माता श्रीमहालक्ष्मी जी के इस स्तोत्र की उत्पत्ति:
देवताओं और दानवों के द्वारा समुद्र मंथन के समय समुद्र से जब माता श्रीमहालक्ष्मी जी का प्रदुर्भाव हुआ, उस समय देवराज इन्द्र और समस्त देवताओं, ऋषियों आदि के द्वारा माता श्रीमहालक्ष्मी जी की यह स्तुति की गयी। इस स्तुति का वर्णन विष्णुपुराण में है।
इस स्तोत्र को पढ़ने की विधि:
किसी भी स्तोत्र या वंदना को या किसी भी पुण्य कर्म को करने के लिए पवित्र रहना अत्यंत आवश्यक होता है। अत: स्नान के बाद ही पूजा - पाठ करना उचित रहता है। इसके बाद आचमन - पवित्रीकरण -ध्यान- पंचोपचार पूजन - स्तोत्र पाठ - क्षमा प्रार्थना इत्यादि कर्म करना चाहिए।
भगवती श्रीमहालक्ष्मी जी का स्तोत्र:
नमस्ये सर्वलोकानां जननीमब्जसम्भवाम्।
श्रियमुन्निद्रपद्माक्षीं विष्णुवक्ष:स्थलस्थिताम्।।1।।
पद्मालयां पद्मकरां पद्मपत्रनिभेक्षणाम्।
वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियामहम्।।2।।
त्वं सिद्धिस्त्वं स्वधा स्वाहा सुधा त्वं लोकपावनी।
सन्ध्या रात्रि: प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती।।3।।
यज्ञविद्या महाविद्या गुह्यविद्या च शोभने ।
आत्मविद्या च देवि त्वं विमुक्तिफलदायिनी।।4।।
आन्वीक्षिकी त्रयीवार्ता दण्डनीतिस्त्वमेव च।
सौम्यासौम्यैर्जगद्रूपैस्त्वयैत्तद्यैवि पूरितम्।।5।।
का त्वन्या त्वमृते देवि सर्वयज्ञमयं वपु:।
अध्यास्ते देवदेवस्य योगिचिन्त्यं गदाभृत:।।6।।
त्वया देवि परित्यक्त्तं सकलं भुवनत्रयम्।
विनष्टप्रायमभवत्त्वयेदानीं समेधितम्।।7।।
दारा: पुत्रास्तथागारसुहृद्धान्यधनादिकम्।
भवत्येतन्महाभागे नित्यं त्वद्वीक्षणान्नृणाम्।।8।।
शरीरारोग्यमैश्वर्यमरिपक्षक्षय: सुखम्।
देवि त्वद्दृष्टिदृष्टानां पुरुषाणां न दुर्लभम्।।9।।
त्वं माता सर्वलोकानां देवदेवो हरि: पिता।
त्वयैतद्विष्णुना चाम्ब जगद् व्याप्तं चराचरम्।।10।।
मा न: कोशं तथा गोष्ठं मा गृहं मा परिच्छदम्।
मा शरीरं कलत्रं च त्यजेथा: सर्वपावनि ।।11।।
पुत्रान्मा सुहृदवर्गं मा पशून्मा विभूषणम्।
त्यजेथा मम देवस्य विष्णोर्वक्ष: स्थलालये ।।12।।
सत्त्वेन सत्यशौचाभ्यां तथा शीलादिभिर्गुणै:।
त्यज्यन्ते ते नरा: सद्य: सन्त्यक्ता ये त्वयामले।।13।।
त्वया विलोकिता: सद्य: शीलाद्यैरखिलैर्गुणै:।
कुलैश्चर्यश्च युज्यन्ते पुरुषा निर्गुणा अपि।।14।।
स श्लाघ्य: स गुणी धन्य: स कुलीन: स बुद्धिमान्।
स शूर : स च विक्रान्तो यस्त्वया देवि विक्षित:।।15।।
सद्यो वैगुण्यमायान्ति शीलाद्या: सकला गुणा:।
पराङ्गमुखी जगत्धात्री यस्य त्वं विष्णुवल्लभे।।16।।
न ते वर्णयितुं शक्ता गुणाञ्जिह्वापि वेधस:।
प्रसीद देवि पद्माक्षी मास्मांस्त्याक्षी: कदाचन।।17।।
माता श्रीमहालक्ष्मी जी का जप मन्त्र:
माता श्रीमहालक्ष्मी जी के अनेक जप मन्त्र शास्त्रों में उपलब्ध हैं, जिसमें से एक परम शक्तिशाली मन्त्र ओम् श्रीं ह्रीं महालक्ष्म्यै नम: है। इस स्रोत/स्तुति के पाठ व मन्त्र के जप से से माता श्रीमहालक्ष्मी जी अत्यन्त शीघ्र प्रसन्न होती हैं और साधक की दुख-दरिद्रता समाप्त करके उन्नति प्रदान करती हैं।
क्षमा प्रार्थना:
पापोह्यं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवाम्।
त्राहिमां परमेशानि सर्वपापहरा भव।।
अपराध सहस्त्राणि क्रियन्तेअ्ह्रनिशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरी।।
देवराज इन्द्र व सभी के द्वारा गायी गयी इस अनुपम व अतिसुन्दर तथा लयबद्ध और सब प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाली भगवती श्रीमहालक्ष्मी जी के दिव्य स्तोत्र का महत्व इस प्रकार है -
जो मनुष्य प्रातः या सायंकाल इस स्तोत्र से माता श्रीमहालक्ष्मी जी की स्तुति करता है, उस पर और उसके पूरे परिवार पर माता महालक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती हैं। जिस घर में माता श्रीमहालक्ष्मी जी के इस स्तोत्र का पाठ होता है , उस घर में कलह का कारण दरिद्रता कभी नहीं ठहरती और सुख, सम्पत्ति, शान्ति और उन्नति सदैव विराजमान रहती है। पुत्र की कामना वाले मनुष्यों को पुत्र की प्राप्ति होती है और उन्नति की कामना वाले की उन्नति होती है।
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