Diwali: दीपावली, श्री महालक्ष्मी-गणेश पूजन:
प्रिय मित्रों! समस्त सनातन धर्म के अनुयायियों और प्रेमियों को पावन पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
अनेक लोगों को दीपावली पूजन की सही विधि पता न होने के कारण वे लोग टूटे-फूटे और गलत नियमों से पूजा करते हैं, जिसका अच्छा परिणाम उन्हें नहीं मिलता है या ऐसा लगता है जैसे पूजा-पाठ करने का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ रहा। अतः मैं यहां पर दीपावली पूजा की संपूर्ण विधि, जो कि शास्त्रीय, स्पष्ट, सही और मुहूर्त के अंदर की जाने वाली है, का विस्तृत वर्णन कर रहा हूँ।
संपूर्ण जगत की अधिष्ठात्री, भगवान विष्णु की योगमाया, साक्षात नारायणी माता श्री महालक्ष्मी जी चल और अचल, दृश्य एवं अदृश्य, सभी संपत्तियों, सभी सिद्धियों और निधियों की अधिष्ठात्री देवी हैं।
भगवान श्री गणेश सिद्धि, बुद्धि के स्वामी एवं सभी अमंगलों और विघ्नों के नाशक हैं, और सद्बुद्धि प्रदान करने वाले हैं। अतः कार्तिक की अमावस्या के दिन माता महालक्ष्मी और श्री गणेश जी की पूजा-अर्चना करने से सभी कल्याण-मंगल, धन-संपदा और आनंद प्राप्त होते हैं।
2022 में दीपावली के दिन श्री महालक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त:
चूंकि सनातन धर्म के अनुसार, दीपावली का त्यौहार या दीपावली के दिन श्री महालक्ष्मी-गणेश का पूजन कार्तिक महिने में कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन सन्ध्या-रात्रि में किया जाता है।
इस वर्ष 24/10/2022 दिन सोमवार को कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी सांय 5 बजकर 3 मिनट तक है, इसके बाद से अमावस्या तिथि प्रारम्भ हो जा रही है और अमावस्या तिथि 25/10/2022 दिन मंगलवार को सांय 4 बजकर 34 मिनट पर समाप्त हो जा रही है। अत: स्पष्ट है कि, 24/10/2022 दिन सोमवार को ही संध्या व रात्रि के समय अमावस्या तिथि प्राप्त हो रही है।
अत: 24 अक्टूबर 2022, दिन सोमवार, कार्तिक कृष्ण अमावस्या को सांय 5 बजकर 10 मिनट से श्री महालक्ष्मी-गणेश या दीपावली पूजन कार्य प्रारंभ करने का शुभ मुहूर्त है।
नीचे हमने कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर दिए हैं, आप उसे जरूर पढ़ लीजिएगा।
अब हम क्रमानुसार पूजा की विधि की शुरुआत करते हैं --
दीपावली पूजन के लिए घर को अच्छी तरह स्वच्छ कर लें और कार्तिक अमावस्या के दिन सांयकाल श्री महालक्ष्मी जी का या दीपावली का पूजन आरंभ करें ।
सर्वप्रथम पूर्व या उत्तराभिमुख बैठकर, आचमन, पवित्रीधारण, आसन शुद्धि, मार्जन, प्राणायाम और स्वस्तिवाचन (मांगलिक श्लोकों का पाठ) कर पूजन सामग्री पर तथा अपने ऊपर निम्न मंत्र पढ़कर छिड़कें -
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोआ्पि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।
किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेश जी के दाहिने भाग में स्थित माता श्री महालक्ष्मी जी की मूर्ति को स्थापित करें।
मूर्तिमयी श्री महालक्ष्मी जी के पास ही किसी पवित्र थाली या पात्र में केसर युक्त चंदन से अष्टदल कमल अथवा स्वास्तिक चिन्ह बनाकर उस पर द्रव्यलक्ष्मी (रूपया) को स्थापित करें।
संकल्प, गौरी-गणेश स्थापना व पूजन:
दो सुपारी पर मौली लपेटकर (गौरी-गणेश का प्रतीक) अपने सामने रंगीन चावल (अक्षत) पर स्थापित करें। साथ ही साथ एक प्रमुख साक्षी दीपक की स्थापना करें या जलाकर रखें।
अब हाथ में जल, पुष्प और अक्षत लेकर दीपावली पूजन का संकल्प करें-
