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Ganesh Chaturthi or Sankashta Chaturthi । गणेश चतुर्थी महिमा व पूजा की सम्पूर्ण विधि

प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष में चतुर्थी तिथि को गणों के अधिनायक गणपति भगवान की पूजा और व्रत करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसके बारे में मैं आप

गणेश चतुर्थी या संकष्टचतुर्थी की पूरी जानकारी:

प्रिय मित्रों! जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष में चतुर्थी तिथि को गणों के अधिनायक गणपति भगवान की पूजा और व्रत करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसके बारे में मैं आप लोगों को यहां पर विस्तृत जानकारी दे रहा हूं। कृपया ध्यान से आप लोग मेरे इस पोस्ट को पढ़ें-

चूॅंकि किसी भी पूजा-अर्चना से फल की प्राप्ति के लिए विशेष नियमों के अनुसार पूजा करने की आवश्यकता होती है। यदि आपका उपनयन संस्कार हुआ है तो आपको हमारे हिंदू धर्म के अनुसार, किसी पूजा के लिए जितने भी नियम बताए गए हैं उनमें से आपको अधिकांश नियमों का पालन या पूरा नियमों का पालन करना ही चाहिए, तभी आपको पूर्णता फल की प्राप्ति हो सकती है। 
लेकिन यदि आपका उपनयन संस्कार नहीं हुआ है अर्थात् यदि आप द्विज् जाति में नहीं आते हैं तो कोई बात नहीं; सिर्फ आप साफ - सफाई और श्रद्धा भक्ति से युक्त, पौराणिक मंत्रों के द्वारा या बिना मंत्र के भी पूजा -  अर्चना करके वही फल या पूर्ण फल की प्राप्ति कर सकते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है।

कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन गणों के अधिनायक गणपति देव की यथा विधि पूजा - अर्चना करने से महान फल की प्राप्ति होती है।


Ganesh Chaturthi

कृष्ण (चंद्रोदय व्यापिनी पूर्व विद्धा) चतुर्थी को गणपति - स्मरण पूर्वक प्रात स्नानादि नित्य कर्म करने के उपरांत 'मम सकलाभीष्टसिद्धये चतुर्थी व्रतं करिष्ये' इस प्रकार संकल्प करके, भगवत्पूजन करके, दिन भर मौन रहकर, रात्रि में पुन: स्नान करके विशिष्ट गणपति - पूजन के पश्चात चंद्रोदय के बाद चंद्रमा का पूजन व अर्घ्य देकर फिर भोजन करने से यह व्रत पूर्ण होता है। इसकी सारी विधि इस प्रकार है-

सर्वप्रथम पूजन की समस्त प्रारम्भिक क्रियाओं को सम्पन्न करें।

 पूजा में प्रयुक्त होने वाला प्रणव से युक्त मूल मंत्र-  

"ॐ ग: स्वाहा "

 गणेश जी की पूजा में अंगन्यास इस प्रकार करना चाहिए-

ॐ ग्लौं ग्लां हृदयाय नमः मन्त्र बोलते हुए (दाहिने हाथ की पांचों अंगुलियों से हृदय का स्पर्श)

ॐ गां गीं गूं शिरसे स्वाहा मन्त्र बोलते हुए (सिर का स्पर्श) 

ॐ ह्रूं ह्रीं ह्रीं शिखायै वषट् मन्त्र बोलते हुए (शिखा का स्पर्श) 

ॐ गूं कवचाय वर्मणे हुम्  मन्त्र बोलते हुए (दाहिने हाथ की अंगुलियों से बाएं कंधे का और बाएं हाथ की अंगुलियों से दाहिने कंधे का स्पर्श)

ॐ गौं नेत्रत्राय वौषट्  मन्त्र बोलते हुए (दाहिने हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्य भाग का स्पर्श)

 ॐ गों अस्त्राय फट्  मन्त्र बोलते हुए (यह वाक्य पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बाई ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिने ओर से आगे की ओर ले आए और तर्जनी तथा मध्यमा उंगलियों से बाएं हाथ की हथेली पर ताली बजाए) ।

