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Effects of planetary fields | हथेली पर पाए जाने वाले ग्रह क्षेत्रों के प्रभाव

इस लेख में हम हथेली पर पाए जाने वाले प्रत्येक ग्रह-क्षेत्रों के प्रभाव या गुणधर्म के बारे में विस्तृत वर्णन करेंगे

ग्रह-क्षेत्रों का मनुष्य के जीवन पर प्रभाव

प्रिय मित्रों! इस लेख में हम हथेली पर पाए जाने वाले प्रत्येक ग्रह-क्षेत्रों के प्रभाव या गुणधर्म के बारे में विस्तृत वर्णन करेंगे, इसलिए आप इस पोस्ट को पूरा ध्यान से पढ़िए। चूंकि हथेली पर कौन-सा ग्रह का कहां पर स्थान होता है इसके बारे में हम पहले ही विस्तृत वर्णन कर चुके हैं। अब हम बृहस्पति क्षेत्र से आरंभ करके प्रत्येक ग्रह क्षेत्र का अलग-अलग प्रभाव बताते हैं।

बृहस्पति-क्षेत्र का प्रभाव

बृहस्पति-क्षेत्र से आत्मविश्वास, सम्मान, अभिमान, धर्म, धन, न्याय, अच्छा विवाह संबंध (खासकर स्त्रियों में), जन-जीवन, प्रतिष्ठित स्थान, खर्च में उदारता, आज्ञा, कानून तथा बचपन व आगे भी शरीर का अच्छा उठाना आदि प्रकट होता है। यदि यह क्षेत्र अच्छा उठा हुआ हो और अंगुलियां भी अच्छी हों तथा क्षेत्रीय गुण भी सहायक हों तो जातक में उपरोक्त गुण बहुत अधिक मात्रा में मिलेंगे। इसके विपरीत यदि यह क्षेत्र दबा हुआ हो तो इस क्षेत्र के सभी गुणों में कमी आ जाएगी। 

यदि बृहस्पति क्षेत्र बहुत अधिक उठा हुआ हो तो उसके कई गुण, दोष में बदल जाते हैं। जैसे; आत्मविश्वास अभिमान में, कठोरता तानाशाही में परिवर्तित हो जाती है। बहुत बढ़े हुए बृहस्पति क्षेत्र से जातक में गठिया और अधिक रक्तपात जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं, किंतु भोजन व पीने की आदत में संयम रखने से यह बीमारी कम हो सकती है। 

यदि बृहस्पति-क्षेत्र बहुत दबा हुआ हो और उस पर छोटी-छोटी, आड़ी-पतली, अच्छी सी रेखाएं हों, जिनसे कोई भी विशेष चिन्ह न बनता हो तो जातक में सुस्ती और जीवन में आगे बढ़ने या कुछ करने की इच्छा बिल्कुल भी नहीं होती। दबे हुए बृहस्पति क्षेत्र के कारण व्यक्ति मतलबी प्रवृत्ति का होगा। 

अच्छे उठे हुए क्षेत्र की एक विशेषता यह भी होती है कि यह बच्चों को बढ़ने में विशेष सहायता करता है। अच्छे उठे हुए बृहस्पति-क्षेत्र वाले बच्चे, दबे हुए बृहस्पति-क्षेत्र वाले बच्चों की अपेक्षा अधिक लंबे-चौड़े, पुष्ट होंगे तथा युवा भी जल्दी होंगे। 

शनि-क्षेत्र का प्रभाव

जब हाथ में दूसरे ग्रह-क्षेत्रों की अपेक्षा शनि का क्षेत्र अधिक उठा हुआ हो तो जातक में शनि के गुणों की प्रधानता होती है। हस्तरेखा और ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार शनि के गुण इस प्रकार बताए गए हैं और पाए जाते हैं:

दर्शन तथा गुप्त-विज्ञान (जादू आदि) के प्रति रुचि, विचार-शीलता, गंभीरता, दूरदर्शिता, सावधान, भू-वस्तुओं (खेती, खादान) से लाभ, स्वतंत्रता, निश्चय, संतोष, मितव्ययिता, यथार्थ विज्ञान (गणित आदि) भाषण में निपुणता तथा लेखन कला में संक्षिप्तता के गुण पाए जाते हैं। शनि के ये गुण दूसरे ग्रहों के साथ नहीं मिलते, किंतु दूसरे क्षेत्रों के गुणों के अनुसार अवश्य बदलते हैं। यदि बृहस्पति का क्षेत्र भी पुष्ट है, तो जातक इतना मितव्ययी नहीं हो सकता, वह खर्च में उदार होगा। यदि शनि व बुध-क्षेत्र दोनों पुष्ट हों तो जातक विलक्षण बुद्धि का लेखक हो सकता है। यदि शनि और चंद्र क्षेत्र दोनों अच्छे उठे हुए हैं और शीर्ष रेखा चंद्र क्षेत्र की तरफ झुकी हो तो जातक दुख-प्रधान काव्यों की रचना करेगा।