ॐ विष्णवे नम:, ॐ विष्णवे नम:, ॐ विष्णवे नम:। ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आनन्द संवत्सरे अमुक ग्रामे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस्या तिथौ अमुक वासरे अमुक गोत्रे अमुकनाम दासोऽहम् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिकसकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मी प्राप्तये श्री महालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदङ्गत्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।
जल,अक्षतादि गौरी-गणेश के सामने छोड़ दें।
बाएं हाथ में अक्षत (हल्दी में रंगा हुआ चावल) लेकर निम्न मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन अक्षतों को गौरी गणेश पर छोड़ता जाए-
ॐ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
अब गौरी-गणेश का पंचोपचार (गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य) से पूजन करें।
नवग्रह स्थापना और पूजन:
नवग्रहों की स्थापना के लिए ईशान कोण में अष्टगंध से चार खड़ी पाई और चार पड़ी पाईयों का चौकोर मंडल बनाएं। इस प्रकार 9 खानें बनकर तैयार हो जाएंगे।
अब बाएं हाथ में अक्षत (चावल) लेकर चित्रानुसार, नीचे लिखे मंत्रों को बोलते हुए क्रम से दाहिने हाथ से अक्षत छोड़कर ग्रहों का आवाहन एवं स्थापना करें--
1. ॐ सूर्याय नम:, श्रीसूर्यमावाहयामि, स्थापयामि।
2. ॐ सोमाय नम:, सोममावाहयामि, स्थापयामि।
3. ॐ भौमाय नम:, भौममावाहयामि, स्थापयामि।
4. ॐ बुधाय नम:, बुधमावाहयामि, स्थापयामि।
5. ॐ बृहस्पतये नम:, बृहस्पतिमावाहयामि, स्थापयामि।
6. ॐ शुक्राय नम:, शुक्रमावाहयामि, स्थापयामि।
7. ॐ शनैश्चराय नम:, शनैश्चरमावाहयामि, स्थापयामि।
8. ॐ राहवे नम: , राहुमावाहयामि, स्थापयामि।
9. ॐ केतवे नम:, केतुमावाहयामि, स्थापयामि।
अस्मिन् नवग्रहमण्डले आवाहिता: सूर्यादिनवग्रहा देवा: सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु।
- मन्त्र बोलते हुए दाहिने हाथ से नवग्रह मण्डल पर अक्षत छोड़े।
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नम:।
- मन्त्र द्वारा नवग्रह मण्डल की पंचोपचार पूजन करें।
अब निम्नलिखित श्लोकों से नवग्रहों की प्रार्थना करें --
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: सर्वे ग्रहा: शान्तिकरा भवन्तु।।
अनया पूजया सूर्यादिनवग्रहा: प्रीयन्तां न मम।
- मंत्र बोलते हुए नवग्रह मण्डल को नमस्कार करें ।
षोडश मातृका की स्थापना और पूजन:
षोडश मातृका की स्थापना के लिए अष्ट गंध से पाॅंच खड़ी पाई और पाॅंच पड़ी पाईयों का चौकोर मंडल बनाएं। इस प्रकार 16 खानें बनकर तैयार हो जाएंगे।
विशेष- पहले कोष्ठक में गौरी और गणेश दोनों का आवाहन और स्थापन होता है।
1. ॐ गणपतये नम:, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि।
ॐ गौर्ये नम:, गौरीमावाहयामि, स्थापयामि।
2. ॐ पद्मायै नम:, पद्मामावाहयामि, स्थापयामि।
3. ॐ शच्यै नम:, शचीमावाहयामि, स्थापयामि।
4. ॐ मेधायै नम:, मेधामावाहयामि, स्थापयामि।
5. ॐ सावित्र्यै नम:, सावित्रीमावाहयामि, स्थापयामि।
6. ॐ विजयायै नम:, विजयामावाहयामि, स्थापयामि।
7. ॐ जयायै नम:, जयामावाहयामि, स्थापयामि।
8. ॐ देवसेनायै नम:, देवसेनामावाहयामि, स्थापयामि।
9. ॐ स्वधायै नम:, स्वधामावाहयामि, स्थापयामि।
10. ॐ स्वाहायै नम:, स्वाहामावाहयामि, स्थापयामि।
11. ॐ मातृभ्यो नम:, मातृ:मावाहयामि, स्थापयामि।
12. ॐ लोकमातृभ्यो नम:, लोकमातृमावाहयामि, स्थापयामि।
13. ॐ धृत्यै नम:, धृतिमावाहयामि, स्थापयामि।
