मेहरौली महाराज चंद्र का स्तम्भ लेख
प्रिय मित्रों ! मैं इस लेख में महरौली में महाराज चंद्र के स्तंभ लेख का विस्तृत वर्णन कर रहा हूं। कृपया ध्यानपूर्वक आप इस लेख को पूरा पढ़ें और समझें।
मेहरौली स्तम्भ लेख : परिचय
दिल्ली (Delhi) में क़ुतुब-मीनार के निकट एक विशाल स्तम्भ स्थित है। यह अपने आप में प्राचीन भारतीय धातुकर्म की पराकाष्ठा और प्रमाण है। यह कथित रूप से राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा निर्माण कराया गया, किन्तु कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह सम्भवतः 912 ई* पू* में निर्माण किया गया है। इस स्तम्भ की उँचाई लगभग 7 मीटर है और यह पहले हिन्दू मन्दिर का एक भाग हुआ करता था। 13वीं सदी में आक्रमणकारी कुतुबुद्दीन ऐबक ने मन्दिर को नष्ट करके क़ुतुब मीनार बनवाया। आज वर्तमान युग में कुतुब मीनार के निचले हिस्से पर भी अनेक हिंदू प्रमाण देखने को मिलते हैं, जो यह स्पष्ट करते हैं कि कुतुब मीनार भी हिंदुओं के मन्दिर को तोड़कर ही बनाया गया है।
लौह-स्तम्भ में लोहे की मात्रा करीब 98% है और इसमें अभी तक जंग नहीं लगा है।लगभग 16०० से अधिक वर्षों से यह खुले आसमान के नीचे कई वर्षों से सभी मौसम में अविचल खड़ा है। इतने वर्षों में आज तक उसमें जंग नहीं लगी। यह बात दुनिया के लिए आश्चर्य का विषय भी है। जहां तक इस स्तंभ के इतिहास का प्रश्न है, यह चौथी सदी में बना था। इस स्तम्भ पर संस्कृत भाषा में लेख खुदा हुआ है। यह स्तंभ ध्वज स्तंभ के रूप में खड़ा किया गया था। यह राजा चन्द्र द्वारा मथुरा में विष्णु पहाड़ी पर निर्मित भगवान विष्णु के मंदिर के सामने इसे ध्वज स्तंभ के रूप में खड़ा किया गया था। इस पर पक्षीराज गरुड़ की मूर्ती स्थापित करने हेतु इसे बनाया गया । अत: इसे गरुड़ स्तंभ भी कहते हैं।
1050 ईसा में यह स्तंभ दिल्ली के संस्थापक अनंगपाल द्वारा लाया गया। इस स्तंभ की ऊँचाई 735.5 से.मी. है। इसमें से 50 सेमी. नीचे है। 45 से.मी. कक चारों ओर पत्थर का प्लेटफार्म है। इस स्तंभ का घेरा 41.6 से.मी. नीचे है तथा 30.4से.मी. ऊपर है। इसके ऊपर गरुड़ की मूर्ति पहले कभी रही होगी। स्तंभ का कुल वजन 6096 कि.ग्रा. है। 1961 ईसा में इसके रासायनिक परीक्षण द्वारा पता लगा कि यह स्तंभ आश्चर्यजनक रूप से शुद्ध इस्पात का बना है तथा आज के इस्पात की तुलना में इसमें कार्बन की मात्रा काफी कम है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मुख्य रसायन शास्त्री डॉ॰ बी.बी. लाल इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इस स्तंभ का निर्माण गर्म लोहे के 20-30 किलो के टुकड़ों को जोड़ने से हुआ है। माना जाता है कि 120 कारीगरों ने कई दिनों के परिश्रम से इस स्तम्भ का निर्माण किया। आज से 1600 वर्ष पूर्व गर्म लोहे के टुकड़ों को जोड़ने की तकनीक भी आश्चर्य का विषय है। क्योंकि सम्पूर्ण लौह स्तम्भ में एक भी जोड़ कहीं भी दिखाई नहीं देता है। 