शनि में नीचे लिखे हुए कुछ अप्रिय प्रकार के गुण भी पाए जाते हैं। जैसे; अविश्वास, संदेह, उदासीनता और सुस्ती, अदूरदर्शिता और असावधानी, अंधविश्वास, अधार्मिकता, हठ, लोभ, आवारागर्दी, अपेक्षाकृत निम्न वर्ग व बड़ी उम्र की स्त्रियों से संबंध (यदि शुक्र-क्षेत्र उन्नत हो), अविवाहित रहना (यदि शुक्र-क्षेत्र दुर्बल हो), खेती-खान आदि से हानि, घृणा, क्रूरता, अत्याचार आदि पाए जाते हैं।

यदि शनि-क्षेत्र बहुत ज्यादा उठा हुआ हो तो उसके बहुत से गुण लोप हो जाते हैं। यदि चंद्र और बुध-क्षेत्र दबे हुए हो तो जातक खब्ती और झकी हो सकता है। इससे व्यक्ति अस्वस्थ, असंतुष्ट तथा व्यवहारिक दुनिया में बहुत असफल हो सकता है। वह साधु-सन्यासी की संगत भी कर सकता है। यदि शनि-क्षेत्र सामान्य से कम उठा हुआ हो तो अच्छे गुण कम मात्रा में होंगे। यदि क्षेत्र बहुत दबा हुआ हो तो दुर्गुण उभरेंगे। यदि कोई अशुभ चिन्ह जैसे मेखला आदि भी हो तो अशुभ गुण और भी ज्यादा सामने आएंगे।

सूर्य-क्षेत्र का प्रभाव

यदि आप अपना हाथ खोल कर देखें तो हथेली में शनि क्षेत्र के समानांतर सूर्य क्षेत्र पाया जाता है। यह क्षेत्र तीसरी अंगुली (अनामिका) के नीचे होता है। यह क्षेत्र बहुत प्राचीन समय से ही सूर्य तथा कला से संबंधित रहा है। यह सूर्य क्षेत्र अच्छा उठा हुआ हो और तीसरी अंगुली बलवान हो व सूर्य-रेखा भी अच्छी हो, तो जातक में वास्तविक सूर्य संबंधित गुण बहुत अधिक मात्रा में मिलते हैं। इस क्षेत्र से कला, गायन, नृत्य, संगीत, चित्रकला, पत्थर पर नक्काशी, लेखन कला, जीवन में सम्मान, राजनैतिक उत्थान, सामाजिक प्रतिष्ठा आदि प्राप्त होते हैं। प्राचीन भारतीय मत के अनुसार सूर्य क्षेत्र विद्या और पांडित्य से संबंधित माना गया है। 

जातक जीवन के एक क्षेत्र में विशेष सफल होगा या दूसरे में; यह केवल मात्र अच्छे उठे हुए सुर्य_क्षेत्र से ही नहीं जाना जाता, बल्कि यह हाथ के दूसरे लक्षणों पर भी निर्भर करता है। उदाहरण के लिए; एक अच्छे संगीतज्ञ के हाथ में सूर्य-क्षेत्र ही अच्छा उठा हुआ नहीं होता वरन् चंद्र और शुक्र क्षेत्र भी अच्छे होते हैं और शीर्ष-रेखा भी चंद्र क्षेत्र की ओर उन्मुख दिखाई देती है। नृत्य कला के लिए अच्छी शारीरिक बनावट, उन्नत बुध-क्षेत्र और पुष्ट छोटी अंगुलियों का भी महत्व होता है। एक अच्छा सूर्य क्षेत्र, एक अच्छी शीर्ष रेखा, बढ़ा हुआ बुध-क्षेत्र और अन्दर चारों ओर से गोल व लम्बे पहले पर्व वाली चौथी अंगुली, सभी सम्मिलित रुप से मिलकर जातक को प्रसिद्ध लेखक बना सकते हैं। इस प्रकार किसी एक लक्षण से ही पूरा परिणाम नहीं निकाला जा सकता। सबका सम्मिलित प्रयास आवश्यक है।

