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अंबेडकर ने हिन्दू धर्म को क्यों छोड़ा, हिंदू धर्म के प्रति अंबेडकर के विचार

हिंदू धर्म के प्रति डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के विचार बहुत अच्छे नहीं थे। मैं मानता हूं कि हिंदू धर्म में बुराइयां आ गई होंगी, लेकिन ऐसा नहीं है कि हिंदू

हिंदू धर्म के प्रति डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के विचार:-

हिंदू धर्म के प्रति डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के विचार बहुत अच्छे नहीं थे। मैं मानता हूं कि हिंदू धर्म में बुराइयां आ गई होंगी, लेकिन ऐसा नहीं है कि हिंदू धर्म पूर्ण रूप से बुराइयों से ही युक्त है, जैसा कि अंबेडकर जी सोचते रह गए और अंत में उन्होंने हिंदू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म को अपना लिया। 

Dr. Br. Ambedkar's views on Hinduism

वह अपनी पुस्तक में एक जगह लिखते हैं जिस के कुछ अंश को मैं आप लोगों की जानकारी के लिए यहां पर उपस्थित करा रहा हूं। आप पढ़ कर जान जाएंगे-

" साधु-महात्माओं का सर्वसाधारण पर जो शासन होता है, वह इस बात को स्पष्ट कर देता है कि व्यक्ति की सामाजिक स्थिति भी बहुधा शक्ति और अधिकार का कारण बन जाती है। भारत में करोड़ों लोग कङ्गाल साधुओं और फ़कीरों की आज्ञा क्यों मानते हैं ?  भारत के करोड़ों कङ्गाल अपना अंगूठी-छल्ला बेच कर भी काशी और मक्का क्यों जाते है ? भारत का इतिहास दिखलाता है कि मज़हब एक बड़ी शक्ति है । भारत में सर्व साधारण पर पुरोहित का शासन मजिस्ट्रेट से भी बढ़ कर होता है। यहाँ प्रत्येक बान को, यहाँ तक कि हड़तालों और कौंसिलों के चुनाव को भी, बड़ी आसानी से मज़हवी रङ्गत मिल जाती है।

 मैं नहीं समझता, भारत में साम्यवादी-शासन जनता में ऊँच-नीच और स्पृश्य-अस्पृश्य का भेद-भाव उत्पन्न करने वाले पक्ष-पातों से पैदा हुई समस्याओं के साथ युद्ध किए बिना एक क्षण के लिये भी कैसे चल है सकता है।

यदि साम्यवादियों को केवल ललित वाक्यावली का उच्चारण करने पर ही सन्तुष्ट नहीं हो जाना है, यदि साम्यवादी साम्यवाद को एक निश्चित वस्तु बनाना चाहते हैं, तब उन्हें यह ज़रूर मानना पड़ेगा कि सामाजिक सुधार की समस्या सब का मूल है और वे उस पर आँख बन्द नहीं कर सकते । भारत में प्रचलित सामाजिक व्यवस्था एक ऐसी बात है, जिनके साथ साम्यवादी को अवश्य निवटना पड़ेगा; जब तक वह इस के साथ नहीं निवटेगा, वह क्रान्ति उत्पन्न नहीं कर सकता; और यदि सौ- भाग्य से उसे क्रान्ति उत्पन्न करने में सफलता भी प्राप्त हो जाय तो भी, यदि वह अपने आदर्श को सिद्ध करना चाहता है, ' इस के साथ लड़ना पड़ेगा । यदि वह क्रान्ति के पहले ऊँच-नीच- मूलक वर्ण-व्यवस्था पर विचार करने को तैयार नहीं तो क्रान्ति के बाद उसे इस पर विचार करना पड़ेगा। दूसरे शब्दों में हम यही बात यों कह सकते हैं कि आप किसी भी ओर मुंह कीजिए, वर्ण-भेद एक ऐसा राक्षस है, जो सब ओर आप का मार्ग रोके पड़ा है। जब तक आप इस राक्षस का वध नहीं करते, आप न राजनीतिक सुधार कर सकते हैं और न आर्थिक सुधार। "

वे तथ्य; जिनके कारण हिंदू धर्म की आलोचना की जाती है:- Click here

निष्कर्ष :-

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का इतिहास और उनके द्वारा लिखे गए पुस्तकों का अध्ययन करने के बाद जानकारी यही मिलती है कि उनको हिंदू धर्म में और किसी भी धर्म में जो जातिवाद या जातियां हैं, वह उनको बहुत गलत लग रही थी और वह जातियां या जातिवाद को खत्म करना चाहते थे। लेकिन ऐसा संभव नहीं है और यह युगों से चलता आ रहा है।
बिना जातियों के एक व्यवस्थित समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। 

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