14. ॐ पुष्ट्यै नम:, पुष्टिमावाहयामि, स्थापयामि।
15. ॐ तुष्ट्यै नम:, तुष्टिमावाहयामि, स्थापयामि।
16. ॐ आत्मन: कुलदेवतायै नम:, आत्मन: कुलदेवतामावाहयामि, स्थापयामि।
ॐ गणेशसहितगौर्यादिषोडशमातृकाभ्यो नम:।
- मन्त्र बोलते हुए षोडशमातृकाओं की पंचोपचार (गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य) पूजन करें।
हाथ में नारियल या कोई भी फल लेकर निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए षोडशमातृकाओं की प्रार्थना करें-
ॐ आयुरारोग्यमैश्वर्यं ददध्वं मातरो मम। निर्विघ्नं सर्वकार्येषु कुरूध्वम् सगणाधिपा:।। गेहे वृद्धिशतानि भवन्तु, उत्तरे कर्मण्यविघ्नमस्तु।
हाथ में अक्षत लेकर 'अनया पूजया गणेशसहितगौर्यादिषोडशमातर: प्रीयन्ताम् न मम्।' बोलते हुए अक्षत को मातृकामण्डल पर छोड़ दें।
श्री महालक्ष्मी पूजन:
चूॅंकि श्री गणेशजी और महालक्ष्मी जी की प्रतिमा को आपने निर्धारित स्थान पर स्थापित कर लिया है, अब आपको उनकी पुजा-अर्चना करनी है--
विशेष- आचमन जलादि अर्पित करने के लिए मूर्ति के पास एक छोटा सा पात्र रखें।
ध्यान- हाथ में अक्षत पुष्य लेकर श्री गणेशजी और महालक्ष्मी जी का निम्नलिखित श्लोकों से ध्यान करते हुए अक्षत पुष्य को मूर्ति के सामने छोड़ दें--
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारूभक्षणम्।
उमासुतंशोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।।
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी।
गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया।।
या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितै: स्नापिता हेमकुम्भै:।
सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता।।
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
आवाहन- आवाहन के लिए मन्त्र को बोलते हुए पुष्य चढ़ायें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
आसन- आसन के लिए पुष्प अर्पित करें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
विशेष- यदि मूर्ति धातु या पत्थर की हो, तो उसे किसी पवित्र पात्र में रखकर स्नान करायें, और यदि मूर्ति मिट्टी की है तो स्नान के भिन्न भिन्न द्रव्यों को मूर्ति के ऊपर थोड़ा थोड़ा छिड़कें।
पाद्य- पाद्य के लिए चन्दनपुष्पादियुक्त जल आचमनी द्वारा अर्पण करें -
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
अर्घ्य- अष्टगन्ध (अगर, तगर, चन्दन, कस्तूरी, लालचन्दन, कुंकुम, देवदारू, केसर) मिश्रित जल अर्घ्यपात्र से चढ़ायें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि।
आचमन- आचमन के लिए जल अर्पित करें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। आचमनीयं जलं समर्पयामि।
स्नान- स्नान के लिए जल चढ़ायें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। स्नाननान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
दुग्ध स्नान- गाय के कच्चे दूध से स्नान कराएं, पुन: शुद्ध जल से स्नान करायें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। पयं स्नानं समर्पयामि। पय: स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
दधिस्नान- दही से स्नान करायें । पुन: शुद्ध जल से स्नान करायें।
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। दधिस्नानं समर्पयामि। दधि स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि
घृतस्नान- घी से स्नान करायें, पुन: शुद्ध जल से स्नान करायें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। घृत स्नानं समर्पयामि। घृत स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