एक अच्छा उठा हुआ सूर्य-क्षेत्र जातक को कोमल ह्रदय, जल्दबाज, चिड़चिड़ा, कर्तव्यशील, दयालु और कृतज्ञशील बनाता है। वह भाषण में श्रेष्ठ और धार्मिक मामले में उदार होता है। इसकी पसंद-नापसंद तेज होती है और विवाह के मामलों में सफल होता है।

यहां यह बतलाना भी अनुचित नहीं होगा कि बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ सूर्य-क्षेत्र अभिमान, आडंबर तथा दिखावे को प्रकट करता है। कम बढ़े हुए क्षेत्र में इस क्षेत्र के गुण कम मात्रा में आएंगे। इस क्षेत्र पर या ऋसके समीप हृदय रेखा पर यदि कोई गोले का चिन्ह हो तो जातक की आंखें कमजोर होगी, शारीरिक दृष्टि से यह लक्षण कमजोर नजर और हृदय की धड़कन से संबंध बतलाता है।

बुध-क्षेत्र का प्रभाव

बुध-क्षेत्र और छोटी अंगुली की विशेषताओं को अच्छी तरह समझने के लिए पहले यह समझ लेना चाहिए कि बुध से क्या देखा जाता है। बुध-क्षेत्र से विचारों का आदान-प्रदान, श्वास प्रणाली की तीव्रता, बोलने और लिखने में विचारों का प्रवाह, मनुष्य व सामान का आवागमन, प्रगतिशीलता की गतिशीलता और बुद्धि की तीव्रता प्रकट होती है। 

अच्छे बढ़े हुए बुध-क्षेत्र वाला व्यक्ति विचारने व कार्य करने में तीव्रगामी होगा। अतः ऐसे कार्यों में जहां तीव्रता से विचारने की आवश्यकता होती है, वहां जातक सफलता प्राप्त करता है। वह एक अच्छा वकील, खिलाड़ी, पत्रकार, प्रकाशक, प्रभावशाली जन नेता या प्रसिद्ध लेखक हो सकता है। बुध का मूल मंत्र, आवागमन होने के कारण जातक पोस्ट ऑफिस, रेलवे, सड़क, समुंद्र या वायु के यातायात विभाग में विशेष कार्य कर सकता है। वह घूमने-फिरने का शौकीन भी होता है। बुध-क्षेत्र वाले व्यक्ति ब्रोकर, कमीशन-एजेंट, व्यापारी, लेखक व अनुवादक भी पाए जाते हैं। यदि बुध अंगुली (कनिष्ठिका) का तीसरा पर्व अच्छा है तो वह व्यक्ति व्यापार में सफल हो सकता है।

बुध प्रधान व्यक्ति तीव्रगामी होते हैं, इसलिए खेलकूद में जहां तीव्रता की विशेष आवश्यकता होती है, वे सफल होते हैं। किंतु बोझ उठाने या डिस्क फेकने जैसे खेलों में, जिनमें मांसपेशियों की शक्ति की अधिक जरूरत मुख्य रूप से होती है, वहां वे सफल नहीं हो पाते। 

बुध-क्षेत्र वाले व्यक्ति परिवर्तन पसंद करते हैं। बुध प्रधान व्यक्ति भाषण, लेखन या व्यवहार में दूसरों की नकल करने में भी प्रवीण होते हैं। एक अच्छा उठा हुआ बुध-क्षेत्र वाला व्यक्ति ज्योतिष, गणित, हिसाब, सांख्य विज्ञान तथा यथार्थ विज्ञान में विशेष योग्यता प्रदान करता है। ये अच्छे डॉक्टर या नर्स भी हो सकते हैं। 

यदि बुध-क्षेत्र बिगड़ा हुआ या अच्छा उठा हुआ नहीं है तो सभी अच्छे गुण बहुत कम मात्रा में मिलेंगे। क्षेत्र पर बुरे चिन्ह और भी खराब प्रभाव डालेंगे। ऐसा व्यक्ति बहुत छिछले ज्ञान का, बकवासी और झूठा भी हो सकता है। वह मानसिक एकाग्रता के लिए सर्वथा अयोग्य होगा। बुध को ज्योतिष शास्त्र में छठे घर कन्या राशि का स्वामी बतलाया गया हैं, इसलिए बिगड़ा हुआ बुध-क्षेत्र श्वास तथा लीवर की बीमारी भी उत्पन्न करता है।

