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धृतराष्ट्र के नेत्रहीन होने व सौ पुत्रों के नष्ट होने की कहानी

राजा धृतराष्ट्र ने महाभारत की युद्ध की समाप्ति के बाद, भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि हे भगवन ! मैंने तो अपने इस जन्म में कभी भी कोई ऐसा कर्म नहीं किया

धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों के नष्ट होने का कारण

राजा धृतराष्ट्र ने महाभारत की युद्ध की समाप्ति के बाद, भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि हे भगवन ! मैंने तो अपने इस जन्म में कभी भी कोई ऐसा कर्म नहीं किया है, जिसके कारण मेरे सौ पुत्रों का नाश मेरे आंखों के सामने ही हो गया। आखिर ऐसा क्या कारण है कि, मेरे जीते जी, मेरे सौ पुत्रों का वध हुआ और मैं कुछ ना कर सका। 

भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि, मैं तुम्हारे दुख का कारण समझता हूं। मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि देता हूं, तुम अपने पूर्व जन्मों के कर्मों को देख लो और तब आप जान जाएंगे कि आप के सौ पुत्रों का नाश क्यों हुआ ? 

धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों के वध का कारण

उस दिव्य दृष्टि के प्रभाव से महाराजा धृतराष्ट्र ने देखा कि; एक बार, पूर्व जन्म में वे बहुत ही बलवान शासक थे। उनके राज्य में एक ऋषि रहते थे, जो बच्चों को विद्याध्यायन कराते थे। ऋषि के पास 100 शिष्य थे, जो ज्ञान अर्जित कर रहे थे। एक समय ऋषि को तीर्थ यात्रा करने जाना था। ऋषि ने सोचा कि मैं अपने शिष्यों को राजा के पास छोड़कर तीर्थ यात्रा के लिए चला जाऊंगा, फिर जब वापस लौटूंगा तो, राजा के यहां से अपने सभी शिष्यों को बुला लूंगा। ऋषि बहुत तपस्वी थे और उन्होंने सोचा कि अगर मैं राजा के पास अपने 100 लड़कों को रखूंगा तो शायद राजा इनकी सेवा या इनका देखरेख करने में कठिनाई समझें और अगर इन्हें हंस बनाकर राजा के तालाब में छोड़ दूं तो राजा को उनके बारे में किसी भी प्रकार की चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी। इस प्रकार से विचार करके ऋषि ने अपने सभी 100 शिष्यों को मंत्र के प्रभाव से हंस बना दिया और उन्हें राजा के पास ले जाकर के राजा से कहा कि, हे राजन ! मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं। आप हमारे इन सभी हंसों को अपने तालाब में हिफाजत से रखिए और मैं जब वापस आऊंगा तो मेरे इन सभी हंसों को लौटा दीजिएगा। राजा ने कहा - ठीक है, ऐसा ही होगा!

ऋषि तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े और सभी शिष्य रूपी हंस राजा के तालाब में विचरण करने लगे। कुछ कारण वश ऋषि अपने निर्धारित समय पर वापस नहीं लौट सके, तो राजा ने सोचा कि लगता है कि रास्ते में ऋषि का देहांत हो गया है। दुर्भाग्य से वह राजा तामसी प्रकृति वाला मांसाहारी था। 

एक दिन राज दरबार का भोजन बनाने वाला सेवन ने राजा से कहा कि, राजन ! आज शिकार उपलब्ध नहीं है। राजा ने कहा- कोई बात नहीं ! ऋषि को गये बहुत दिन हो गये, अतः तालाब में से एक हंस को मार दो और उसी का भोजन बना कर लाओ। राजा के आज्ञानुसार, उसका सेवक तालाब से एक हंस को निकाला और उसको मार कर के भोजन बनाकर राजा व अन्य सभी को खिला दिया। जब राजा ने उस मांस को खाया तो वह मांस बहुत ही स्वादिष्ट लगा। राजा ने कहा कि मांस तो बहुत स्वादिष्ट है, तुम एक एक करके रोज एक एक हंस को मारकर उसका भोजन बना दो और हम सब को खिलाओ। इस प्रकार से ऋषि के सभी 100 पुत्र, जो हंस बने हुए थे, एक एक करके मार दिए गए और राजा आदि लोग उनका भक्षण कर गए। 

