ईश्वर की भक्ति का प्रभाव - दो मित्रों की कथा
एक नगर में दो मित्र रहते थे, जिनमें घनिष्ठ मित्रता थी। वह आपस में प्रतिदिन एक दूसरे का हाल - चाल लिया करते थे। एक मित्र भगवान का परम भक्त और सात्विक प्रकृति का था तथा प्रतिदिन मंदिर में पूजा करने जाता था और दूसरा मित्र नास्तिक, व्यभिचारी (वैश्यावृत्ति करने वाला), मांस मदिरा का सेवन करने वाला और जुआरी था। लेकिन कर्मों के प्रभाव के कारण वे आपस में मित्र थे। वह, जो भगवान का भक्त था, वह भगवान की भक्ति बहुत ही नियम पूर्वक और प्रसन्नता पूर्वक करता था, लेकिन वह दुखी रहता था और उसको बहुत दुख मिलता था। वह, जो नास्तिक था और मांस मदिरा खाने वाला जुआरी तथा वैश्या वृत्ति करने वाला था, वह सुखी था।
नास्तिक मित्र सदैव अपनेआस्तिक मित्र को समझाता था कि, अरे मित्र ! यह पूजा-पाठ, भगवान की भक्ति क्यों कर रहे हो, यह सब झूठा है, ढोंग है। देखो ! तुम भगवान की भक्ति करते हो, फिर भी दुखी रहते हो और मैं भगवान की भक्ति नहीं करता है, भोग विलास करता हूं, फिर भी सुखी हूं। अतः तुम यह पूजा पाठ छोड़ दो।
एक दिन जब नास्तिक मित्र, आस्तिक (भगवान के भक्त) मित्र के घर हाल-चाल लेने आया तो, वह भगवान की पूजा कर रहे थे। नास्तिक मित्र ने उसको पूजा करने से मना करने लगा। तब आस्तिक और नास्तिक, दोनों मित्रों में शर्त लग गई और नास्तिक मित्र बोला कि, चलो, तुम बहुत पूजा पाठ में विश्वास करते हो तो, तुम मंदिर में पूजा करने जाओगे और मैं आज वैश्या वृत्ति, जुआ और मांस मदिरा का सेवन, तीनों कर्म करूंगा और शाम को यह निर्णय होगा कि किसको आज सुख मिला और किसको दुख मिला।
शर्त लग गई। भगवान का भक्त , भगवान की पूजा करने के लिए मंदिर में चला गया और नास्तिक मित्र जुआ खेलने चला गया और फिर जुआ से पैसे जितने के बाद उस पैसों से भी वेश्यावृत्ति किया और फिर मांस मदिरा का सेवन करके शाम के वक्त रास्ते में लौट रहा था। नास्तिक मित्र को रास्ते में लौटते समय एक चांदी की मुहर (चांदी का सिक्का) मिला।
उधर भगवान का भक्त मित्र, जब वह मंदिर से पूजा करके लौटा था, तो थोड़ी ही दूरी पर उसके पैर में एक लोहे की कील चुभ गयी। उससे उसे बहुत कष्ट हुआ, वह कष्ट से कराहकर वहीं बेहोश हो गया। कुछ देर बाद, कुछ लोगों ने देखा और उसके पैर से कील को निकाला और उसको उसके घर पहुंचाया। घर पहुंच कर वह भगवान का भक्त बहुत ही दुखी था और यही सोच रहा था कि आखिर मैं भगवान का इतना भक्ति पूर्वक सेवा करता हूं, फिर भी मुझे कष्ट क्यों मिलता है ?