मंगल-क्षेत्र का प्रभाव

मंगल ऐसा ग्रह है जिसके हाथ में दो क्षेत्र मिलते हैं, जबकि अन्य ग्रहों के केवल एक-एक क्षेत्र ही पाए जाते हैं। बृहस्पति और शुक्र-क्षेत्र के बीच का भाग निचला मंगल कहलाता है तथा बुध व चंद्र क्षेत्र के मध्य अथवा शीर्ष रेखा और हृदय रेखा के मध्य हथेली के अंत में स्थित मंगल-क्षेत्र ऊपरी मंगल कहलाता है। 

मंगल से शारीरिक बल, हड्डी की मज्जा, रक्तशक्ति, लड़ने की ताकत, साहस, निडरता, सहनशक्ति, धृष्टता, निर्भयता, स्पष्टवादिता, खर्च में उदार तथा प्रवृत्ति प्रभावी प्रकट होती है। निचले मंगल से कार्यशीलता, साहस तथा आक्रामक शक्ति प्रकट होती है, जबकि ऊपरी मंगल दूसरे के भयंकर आक्रमण को स्थिर व साहसपूर्वक रोकने की सामर्थ्य बतलाता है। संक्षेप में ; निचले मंगल से आक्रामकता और ऊपरी मंगल से बचाव की भावना प्रकट होती है।

मंगल पर कोई भी अंगुली नहीं होती, जो उसे सहारा या अनिष्ट फल दे। किंतु लड़ाकूपन में इच्छाशक्ति महत्वपूर्ण होती है और इसके लिए अंगूठे के दूसरे पर्व का परीक्षण बहुत आवश्यक है। यदि यह पर्व लंबा और पुष्ट है तो यह क्षेत्र के अच्छे गुणों को बढ़ाता है। यदि निचला क्षेत्र बहुत बढ़ा हो तो जातक झगड़ालू होता है। एक साधारण अच्छे बढ़े हुए क्षेत्र से उपरोक्त सभी गुण मिलेंगे, किंतु बहुत अधिक बढ़ा हुआ मंगल क्षेत्र लड़ाकूपन और कठोरता की ओर प्रेरित करेगा। 

मंगल का संबंध अग्नि से होता है, इसलिए अच्छे मंगल-क्षेत्र वाले व्यक्ति को अग्निप्रधान (बॉयलर) उद्योगों में कार्य करने की विशेष संभावना होती है। दबे हुए मंगल-क्षेत्र वाले व्यक्ति डरपोक होते हैं। उनमें आगे बढ़ने तथा साहस की कमी होती है। उनमें लगन व अध्यावसाय की भी न्यूनता होती है, जिससे वे कार्य को अधूरा ही छोड़ देते हैं। अच्छे मंगल-क्षेत्र वाले विश्वासी, प्रसिद्ध व साहसी होते हैं किंतु बिगड़े हुए चिन्ह वाले व्यक्ति बोलने और तौर-तरीके में असभ्य, चंचल व झगड़ालू स्वभाव के होते हैं।

चन्द्र-क्षेत्र का प्रभाव

चंद्रमा और शुक्र जल प्रधान ग्रह हैं। अतः इन दोनों में गुण प्रायः समान होते हैं, जैसे कविता करना, स्त्रियों अथवा पुरुषों की तरफ झुकाव, इच्छाशक्ति, पोशाक व वातावरण के शीघ्र अनुकूल होना, कला-प्रशंसक, जलीय पदार्थों से लाभ। शुक्र प्रधान व्यक्ति इंद्रियों से विशेष प्रभावित होते हैं, जबकि चंद्र प्रधान व्यक्ति कल्पना से। एक अच्छे चंद्र- क्षेत्र वाले व्यक्ति कल्पना शक्ति का विशेष महत्व होता है। चंद्र-क्षेत्र की ओर ढ़लती हुई शीर्ष रेखा वाले व्यक्ति प्रेमी होते हैं। किंतु यदि शनि क्षेत्र तथा दूसरी अंगुली से वैराग्य भाव प्रकट होता हो तो जातक पागल भी हो सकता है। यदि हाथ के अन्य लक्षणों से विशेष बुद्धिमानी प्रकट होती हो तो जातक कवि बन सकता है। 