1600 वर्षों से खुले में रहने के बाद भी उसके वैसे के वैसे बने रहने (जंग न लगने) की स्थिति ने विशेषज्ञों को आश्चर्यचकित किया है। इसमें फास्फोरस की अधिक मात्रा व सल्फर तथा मैंगनीज की मात्रा कम है। स्लग की अधिक मात्रा अकेले तथा सामूहिक रूप से जंग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा देते हैं। इसके अतिरिक्त 50 से 600 माइक्रोन मोटी (एक माइक्रोन = १ मि.मी. का एक हजारवां हिस्सा) आक्साइड की परत भी इस लौह स्तंभ को जंग से बचाती है। यह लौह स्तंभ लगभग 1600 वर्षों से भी अधिक समय से खुले आसमान के नीचे खड़ा है और इतने वर्षों बाद भी इसमें जंग नहीं लगा है। यह बात दुनियां भर के लिए आश्चर्य का विषय है।लौह स्तन्भ में वर्णित राजा चन्द्र की पहचान (Identity of King Chandra of Iron Pillor of Mehrauli)
इतिहासकारों ने महरौली के लौह स्तंभ को सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय के काल में रखा है और लौह स्तंभ में वर्णित राजा चंद्र को चंद्रगुप्त द्वितीय से जोड़ दिया है।
1. कुछ इतिहासकार मानते है कि उस लौह स्तंभ में जो लेख है वह गुप्त लेखो की शैली का है और कुछ कहते है कि चंद्रगुप्त द्वितीय के धनुर्धारी सिक्को में एक स्तंभ नज़र आता है जिस पर गरुड़ है।
2. लौह स्तंभ के अनुसार राजा चंद्र ने वंग देश को हराया था और सप्त सिंधु नदियों के मुहाने पर वह्लिको को हराया था।
3. जेम्स फेर्गुससन जैसे पश्चिमी इतिहासकार मानते है कि यह लौह स्तंभ गुप्त वंश के चंद्रगुप्त द्वितीय का है।
4. कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह स्तंभ सम्राट अशोक का है जो उन्होंने अपने दादा चंद्रगुप्त मौर्य की याद में बनवाया था।
5. जे.ऍफ़.फ्लीट के अनुसार वह गुप्त वंश का चंद्रगुप्त प्रथम है ,पर फ्लीट मानते है की यह लेख समुद्रगुप्त के इलाहाबाद स्तंभ और कुमारगुप्त प्रथम के बिल्साद लेख से मिलता जुलता है ।
6. जे.ऍफ़ फ्लीट यह भी कहते है की शायद यह स्तंभ हुन नरेश मिहिरकुल के छोटे भाई चंद्र का होगा और इस बात का उल्लेख युआन च्वांग करते हुए कहते है की यह स्तंभ मिहिरपुर में है ।
7. समुद्रगुप्त के आर्यवर्त विजय से यह साफ़ होता है की उत्तर बंगाल या वंग पहले से ही समुद्रगुप्त के साम्राज्य में था जो उसे उसके पिता चंद्रगुप्त प्रथम से मिला ,इसीलिए वंग देश को हराने की बात चंद्रगुप्त प्रथम पर सही बैठती है ।पर सप्त सिंधु पर समुद्रगुप्त ने विजय पाई थी और वह भी कुषाणों से जिसका वर्णन उसके इलाहाबाद स्तंभ पर है साथ ही सप्त सिंधु चंद्रगुप्त प्रथम के साम्राज्य में नहीं था ।
8. हरिप्रसाद शास्त्री अनुसार राजा चंद्र असल में वर्मन वंश के राजा चंद्रवर्मन है ,सिंहवर्मन का पुत्र जो पुष्करण पर राज करता था।
9. लौह स्तंभ लेख अनुसार राजा चंद्र का साम्राज्य दक्षिण सागर तक है और यह बात समुद्रगुप्त पर सही बैठती है क्योंकि उसने दक्षिण भारत में भी युद्ध किये थे जो चंद्रगुप्त प्रथम और चंद्रगुप्त द्वितीय ने नहीं किया ।
10. लेख में सप्त सिंधु के मुहाने पर वह्लिको को हराने का जिक्र है ।रामायण में इस बात का उल्लेख है की ऋषि वशिष्ठ ने अपना संदेश राजा भरत को पहोचने के लिए एक व्यक्ति को भेजा था ।