मधुस्नान- शहद से स्नान करायें, पुन: शुद्ध जल से स्नान करायें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। मधुस्नानं समर्पयामि। मधु स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
शर्करास्नान- शर्करा से स्नान कराकर पुन: शुद्ध जल से स्नान करायें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। शर्करा स्नानं समर्पयामि। शर्करा स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
पॅंचामृतस्नान- दूध, दही, घी, मधु और शर्करा को एक पात्र में मिलाकर पंचामृत तैयार कर लें, और उस पंचामृत से स्नान कराने के बाद पुन: शुद्ध जल से स्नान करायें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। पॅंचामृत स्नानं समर्पयामि। पॅंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
गन्धोदक स्नान- चन्दनमिश्रित जल से स्नान कराने के पश्चात् पुन: शुद्ध जल से स्नान करायें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। गन्धोदक स्नानं समर्पयामि। गन्धोदकस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
आचमन- सब स्नान कराने के बाद आचमनीय जल अर्पित करें।
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। आचमनीयं जलं समर्पयामि।
तदन्तर मूर्ति को स्वच्छ कपड़े से पोंछकर उसे यथास्थान आसन पर स्थापित करें।
वस्त्र- सुन्दर वस्त्र अर्पित करें और आचमनीय जल चढ़ाएं -
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। वस्त्रं समर्पयामि। आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
उपवस्त्र- गणेशजी को लाल सूत्र और देवी जी को कॅंचुकी आदि उपवस्त्र चढ़ायें और फिर आचमनीय जल चढ़ाएं -
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। उपवस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
मधुपर्क- काॅंस्यपात्र में स्थित मधुपर्क समर्पित करने के उपरांत आचमनीय जल समर्पित करें -
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। मधुपर्कं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
आभूषण- माता महालक्ष्मी को सामर्थ्य के अनुसार आभूषण समर्पित करें -
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। नानाविधानि कुण्डलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि।
गन्ध- अनामिका अंगुलि से कर्पूर-केसरादिमिश्रित चन्दन अर्पित करें -
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। गन्धं समर्पयामि।
लालचन्दन- घिसा हुआ लालचन्दन अनामिका अंगुली से श्री गणेश व माता लक्ष्मी जी को लगायें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। रक्तचन्दनम् समर्पयामि।
सिन्दूर- सिन्दूर का तिलक लगायें -
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। सिन्दूरं समर्पयामि।
कुंकुम- कुंकुम अर्पित करें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। कुंकुम समर्पयामि।
पुष्पसार या सेंट या इतर- सुगंधित तेल या सेंट चढ़ायें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। सुगन्धिततैलं पुष्पसारं च समर्पयामि।
अक्षत- कुंकुम मिश्रित चावल समर्पित करें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। अक्षतान् समर्पयामि।
पुष्प एवं पुष्पमाला- मूर्ति को पुष्पों तथा पुष्पमालाओं से अलंकृत करें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि।
दूर्वा- श्री गणेशजी और महालक्ष्मी जी को दुर्वांकुर अर्पित करें -