सुंदर और अच्छा उठा हुआ चंद्र-क्षेत्र जातक को जल यात्रा का शौकीन बनाता है। शुक्र के अच्छे उठे हुए क्षेत्र के साथ यदि चंद्र क्षेत्र भी उठा हुआ हो तो जातक में पोशाक बनाने, सिल्क के व्यापार, पेय, बागीचा, फूल तथा श्वेत वस्तुओं के प्रति आकर्षण रहता है। एक सुंदर उठे हुए चंद्र-क्षेत्र से कल्पना, भावुकता, आदर्शात्मक तथा प्रेम प्रकट होता है। किंतु बहुत बढ़ा हुआ क्षेत्र हवाई कल्पना प्रकट करता है, इससे वास्तविक कार्य में कम शारीरिक क्षमता होती है। इसी प्रकार बहुत बड़ा हुआ क्षेत्र गणित तथा वास्तविक विज्ञान में बाधा डालता है। 

चंद्र बुध और शनि क्षेत्र, यदि ये तीनों खराब हो तो जातक पागलपन या लकवे का शिकार हो सकता है। यदि चंद्र बहुत खराब हो तो गुर्दे की बीमारी या गर्भाशय तथा ब्लैडर की खराबी हो सकती है। चन्द्र-क्षेत्र पर खराब चिन्ह होने से विकृत कल्पना, बकवास तथा सत्य को दोषी मानने की प्रवृत्ति प्रकट होती है।

शुक्र-क्षेत्र का प्रभाव

इससे शारीरिक पक्ष में शुक्र-क्षेत्र से यौन संबंध तथा पुरुषत्व देखा जाता है। मानसिक पक्ष में सौंदर्यशास्त्र और दैहिक पक्ष में प्रगाढ़ सांसारिकता से युक्त प्रेम देखा जाता है। शुक्र-क्षेत्र व हृदय रेखा से ही जातक में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी देखा जाता है। जातक में किस सीमा तक सौंदर्य के प्रति प्रवृत्ति बढ़ती है, यह चंद्र व शुक्र क्षेत्र तथा सूच्याकार हाथ की सूर्य अंगुली व क्षेत्र से मालूम पड़ता है। जातक में दैविक प्रवृतियां बृहस्पति, शुक्र व शनि क्षेत्र से लक्षित होती हैं। 

शुक्र का अच्छा क्षेत्र आरामदेह व अच्छी जिंदगी प्रकट करता है। चूंकि यह क्षेत्र जीवन रेखा से घिरा रहता है, अतः जीवन रेखा जितनी ज्यादा गोलाई लेगी, शुक्र-क्षेत्र उतना ही बड़ा होगा। शुक्र उत्पत्ति से संबंध रखता है। यह पुरुष हाथ में पुरुषत्व बतलाता है। अतः यदि पुरुष हाथ में शुक्र-क्षेत्र धंसा या दबा हुआ है, पुरुषत्व में उफान नहीं होगा। स्त्री हाथ में खराब शुक्र-क्षेत्र से संतान क्षमता में कमी होगी।

खुरदुरा व मेखला युक्त शुक्र क्षेत्र बहुत अधिक इंद्रिय शक्ति बताता है। एक अच्छे बड़े हुए शुक्र क्षेत्र से (यदि अन्य लक्षणों से कलाकार बनने का संकेत मिलता हो) सौजन्यता, सामाजिक व समन्वयता प्रकट होती है। जातक इस क्षेत्र में उन्नत होगा क्योंकि शुक्र का दूसरा नाम ही प्रेम व सुंदरता है।

यदि शुक्र क्षेत्र प्रभावशाली है और अंगुलियां छोटी हो तो जातक पाककला में पारंगत होता है। हथेली पर खराब चिन्ह दुर्बल चरित्र के परिचायक हैं। यदि त्वचा खुरदरी और मांसपेशियां मांसल हो तो जातक सुस्त होता है। 

अन्तिम बात 

इस तरह ग्रह-क्षेत्र की परीक्षा करते समय हाथ के आकार, अंगुलियां और दूसरे के प्रभाव को भी देखना चाहिए। चूंकि शरीर की संरचना बनाना या शरीर का निर्माण करना ईश्वर का कार्य है इसलिए किसी भी व्यक्ति को अपने शरीर की संरचना पर बहुत अधिक गव या हीनता प्रकट नहीं करना चाहिए तथा उन्नति का सदैव प्रयास करना चाहिए, क्योंकि शरीर का निर्माण तो अब हो चुका है, लेकिन संरचना के गुणधर्मों को जानना उत्तम विचार है। अतः किसी भी प्रकार का गर्व या पश्चाताप ना करें, व सदैव अपनी उन्नति का प्रयास करें। 

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