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गुलामी से पहले भारत कैसा और क्या था ?

अंग्रेजों और मुगलों के आक्रमण से पहले भारत कैसा था और क्या था ? भारत कभी महान था या नहीं ? लुटेरों ने भारत को किस तरह लूटा और भारत की प्राचीन सभ्यता व

पहले भारत क्या व कैसा था ?

What was India like and what was it before the invasion of the British and the Mughals (अंग्रेजों और मुगलों के आक्रमण से पहले भारत कैसा था और क्या था ) ?

प्रिय मित्र! अनेक लोग भारत की प्राचीन सभ्यता व संस्कृति पर अनेक गलत सवाल उठाते हैं, और निंदा करते हैं तथा पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति का बखान करते हैं और उसी के द्वारा भारत में रामराज्य स्थापित करना चाहते हैं और पाश्चात्य संस्कृति में विकास व शांति की तलाश करते हैं, लेकिन क्या आप या भारत की प्राचीन सभ्यता व संस्कृति की निंदा करने वाले लोगों को यह पता है कि भारत के प्रति पाश्चात्य (विदेशी) लोगों का क्या विचार था एवं विदेशी लोग भारत को क्या समझते थे?

पहले भारत कैसा और क्या था ?

अंग्रेजों और मुगलों के आक्रमण से पहले भारत कैसा था और क्या था ? भारत कभी महान था या नहीं ? लुटेरों ने भारत को किस तरह लूटा और भारत की प्राचीन सभ्यता व संस्कृति को किस प्रकार नुकसान पहुंचाया ? 

इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको इस लेख में मिल जाएंगे, जिसमें से कुछ उत्तर भारत को लूटने वालों द्वारा ही दिए गए हैं -

1. ब्रिटिश संसद में भारत के प्रति लॉर्ड मैकाले का अभिभाषण:-

ब्रिटिश संसद में भारत के प्रति लॉर्ड मैकाले का अभिभाषण

 "I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is a beggar, who is a thief such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage and therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their selfesteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation". (Lord Macaulay's Address to the British Parliament on 2nd Feb 1835)

हिन्दी अनुवाद-

"मैंने पूरे भारत में यात्रा की है और मैंने एक भी व्यक्ति नहीं देखा है जो एक भिखारी है, जो चोर है, ऐसा धन मैंने इस देश में देखा है, ऐसे उच्च नैतिक मूल्य, ऐसे क्षमता वाले लोग, जो मैं नहीं देखता सोचते हैं कि हम कभी भी इस देश को जीत लेंगे, जब तक कि हम इस राष्ट्र की रीढ़ को नहीं तोड़ते, जो कि उसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत है और इसलिए, मेरा प्रस्ताव है कि हम उसकी पुरानी और प्राचीन शिक्षा प्रणाली, उसकी संस्कृति को बदल दें, क्योंकि यदि भारतीय यह सोचते हैं कि सभी वह विदेशी है और अंग्रेजी अच्छी है और अपने से बड़ी है, वे अपना आत्मसम्मान, अपनी मूल संस्कृति खो देंगे और वे वही बन जाएंगे जो हम उन्हें चाहते हैं, वास्तव में एक प्रभुत्व वाला राष्ट्र"। (2 फरवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में लॉर्ड मैकाले का अभिभाषण।)

जब लार्ड मैकाले (Lord Macaulay) ने इतना कहा है, तो फिर लार्ड मैकाले कौन था ? यह भी जानना जरूरी है, तो चलिये जानते हैं-

लार्ड मैकाले कौन था ?

लॉर्ड मैकाले का पूरा नाम 'थॉमस बैबिंगटन मैकाले (Thomas Babington Macaulay)' था। यह प्रसिद्ध अंग्रेज़ी कवि, एक निबन्धकार, इतिहासकार व राजनीतिज्ञ था। इसका जन्म 25 Oct, 1800 ई. में हुआ था और मृत्यु 28 Dec, 1859 ई. में हुई थी। निबन्धकार और समीक्षक के रूप मे उसने ब्रिटिश इतिहास पर जमकर लिखा । सन् 1834 से 1838 ई. तक वह भारत की सुप्रीम काउंसिल में Law member तथा Low commission का प्रधान भी रहा। 