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। दुर्वांकुरान् समर्पयामि।
श्री महालक्ष्मी जी की अंग पूजा:
निम्नलिखित मन्त्रों को बोलते हुए कुंकुम मिश्रित अक्षत पुष्पों से देवी महालक्ष्मी जी की अंग पूजा करें-
1. ॐ चपलायै नम:, पादौ पूजयामि।
2. ॐ चंचलायै नम:, जानुनी पूजयामि।
3. ॐ कमलायै नम:, कटिं पूजयामि।
4. ॐ कात्यायन्यै नम:, नाभिं पूजयामि।
5. ॐ जगन्मात्रे नम:, जठरं पूजयामि।
6. ॐ विश्ववल्लभायै नम:, वक्ष:स्थलं पूजयामि।
7. ॐ कमलवासिन्यै नम:, हस्तौ पूजयामि।
8. ॐ पद्माननायै नम:, मुखं पूजयामि।
9. ॐ कमलपत्राक्ष्यै नम:, नेत्रत्रयं पूजयामि।
10. ॐ श्रियै नम:, शिर: पूजयामि।
11. ॐ महालक्ष्म्यै नम:, सर्वाङ्गं पूजयामि।
अष्ट सिद्धि - पूजन:
अब निम्नलिखित मन्त्रों से देवि महालक्ष्मी के पास आठों दिशाओं में आठों सिद्धियों की कुंकुम मिश्रित अक्षत से पूजन करें-
1. ॐ अणिम्ने नम: ( पूर्वे ),
2. ॐ महिम्ने नम: ( अग्निकोणे ),
3. ॐ गरिम्णे नम: ( दक्षिणे ),
4. ॐ लघिम्ने नम: ( नैऋत्ये ),
5. ॐ प्राप्त्यै नम: ( पश्चिमे ),
6. ॐ प्राकाम्यै नम: ( वायव्ये ),
7. ॐ ईशितायै नम: ( उत्तरे ),
8. ॐ वशितायै नम: ( ईशानकोणे )।
अष्टलक्ष्मी पूजन:
निम्नलिखित एक-एक नाम मन्त्र पढ़ते हुए महालक्ष्मी जी के पास कुंकुम मिश्रित अक्षतपुष्पों से अष्टलक्ष्मी का पूजन करें-
1. ॐ आद्यलक्ष्म्यै नम:, ( पूर्वे ),
2. ॐ विद्यालक्ष्म्यै नम: ( अग्निकोणे ),
3. ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नम: ( दक्षिणे ),
4. ॐ अमृतलक्ष्म्यै नम: ( नैऋत्ये ),
5. ॐ कामलक्ष्म्यै नम: ( पश्चिमे ),
6. ॐ सत्यलक्ष्म्यै नम: ( वायव्ये ),
7. ॐ भोगलक्ष्म्यै नम: ( उत्तरे ),
8. ॐ योगलक्ष्म्यै नम: ( ईशानकोणे )।
धूप- धूप दिखायें या आघ्रापित करें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। धूपमाघ्रापयामि।
दीप- दीपक दिखायें और फिर हाथ धो लें (चूंकि पहलवानइसके बाद नौवेद्य चढ़ाना रहता है, इसलिए पहले हाथ धो लिया जाता है।)-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। दीपकदर्शयामि।
नैवेद्य- परम्परा के अनुसार कहीं कहीं धनिया या गुड़ का प्रसाद चढ़ाया जाता है, परन्तु आप कोई भी सात्विक खाद्य चढ़ा सकते हैं। नैवेद्य समर्पित करने के बाद आचमनीय जल, पानीय जल, हस्तादिप्रक्षालन के लिए जल अर्पित करें -
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। नैवेद्यम् निवेदयामि। नैवेद्यान्ते आचमनीयं, मध्ये पानीयम्, उत्तरापोऽशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि।
ऋतुफलमं- किसी पवित्र पात्र में ऋतुफल अर्पित करें -
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। ऋतुफलमं समर्पयामि।
ताम्बूल - पूगीफल- छोटी इलायची, लवंग, सुपारीयुक्त दो पान के पत्ते अर्पित करें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। मुखवासार्थे एलालवंगादिभिर्युतं ताम्बूलपत्रं पूगफलं च समर्पयामि।
दक्षिणा- दक्षिणा के रूप में कुछ द्रव्य या रूपये चढ़ायें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। दक्षिणां समर्पयामि।
नीराजन (आरती)- आरती पात्र में अक्षत - पुष्प रखकर आरती करें और आरती करने के बाद आचमनी से थोड़ा सा जल आरती पात्र में छोड़ें और हाथ घो लें -
कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्। आरतिर्कमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव।।
चक्षुर्दं सर्वलोकानाम् तिमिरस्य निवारणम्। आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाणं परमेश्वरि।।