यह सोच ही रहा था कि उसका नास्तिक मित्र आ गया और उसने कहा कहा कि, मित्र ! आज का दिन कैसा बीता ? तब तक उसने देख लिया कि इसके पैरों में तो पट्टी बंधी है। उसने कहा - मित्र ! लगता है कि आज फिर तुमको दुख प्राप्त हुआ है, लेकिन मुझे तो बहुत ही सुख प्राप्त हुआ है। मैंने रास्ते में लौटते वक्त चांदी का मुहर भी पाया और मुझे किसी प्रकार का दुख नहीं हुआ। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि तुम यह पूजा-पाठ छोड़ दो और मेरी तरह आराम से अपनी जिंदगी को बिताओ। भगवान का भक्त मित्र कुछ बोल नहीं सका और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे और कहा - चलो ठीक है ! मैं कल तुम्हें विचार करके बताऊंगा।
भगवान का भक्त मित्र अपने घर में रखी भगवान की मूर्ति के सामने रो-रो कर भगवान से प्रार्थना करने लगा कि हे प्रभु ! आखिर क्या रहस्य है कि मुझे सदैव दुख ही दुख मिलता रहता है और इस प्रकार से भगवान की प्रार्थना करते करते वहीं सो गया । तब उस भक्त को स्वप्न में भगवान ने दर्शन दिया और बताया कि, हे भक्त ! कर्मों की गति बड़ी गहन होती है। यह सभी के समझ में नहीं आ पाती है। मैं तुमको समझाता हूं ! तुम पूर्वजन्म में बहुत ही पापी मनुष्य थे, लेकिन किसी कर्म वश तुम्हारी बुद्धि इस जन्म में आस्तिक हो गई। इसलिए तुम मेरी भक्ति में मन लगाने लगे। उसी भक्ति के प्रभाव से तुम्हारे पूर्व जन्म में संचित पाप कर्म छोटे पड़-पड़ के दुख देते हैं और कुछ पाप कर्मों का प्रभाव तो मैंने नष्ट कर दिया है। आज जो लोहे की कील तुम्हारे पैरों में चुभ गई, वह पूर्वजन्म के पाप कर्मों का प्रभाव था। उस पूर्व जन्म के पाप कर्म के कारण तुम आज ऐसा पाप कर्म करते कि उसके दण्ड स्वरुप आज तुम्हें फांसी की सजा होती, लेकिन मेरी भक्ति करने के कारण वह पाप कर्म इतना क्षीण हो गया था कि सिर्फ तुम्हें लोहे की कील चुभाकर समाप्त हो गया।
तुम्हारा मित्र, जो नास्तिक है और मेरी भक्ति में विश्वास नहीं करता; वह पूर्व जन्म में बहुत पुण्यात्मा मनुष्य था, लेकिन अंत समय में कुसंगति के प्रभाव से इस जन्म में उसकी बुद्धि नास्तिकों वाली हो गई है। वह मेरी भक्ति में विश्वास नहीं करता। वह अपने पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों के कारण आज नीच कर्म करते हुए भी सुखी है, लेकिन इस जन्म में नीच कर्म के कारण उसके पूर्व जन्म के पुण्य भी क्षीण होते जा रहे हैं। उसके पूर्व जन्म के पुण्य के कारण आज उसे राजा बनना था, लेकिन उसने इस जन्म में पाप कर्म करके पुण्य जन्म के कर्मों को इतना क्षीण कर दिया है कि राजा बनने के स्थान पर इसे चांदी की मुहर या चांदी का सिक्का पाकर ही संतोष करना पड़ा। इसलिए तुम दुखी मत होओ ! मेरी भक्ति के कारण तुम्हारे सभी पाप कर्म समाप्त हो चुके हैं और तुम मुझको प्राप्त होगे। अंत तुम मुक्ति के मार्ग, मेरी भक्ति को मत छोड़ो। देखो ! तुम्हारा पैर ठीक हो गया है।
फिर सवेरा हुआ और उसका नास्तिक मित्र उसके पास आया और बोला कि, कहो मित्र ! क्या विचार किया ? भगवान का भक्त बोला कि मुझे तो भगवान ने सपने में बताया और उसने सपने की पूरी बात बता दी और अपना स्वस्थ पैर दिखाया। सपने की बात सुनकर, और रातों रात पैर ठीक हुआ देखकर उस नास्तिक मित्र की आंखें खुल गई और उसको अपने किए पर बड़ा दुख हुआ। इस प्रकार से उसने भी नास्तिक मत को छोड़कर भगवान की भक्ति का मार्ग अपनाया।
कुछ लोग कुतर्क करते हैं कि हम इस व्यक्ति के साथ यह गलत कर्म (चोरी, डकैती, बलात्कार, हत्या आदि) करेंगे, क्योंकि इसने पूर्व जन्म में हमारे साथ किया है। लेकिन यह सरासर गलत है। शास्त्र विरूद्ध, जो भी कर्म आप जानबूझकर करेंगे, वह नया पाप कर्म बनेगा, और उसका गलत फल कर्ता को भोगना पड़ेगा।
वह कर्म, जो आपसे अनजान में या गलती से या अज्ञानता वश हो जाते हैं, उन्हीं कर्मों को पूर्व जन्म का कर्म फल माना जाता है, जानबूझकर किये जाने वाले कर्मों को नहीं।
इस कहानी से आपको क्या शिक्षा मिली, यह तो आप समझ ही गए होंगे कि भगवान की भक्ति करने का प्रभाव क्या है।
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