  गणपति आवाहन के लिए निम्नलिखित मंत्र का प्रयोग करना चाहिए-

आगच्छोल्काय गन्धोल्क: पुष्पोल्को धूपकोल्कक:।

दीपोल्काय महोल्काय बलिश्र्चाथ विसर्जनम् ।।

हे गंध, पुष्प तथा धूप में तेज: स्वरूप विद्यमान रहने वाले देव ! आप इस रचित पूजा मंडल में स्थित दीपक में तेज प्रदान करने के लिए और महातेज देने के लिए, बलि और विसर्जन तक विद्यमान रहने के लिए यहां उपस्थित हों।

 आवाहन के पश्चात गायत्री मंत्र से करन्यास करना चाहिए। वह मंत्र इस प्रकार है-


 ॐ महाकर्णाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति: प्रचोदयात्।

 ध्यान -

करन्यास करने के बाद इसी मंत्र (ॐ महाकर्णाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति: प्रचोदयात्।) से श्री गणेश जी का ध्यान करना चाहिए।

→ अब श्रद्धा पूर्वक ॐ गणाय नम:, ॐ गणपतये नम:, ॐ कूष्मांडाय नम: मन्त्रों द्वारा श्री गणेश जी की ससामर्थ्य दूर्वा, हल्दी, तिल, चन्दन, लड्डू इत्यादि का प्रयोग करते हुए पंचोपचार, दसोपचार या षोडशोपचार पूजन करें।

→ फिर सामर्थ्य के अनुसार अमोघोल्क, एकदन्त, त्रिपुरान्तकरूप, श्यामदन्त, विकरालास्य, आहवेष और पद्मदंष्ट्रा नामक प्रमुख गणों की भी पूजा करें।

→ अब ॐ गणाय नम:, ॐ गणपतये नम:, ॐ कूष्मांडाय नम: मंत्रों के अंत में स्वाहा शब्द लगाकर गणेश जी को इच्छा अनुसार या ब्राह्मण के कथन अनुसार आहुति प्रदान करें।

→ अब अमोघोल्क, एकदन्त, त्रिपुरान्तकरूप, श्यामदन्त, विकरालास्य, आहवेष और पद्मदंष्ट्रा नामक प्रमुख गणों के अन्त में नम: और स्वाहा शब्द लगाकर इन्हें भी आहुति प्रदान करें और इच्छानुसार सभी देवी - देवताओं को आहुति प्रदान करें।

→ इसके बाद व्रती गणदेवों के लिए मुद्रा-प्रदर्शन, नृत्य, हस्तताल, भजन, तथा हास्य भाव प्रदर्शित करके क्षमा प्रार्थना करे; ऐसा करने से उसे सौभाग्य आदि फलों की अधिकाधिक प्राप्ति होती है। 

गणेश जी के जप का मूल मंत्र- 

ॐ गं गणपतये नम:

गणेश चतुर्थी या संकष्टचतुर्थी की महिमा:-

श्री गणेशजी के इस पूजन व व्रत को करने से विद्या, लक्ष्मी, कीर्ति, आयु और संतान की प्राप्ति होती है।

चतुर्थी तिथि को उपवास रखकर विधि विधान से गणपति देव की पूजा करके उनका जप, हवन और स्मरण करना चाहिए। इस व्रत को करने से व्यक्ति को विद्या, स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्त होता है।

यदि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को खांड के लड्डू (मोदक) और श्वेतकमल से श्री विघ्नेश्वर की पूजा की जाए तो समस्त कामनाओं की सिद्धि तथा सौभाग्य और साधक को पुत्र (सन्तान) का फल प्राप्त होता है। 

किसी भी मास में, जो व्यक्ति श्री गणपति देव की पूजा, स्मरण और जप, होम करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं तथा समस्त विघ्नों का विनाश हो जाता है। 

Conclusion :-

मनुष्य को भगवान आदि देव श्री विनायक जी की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से उसको सद्गति की प्राप्ति होती है और जब तक वह इस लोक में रहता है, यदि वह नियमपूर्वक रहता है तो, तब तक समस्त सुखों का उपभोग करता है और अंत समय में उसे स्वर्ग लोक और मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

!! सनातन धर्म की जय हो !! 

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