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। नीराजनम् समर्पयामि।
प्रदक्षिणा- खड़े होकर मूर्ति के सामने प्रदक्षिणा करें-
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। प्रदक्षिणां समर्पयामि।
पुष्पांजलि- हाथों में फूल लेकर निम्नलिखित मंत्रों को पढ़ते हुए पुष्पांजलि समर्पित करें -
य: शुचि: प्रयते भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। सूक्तं पॅंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत्।।
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। पुष्पांजलिं समर्पयामि।
प्रार्थना- हाथ जोड़कर प्रार्थना करें -
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगध्दिताय।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नम:। प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारमं समर्पयामि।
समर्पण-
कृतेनानेन पूजनेन लक्ष्मीगणपति प्रीयेताम्, न मम्।
- बोलते हुए भूमि पर थोड़ा सा जल गिरायें।
देहलीविनायक पूजन:
दुकान में या घर में दीवाल पर सिन्दूर से 'श्री गणेशाय नम:' या 'शुभ-लाभ' या 'स्वास्तिक चिन्ह' बनाकर "ॐ देहलीविनायकाय नम:" मन्त्र बोलते हुए गन्धपुष्पादि से पूजन करें।
श्री महाकाली पूजन:
स्याहीयुक्त दवात अथवा महाकाली जी के चित्र को महालक्ष्मी जी की मूर्ति के पास में अक्षत-पुष्पों पर स्थापित करके "ॐ श्रीमहाकाल्यै नम: या ॐ ह्रीं काल्यै नम:" मन्त्र द्वारा पॅंचोपचार से पूजन करें और प्रार्थना के लिए निम्न श्लोक को बोलें-
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्त्तै: समस्तैर्व्यवहारदक्षै:।
जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु।।
लेखनी पूजन :
कलम पर रक्षासूत्र बाॅंधकर सामने रख लें और "ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नम:" मन्त्र द्वारा उस लेखनी की पॅंचोपचार पूजन करें और प्रार्थना के लिए निम्न श्लोक को बोलें-
शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यत:। अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव।।
सरस्वती (बही-खाता) पूजन:
बही-खाता में रोली या कुंकुमयुक्त चन्दन से स्वास्तिक चिन्ह बनायें और उसमें माता सरस्वती जी का " ॐ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम:" मन्त्र द्वारा पॅंचोपचार पूजन करें।
कुबेर पूजन:
तिजोरी अथवा रूपये रखे जाने वाले सन्दूक पर स्वास्तिक चिन्ह बनाकर अथवा कुबेर की प्रतिमा में कुबेर का आवाहन करें-
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरू। कोशं वर्ध्दय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।
आवाहन के पश्चात "ॐ कुबेराय नम:" मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें और प्रार्थना के लिए निम्न श्लोक को बोलें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च ।भवन्तु त्वत्प्रसादेन धनधान्यदिसम्पद:।।
तुला या तराजू पूजन:
यदि घर में तराजू हो तो "ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नम:" मन्त्र द्वारा गन्धादि पंचोपचार से पूजन करें।
दीपमालिका (दीपक) पूजन:
किसी पात्र में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकों को प्रज्वलित कर श्री महालक्ष्मी जी के समीप रखकर उन दीपकों का "ॐ दीपावल्यै नम:" मन्त्र से गन्धादि पुष्पों द्वारा पूजन करके इस प्रकार प्रार्थना करें -
त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारका:। सर्वेशा ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नम:।।