इसका भाषण पढ़कर आप समझ चुके होंगे कि लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजों को भारत की प्राचीन सभ्यता संस्कृति और आध्यात्मिकता को तोड़ने के लिए किस तरह से उकसाया और उन्होंने भारतीय संस्कृति और शिक्षा को नष्ट भ्रष्ट किया, क्योंकि लॉर्ड मैकाले और अंग्रेजों के दिमाग में भारत हर प्रकार से प्रभुत्व सम्पन्न राष्ट्र था और वे लोग इसे नष्ट भ्रष्ट करने में लग गए।

2. भारत के प्रति विदेशी विद्वान थार्टन (Tharton) का मत:

इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान "थार्टन" ने अपनी पुस्तक "anHappy India" में लिखा है कि-

 "जब नील नदी की घाटी में सभ्यता पर दृष्टिपात करने वाले पिरामिडों की सृष्टि भी नहीं हुई थी, जब यूरोपीय सभ्यता का केंद्र समझे जाने वाले देश यूनान और रोम बिल्कुल असभ्य थे, उस समय भारत वर्ष सभ्य सुशिक्षित और धन वैभव का धाम था तथा उस समय भारत की राजधानी 'अयोध्या' थी।"

3. भारत के प्रति इतिहासवेत्ता विस्काउंट पार्लामर्स्टन का मत:

प्रसिद्ध इतिहासकार Viscount Parlamerston ने अपनी पुस्तक व्हाट इंडिया वांट्स (What India Wants) के पृष्ठ 133 पर लिखा है, कि "जब संसार की समस्त जातियां और शासक अंग्रेज और बर्बर अवस्था में थे, उस समय भारत सभ्यता के उच्च शिखर पर था और उसकी राजधानी अयोध्या थी।"

4. भारत के प्रति Major D. Grahpole का मत:

Major D. Grahpole ने अपनी पुस्तक Modern Review of June 1934 में लिखा है कि "आर्यवर्त  भारत सबसे सभ्य सुशिक्षित था और उसकी राजधानी अयोध्या थी, जबकि हमारे पूर्वज वल्कल पहने जंगलों में घूमा करते थे।"

5. भारत के प्रति प्रोफेसर कालबुक का मत:

यूरोप के प्रसिद्ध विद्वान प्रोफ़ेसर कालबुक ने अपनी पुस्तक Gild India के पृष्ठ 76 पर लिखा है कि "भारत वर्ष से ज्ञान और सभ्यता के ज्योति सबसे पहले यूनान गई और फिर वहां से रूम और समस्त यूरोप में फैली। उस समय भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रधान केंद्र अयोध्या था और भारत सर्व संपन्न था।"

6.  भारत के प्रति नोबेल पुरस्कार विजेता V.S. Naipaul का मत:

इन्होंने अपनी पुस्तक India: A Wounded Civilization में लिखा है कि "भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा विचित्र देश है जहां आजादी के बाद से भारत के राष्ट्रवाद को बढ़ाने वाला नहीं बल्कि राष्ट्रवाद को घटाने वाला इतिहास पढ़ाया जाता है, जिन्होंने भारत को लूटा और नष्ट भ्रष्ट किया, सिर्फ उनके इतिहास को पढ़ाता है, इससे बड़ा दुर्भाग्य और कोई नहीं है।"

7. भारत में 70 के दशक में पत्रकार बनकर रहने वाला जासूस यूरी ब्रेज़नेव मत:

इन्होंने अपनी पुस्तकों में लिखा है कि "हमें एजेंडा दिया गया था कि भारत की संस्कृति को कैसे तबाह करना है, और हम लोगों ने भारत की संस्कृति को हर तरह से तबाह किया है।"

8. सोमनाथ मंदिर को तोड़ने वाले आक्रमणकारी महमूद गजनबी का लेखक उत्बी का मत:

उत्बी ने अपनी पुस्तक तारिकूल यामिनी (तारीख- ए-यामिनी) में लिखा है कि "जब महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण करके उसे अपने कब्जे में ले लिया, तो उसे छुड़ाने के लिए भारत के राजा और साधु संत व पुजारी उसके पास पहुंचे और उससे बोले कि यह शिवलिंग मत तोड़िए, इसके लिए हम आपको एक करोड़ सोने की मुद्राएं देने को तैयार हैं, मोहम्मद गजवनी ने जवाब दिया कि, मैं शिवलिंग को तोड़ दूंगा जरूर इसलिए कि कयामत के दिन में बुत् सिकन (मूर्ति तोड़ने वाला) के रूप में जाना जाऊं, न कि बुत् फरोश (मूर्ति पूजने वाला) के रूप में।"