वह संदेशवाहक वह्लिक देश से होते हुए सुदामन पर्वत जाता है और विष्णुपद (लोह स्तंभ में इसी जगह स्तंभ गाड़ने का वर्णन है ) देखता है और दो नदियां विपासा और सल्माली नदी देखता है ।
11. लौह स्तम्भ के अनुसार वंग देशो के संघ के साथ राजा चंद्र का युद्ध हुआ था और संघ या गण संघ महाजनपद काल के थे जो चंद्रगुप्त मौर्य का ही काल था ।
12. . लौह स्तंभ अनुसार राजा चंद्र ने दक्षिण समुद्र तक के राज्य जीते थे और चंद्रगुप्त मौर्य भी ।13. लौह स्तंभ विष्णु को समर्पित है और चाणक्य के अर्थशास्त्र में विष्णु की पूजा का उल्लेख है अर्थात यह उसी काल का है।
14. चंद्रगुप्त मौर्य जैन नहीं बल्कि हिंदू थे और वे अपने अंतिम समय में विष्णुपद पर जाकर बस गए ।
15. कुछ इतिहासकार मानते है की हूण राजा मिहिरकुल का राज उत्तर भारत में था और विष्णुपद भी,वही से मिहिरकुल इस लौह स्तंभ को महरौली ले आया ।
मेहरौली स्तम्भ लेख
इस लौह स्तम्भ की सतह पर कई लेख और भित्ति-चित्र विद्यमान हैं, जो भिन्न-भिन्न तिथियों (काल) के हैं। इनमें से कुछ लेख स्तम्भ के उस भाग पर हैं जहाँ पर पहुँचना अपेक्षाकृत आसान है। फिर भी इनमें से कुछ का व्यवस्थित रूप से अध्ययन नहीं किया जा सका है। इस स्तम्भ पर अंकित सबसे प्राचीन लेख 'चन्द्र' नामक राजा के नाम से है जिसे प्रायः गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा लिखवाया गया माना जाता है। यह लेख 33.5 इंच लम्बा और 10.5 इंच चौड़े क्षेत्रफल में है। यह प्राचीन लेख अच्छी तरह से संरक्षित है। क्योंकि यह स्तम्भ जंग-प्रतिरोधी लोहे से बना है। किन्तु उत्कीर्णन प्रक्रिया के दौरान, लोहे का कुछ अधिक भाग कटकर दूसरे अक्षरों से मिल गया है। जिससे कुछ अक्षर गलत हो गए हैं।
मेहरौली का स्तम्भ लेख इस प्रकार है-
संस्कृत भाषा में मेहरौली स्तम्भ लेख -
1. यस्य ओद्वर्त्तयः-प्रतीपमुरसा शत्त्रुन् समेत्यागतान्, वङ्गेस्ह्वाहव वर्त्तिनोऽभिलिखिता खड्गेन कीर्त्तिर्भुजे।तीर्त्वा सप्त मुखानि येन समरे सिन्धोर्जिता वाह्लिका:, यस्याद्याप्यधिवास्यते जलनिधिर्विर्यानिलैर्दक्षिणाः।।
- 2. खिन्नस्य एव विसृज्य गां नरपतेर् ग्गामाश्रितस्यैत्राम् मूर्(त्)या कर्म्म-जितावनिं गतवतः कीर्त्(त्)या स्थितस्यक्षितौ
- शान्तस्येव महावने हुतभुजो यस्य प्रतापो महान्नधया प्युत्सृजति प्रनाशिस्त-रिपोर् य्यत्नस्य शेसह्क्षितिम्
- 3. प्राप्तेन स्व भुजार्जितां च सुचिरां च ऐकाधिराज्यं क्षितौ चन्द्राह्वेन समग्र चन्द्र सदृशीम् वक्त्र-श्रियं बिभ्राता
- तेनायं प्रनिधाय भूमिपतिना भावेव विष्नो (ष्नौ) मतिं प्राणशुर्विष्णुपदे गिरौ भगवतो विष्णौर्धिध्वजः स्थापितः
मेहरौली स्तम्भ लेख का अंग्रेजी अनुवाद-
जे एफ फ्लीट (J. F. Fleet) ने उपर्युक्त श्लोकों का 1888 में निम्नलिखित अनुवाद प्रस्तुत किया है-