अब तुरन्त सम्पूर्ण दीपकों को पूरे घर में यथास्थान अलंकृत कर दें।
प्रधान आरती:
आरती पात्र में गन्ध, अक्षत, पुष्प रखकर जल से प्रोक्षण करने के बाद घी का दीपक जलाकर आसन पर खड़े होकर अन्य परिवारजनों के साथ घण्टानादपूर्वक माता महालक्ष्मी जी की सुन्दर आरती (ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता.................) करें।
मन्त्र पुष्पांजलि- हाथों में पुष्प लेकर निम्नलिखित श्लोक बोलते हुए पुष्पों को गणेश जी तथा महालक्ष्मी जी पर चढ़ा दें-
ॐ या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी: , पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि: ।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा , तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम: । मन्त्रपुष्पांजलिं समर्पयामि।
क्षमा-प्रार्थना-
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतकरि प्रसीद मह्मम्।।
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भव:।
त्राहि मां परमेशानि सर्वपापहराभव:।।
अपराध सहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।।
पुन: प्रणाम करके "ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्री महालक्ष्मी: प्रसीदतु" कहकर भूमि पर थोड़ा सा जल छोड़ दें।
विसर्जन-
समस्त पूजन के अन्त में हाथ में अक्षत लेकर नूतन गणेश एवं महालक्ष्मी जी की मूर्ति को छोड़कर अन्य सभी आवाहित , पूजित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जित करें -
यान्तु देवगणा: सर्वे पूजमादाय मामकीम् । इष्टकामसमृध्दर्य्थं पुनरागमनाय च।।
प्रसाद वितरण:
समस्त परिवारजनों व बन्धुओं में प्रसाद बांटें और खुशी से दीपावली मनाएँ।
कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर ( FAQ ):
1. दीपावली के समय अलक्ष्मी को कब भगाना चाहिये या दरिद्र कब खेदना चाहिये ?
उत्तर- कार्तिक की अमावस्या के दिन शाम को दीपावली पूजन करने के बाद शेष रात्रि में टूटे हुए घरेलू बर्तनों को जोरों से बजाते हुए अलक्ष्मी को भगाया जाता है, ऐसा शास्त्रीय मत है।
2. दीपावली के दिन कितने दीपक जलानें चाहिए ?
उत्तर- ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपक जलाने चाहिए ।
3. अष्ट सिद्धियों के नाम क्या हैं ?
उत्तर- 1. अणिमा, 2. महिमा, 3. गरिमा, 4. लघिमा, 5. प्राप्ति, 6. प्राकाम्य, 7. ईशितायै, 8. वशितायै ।
4. अष्ट लक्ष्मी के नाम क्या हैं ?
उत्तर- 1. आद्यलक्ष्मी, 2. विद्यालक्ष्मी, 3. सौभाग्यलक्ष्मी, 4. अमृतलक्ष्मी, 5. कामलक्ष्मी , 6. सत्यलक्ष्मी, 7. भोगलक्ष्मी, 8. योगलक्ष्मी।
5. क्या दीपावली के दिन हवन करना चाहिये ?
उत्तर- दीपावली पूजन में हवन करने का उल्लेख कहीं भी नहीं मिलता, अत: हवन न करें । यदि आपकी इच्छा हवन करने की है, तो आप हवन कर सकते हैं , इससे लाभ ही होगा और बेहतर भी रहेगा।
6. दीपावली के दिन महालक्ष्मी जी का जप करने योग्य सबसे शक्तिशाली मंत्र कौन-सा है ?
उत्तर- ॐ श्रीं ह्रीं महालक्ष्म्यै नम:। ॐ घं टं डं हं श्रीमहालक्ष्म्यै नम:।
8. दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त कब है ?
उत्तर- कार्तिक कृष्ण अमावस्या शायं काल,का समय दीपावली पूजन के लिए अच्छा माना जाता है ।
9. 2022 में दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त कब है ?
उत्तर- 24 अक्टूबर 2022, दिन सोमवार को शाम 06 बजे से रात के 08:20 बजे तक।
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