निष्कर्ष 

यह सर्वदा सत्य है की भारत सर्व संपन्न और विश्व में अग्रणी देश था। बाद में इसकी सभ्यता और संस्कृति को आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट भ्रष्ट किया गया। 

अनेक आक्रमणकारियों द्वारा भारत के धर्म ग्रंथों और आध्यात्मिक पुस्तकों को भारत से विदेशों में ले जाया गया।

 11वीं शताब्दी में मुगल तुर्की शासक बख्तियार खिलजी द्वारा भारत के शिक्षा के केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगाया गया, जो आग तीन महीनों तक लगातार जली और अनेक पुस्तकों को जलाकर राख कर दी। आग इसलिए लगवाई गई थी कि भारत का आयुर्वेद ज्ञान मुगल ज्ञान से आगे क्यों है, इस जलन के कारण बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगा दी थी और अनेक आध्यात्मिक पुस्तकें आग में जलकर राख हो गई।

ऐसे अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं, जो भारत की संस्कृति और सभ्यता को नष्ट करने में लगे हुए थे और भारत की संस्कृति और सभ्यता को नष्ट किए।

भारत पर मुगल आक्रमणकारियों और अन्य आक्रमणकारियों के बीच एक विचित्र अंतर देखने को मिलता है - अन्य आक्रमणकारियों ने भारत की संस्कृतिक वस्तुओं और आध्यात्मिक पुस्तकों तथा अनेक ज्ञानवर्धक पुस्तकों पर शोध करने के लिए और रिसर्च करने के लिए अपने - अपने देश लेकर चले गए लेकिन मुगल आक्रमणकारियों ने भारत के ज्ञानवर्धक पुस्तकों को जलाकर राख कर दिया तथा इसकी  सांस्कृतिक वस्तुओं व अनेक मंदिरों को तोड़ दिया अथवा कब्र या मजारों में बदल दिया, जबकि अंग्रेजों ने ऐसा नहीं किया। अंग्रेज व अन्य आक्रमणकारी भारत की जिन सांस्कृतिक वस्तुओं को विदेशों में या आपने यहाॅं लेकर गए, वहां पर वे उसे सुरक्षित रखे रहे तथा उस पर शोध इत्यादि करते रहे, लेकिन मुगल आक्रमणकारियों ने भारत की सांस्कृतिक वस्तुओं को तोड़ दिया अथवा कब्रों, मस्जिदों या दरगाहों में लगा दिया।

भारत की अमूल्य सांस्कृतिक सभ्यता को अनेक प्रकार से नष्ट किया गया। भारतीय संस्कृति की अनेक धार्मिक पुस्तकों में जगह जगह पर अनेक गलत प्रक्षिप्त अंश भी भरे गए। 

भारत की संस्कृति को हर तरह से तबाह करने के लिए फिल्मों के माध्यम से भारतीय संस्कृति - सभ्यता का मजाक उड़ाया गया और आज भी मजाक उड़ाया जाता है।

अनेक प्रकार के शोध करने के उपरांत ज्ञात होता है कि भारतवासी जैसे-जैसे मंत्र शक्ति और अध्यात्म बल में कमजोर होते गये, वैसे-वैसे भारत की संस्कृति और सभ्यता का पतन होता गया। भारत वासियों का मंत्र बल, मंत्र शक्ति या अध्यात्म बल में कमजोर होना ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति के पतन का विशेष और प्रमुख कारण है। यह भी सर्वदा सत्य है कि, अच्छे आचरण, अच्छी सभ्यता व मंत्रों से सब कुछ ( चिकित्सा, रक्षा, विकास)  संभव है, लेकिन जैसे-जैसे भारतवासी मंत्र के प्रभाव को भूलते गए और आध्यात्मिकता को खोते गए, वैसे वैसे अपनी सभ्यता और संस्कृति के पतन का कारण होते गए।

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