अपने बलवान से विरोध करता है, उस मूर्ख  को इस सेमल के समान ही दु:खी होना पड़ता है।  इसलिए कमजोर होने पर बलवानों से कभी वैर नहीं करना चाहिए; क्योंकि आग जैसे तिनकों में बैठ जाती है, उसी प्रकार बुद्धिमान की बुद्धि उसके विनाश का कोई उपाय निकाल लेती है।

वस्तुतः बुद्धि और बल के समान मनुष्य के पास कोई दूसरी अहम चीज नहीं है , इसलिए समर्थ पुरुष को बालक, मूर्ख, अंधे,  बहरे और अपने से विशेष बलवान के व्यवहार को सर्वदा समझते रहना चाहिए।


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