बथुआ के फायदे
- बथुआ का वैज्ञानिक नाम: चिनोपोडियम ऐलबम
- बथुआ की प्रकृति : तर और ठंडा
बथुआ हरा शाक है। यह गुर्दे व पित्ताशय में पथरी होने से बचाता है। बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है।
बथुए में लोहा, कॉपर, सोना के आयन और क्षार पाया जाता है। बथुए का साग जितना अधिक से अधिक सेवन किया जाए, निरोग रहने के लिए उतना ही उपयोगी है। बथुए के साग में कम से कम मसाले डालें, नमक भी कम मिलायें तो अच्छा हैं, यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो सैंधा नमक मिलायें और गाय या भैंस के घी से छौंक लगायें। बथुए का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है। सीजन में किसी भी तरह बथुआ नित्य सेवन करें। बथुआ शुक्र व वीर्वयर्धक भी है।
कब्ज़ :
बथुआ आमाशय को ताकत देता है, क़ब्ज़ दूर करता है। बथुए का शाक दस्तावर होता है। कब्ज़ वालों को बथुए का शाक नित्य खाना चाहिए। कुछ सप्ताह नित्य बथुए की सब्जी खाने से सदा रहने वाला कब्ज दूर हो जाता है। शरीर में ताकत आती है और स्फर्ति बनी रहती है।
पेट के रोग :
जब तक मौसम में बथुए का साग मिलता रहे, नित्य इसकी सब्जी खायें। बथुए का रस या उबाला हुआ पानी पीयें। इससे पेट के हर प्रकार के रोग यकृत, तल्ली, अर्जीर्ण, गैस, कृमि, दर्द, अर्श (Piles), पथरी ठीक हो जाते हैं। पथरी हो तो एक गिलास कच्चे बथुए के रस में शक्कर मिलाकर नित्य पीयें तो पथरी टूट कर बाहर निकल जाती है।
सिर के बालों में जुएं :
सिर के बाल में जुयें, लीखें हों तो बथुए को उबाल कर इसके पानी से सिर धोयें तो जुएं मर जायेंगी, बाल साफ हो जायेंगे।
मासिक धर्म :
मासिक-धर्म रुका हुआ हो तो दो चम्मच बथुआ के बीज एक गिलास पानी में उबाल कर आधा रहने पर छान कर पी जायें। मासिक धर्म खुल कर साफ आयेगा। शाक भी खायें।
आंखों के रोग :
आँखों में सूजन, लाली हो तो प्रतिदिन बथुए की सब्जी खायें।
त्वचा के रोग :
सफेद दाग, दाद, खुजली, फोड़े, कुष्ट आदि चर्म रोगों में नित्य बथुआ उबाल कर निचोड़ कर इसका रस पीयें तथा सब्जी खायें। बथुए के उबले हुए पानी से चर्म रोग को धोयें। बथुए के कच्चे पत्ते पीसकर निचोड़ कर रस निकाल लें। दो कप रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर मंद-मंद आग पर गर्म करें। जब रस जल कर तेल ही रह जाये तो छानकर शीशी में भर लें तथा चर्म रोगों पर नित्य लगायें। लम्बे समय तक लगाते रहें. लाभ होगा।
फोड़े, फुन्सी, सूजन पर बथुए को कूट कर, सोंठ और नमक मिलाकर गीले कपड़े में बाँध का कपड़े पर गीली मिट्टी लगाकर आग, भोभल में सेंकें। सिकने पर गर्म-गर्म बाँधे। फोडा फूट जायेगा या पककर शीघ्र फूट जायेगा।
मूत्राशय के रोग :
मूत्राशय, गुर्दा और पेशाब के रोगों में बथुए का साग लाभदायक है। पेशाब रुक-रुक कर आता हो, कतरा-कतरा सा आता हो तो इसका रस पीने से पेशाब खुल कर आता है। दर्द व सूजन दूर हो जाता है।
पेशाब के रोगः
बथुआ आधा किलो, पानी तीन गिलास, दोनों को उबालें और फिर पानी छान लें। बथुए को निचोड़ कर पानी निकाल कर यह भी छाने हुए पानी में मिला लें। स्वाद के लिए नींबू, जीरा, जरा-सी काली मिर्च और सैंधा नमक मिला लें और पी जायें। इस प्रकार तैयार किया हुआ पानी दिन में तीन बार पीयें। इससे पेशाब में जलन, पेशाब कर चुकने व बाद होने वाला दर्द, टीस उठना ठीक हो जाता है। दस्त साफ आता है। पेट की गैस, अपच द हो जाता है। पेट हल्का लगता है। यह मैंने स्वयं अनुभव किया है। उबले हुए पत्ते भी दही मिलाकर खायें, बहुत स्वादिष्ट लगते हैं।
पेट में कृमि:
कच्चे बथुए का रस एक कप में स्वादानुसार नमक मिलाकर एक बार नित्य पीत रहने से कृमि मर जाते हैं। बथुए के बीज एक चम्मच पिसे हुए शहद में मिलाकर चाटने से कृमि मर जाते हैं तथा रक्तपित्त ठीक हो जाता है।
जलना :
आग से जले अंग पर कच्चे बथुए का रस बार-बार लगायें।
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