कुछ समय बाद जब ऋषि लौटे तो, उन्होंने कहा कि ओ राजन ! मेरे उन सभी हंसों को लौटा दो। राजा ने कहा कि, वह हंस तो आपको नहीं मिल पाएंगे, उनके बदले में मैं आपको दूसरे 100 हंस देता हूं। ऋषि ने कहा - नहीं नहीं ! हमें वही हंस चाहिए, हमें उनकी जरूरत है। राजा ने कहा कि हे ऋषिवर ! आपके वे सभी हंस मृत्यु को प्राप्त हो गए और हमने उनको मारकर भोजन बना दिया। 

ऋषि ने कहा कि, रे मूर्ख राजा ! जिन्हें तुमने हंस समझ कर मार कर खा गया, वह मेरे 100 शिष्य थे। मैंने तुम्हें हंस बनाकर इसलिए दिया था कि, तुम्हें उनकी अधिक सेवा व देखरेख न करनी पड़े और वे तुम्हारे तालाब में बिना सेवा के रह सके। लेकिन तुमने मूर्खता बस मेरे उन सभी शिष्यों को मार दिया। अतः मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि, जिस प्रकार से मेरे जीते जी तुमने मेरे 100 शिष्यों को मौत के घाट उतार दिया और मैं कुछ ना कर सका; उसी प्रकार से तुम्हारे जीते जी ही तुम्हारे 100 पुत्र मारे जाएंगे और तुम कुछ नहीं कर सकोगे। 

तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि, हे राजा धृतराष्ट्र ! उसी पाप के कारण से तुम्हारे इन 100 पुत्रों की मृत्यु हुई और तुम कुछ भी नहीं कर सके।

धृतराष्ट्र के अंधा होने का कारण

राजा धृतराष्ट्र ने कहा कि हे भगवन ! मैंने अपने उस पाप कर्म का फल तो पा लिया, लेकिन मैं अंधा क्यों हुआ हूं ? इसका भी उत्तर मैं जानना चाहता हूं। भगवान श्री कृष्ण ने कहा की अब आप उस जन्म के आगे की घटना को देखिए -

राजा धृतराष्ट्र देखते हैं कि;  वह एक जन्म में एक मनुष्य हैं, और वन मार्ग से विचरण कर रहे हैं। तभी कोई कछुआ अपने रास्ते से जा रहा होता है, तो वे अपनी बुरी मानसिकता के कारण उस कछुआ को पकड़ लेते हैं और उसके दोनों आंखों को कांटों से छेद करके फोड़ देते हैं और उस कछुआ को अंधा बना कर छोड़ देते हैं। 

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि, आपने कुछ देखा ?  धृतराष्ट्र ने कहा कि, हां देखा कि मैं एक जन्म में एक कछुआ की आंखों को दुष्टता पूर्वक फोड़ दिया। तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि उसी पाप के कारण, आज तुम इस जन्म में अंधे हो।

कुछ लोग कुतर्क करते हैं कि हम इस व्यक्ति के साथ यह गलत कर्म (चोरी, डकैती, बलात्कार, हत्या आदि) करेंगे, क्योंकि इसने पूर्व जन्म में हमारे साथ किया है। लेकिन यह सरासर गलत है। शास्त्र विरूद्ध, जो भी कर्म आप जानबूझकर करेंगे, वह नया पाप कर्म बनेगा, और उसका गलत फल कर्ता को भोगना पड़ेगा। वह कर्म, जो आपसे अनजान में या गलती से या अज्ञानता वश हो जाते हैं, वही कर्मों को पूर्व जन्म का कर्म फल माना जाता है, जानबूझकर किये जाने वाले कर्मों को नहीं। अतः आप जो भी कर्म करें, शास्त्र के अनुकूल कर्म करें। 

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