1. He, on whose arm fame was inscribed by the sword, when, in battle in the Vanga countries (Bengal), he kneaded (and turned) back with (his) breast the enemies who, uniting together, came against (him); – he, by whom, having crossed in warfare the seven mouths of the (river) Sindhu, the Vahlikas were conquered; – he, by the breezes of whose prowess the southern ocean is even still perfumed;
2. He, the remnant of the great zeal of whose energy, which utterly destroyed (his) enemies, like (the remnant of the great glowing heat) of a burned-out fire in a great forest, even now leaves not the earth; though he, the king, as if wearied, has quit this earth, and has gone to the other world, moving in (bodily) from to the land (of paradise) won by (the merit of his) actions, (but) remaining on (this) earth by (the memory of his) fame;
3. By him, the king, attained sole supreme sovereignty in the world, acquired by his own arm and (enjoyed) for a very long time; (and) who, having the name of Chandra, carried a beauty of countenance like (the beauty of) the full-moon,-having in faith fixed his mind upon (the god) Vishnu, this lofty standard of the divine Vishnu was set up on the hill (called) Vishnupada.
मेहरौली स्तम्भ लेख का हिन्दी अनुवाद
1. वह, जिसकी बांह पर तलवार से कीर्ति अंकित थी, जब, वंगा देशों (बंगाल) में युद्ध में, उसने (अपने) स्तनों से उन शत्रुओं को गूंथ लिया (और मुड़ गया), जो एक साथ एकजुट होकर (उसके) खिलाफ आए थे; - वह, जिसके द्वारा, युद्ध में (नदी) सिंधु के सात मुखों को पार करके, वाह्लिकों को जीत लिया गया था; - वह, जिसके पराक्रम की हवा से दक्षिणी महासागर अभी भी सुगंधित है;
2. वह, जिसकी ऊर्जा के महान उत्साह के अवशेष, जिसने (अपने) दुश्मनों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया, जैसे (महान तेज गर्मी के अवशेष) एक महान जंगल में जली हुई आग की तरह, अब भी पृथ्वी को नहीं छोड़ता है; यद्यपि वह, राजा, जैसे कि थके हुए, इस पृथ्वी को छोड़ दिया है, और दूसरी दुनिया में चला गया है, (शारीरिक रूप से) भूमि से (स्वर्ग की) भूमि में (अपने) कर्मों से जीता, (लेकिन) शेष (इस) पृथ्वी पर (उसकी स्मृति) प्रसिद्धि;
3. उसके द्वारा, राजा ने दुनिया में एकमात्र सर्वोच्च संप्रभुता प्राप्त की, अपनी ही भुजा से प्राप्त की और (आनन्दित) बहुत लंबे समय तक; (और) जिसने, चंद्र का नाम रखते हुए, पूर्णिमा की तरह (सौंदर्य) की सुंदरता को धारण किया, - विश्वास में अपने मन को (भगवान) विष्णु पर स्थिर कर दिया, दिव्य विष्णु का यह ऊंचा मानक स्थापित किया गया था पहाड़ी पर (कहा जाता है) विष्णुपद।
निष्कर्ष :-
प्रिय पाठक गण! हमें विश्वास है कि मौर्य वंश-गुप्त वंश मेहरौली महाराज चंद्र के स्तंभ लेख के बारे में आपको विस्तृत जानकारी मिल गई और आप इस पर गंभीरता पूर्वक विचार करेंगे। यदि आपके मन में कोई भी शंका हो या आपका कोई प्रश्न हो तो कृपया कमेंट करके हमें जरूर बताएं, हम भी उस पर विचार करेंगे और यदि उत्तर देना संभव रहेगा तो हम उसका उत्तर देंगे।