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श्री गुरुग्रंथ साहिब और वेद

श्री गुरुग्रंथ साहिब के वाणीकारों में वेदों के प्रति अपार श्रद्धा है। श्री गुरुग्रंथ साहिब में वेद-ज्ञान की परंपरा से संबंध स्थापित करने का एकमात्र

!! श्री गुरुग्रंथ साहिब और वेद  !!

प्रिय मित्रों ! इस लेख में हम लोग हिंदू धर्म / वैदिक सनातन धर्म का सिख धर्म से संबंध जानने का प्रयत्न करेंगे; कि सिख धर्म किस प्रकार से हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा है। हिंदू धर्म / वैदिक सनातन धर्म के कुछ अनुयायी लोग केवल परिस्थिति विशेष के कारण सिख धर्म का निर्माण किए; लेकिन सिख धर्म का मार्ग भी वैदिक धर्म को अनुसरण करना ही है। तो आइए देखते हैं --

1. श्री गुरुग्रंथ साहिब के वाणीकारों में वेदों के प्रति अपार श्रद्धा है। श्री गुरुग्रंथ साहिब में वेद-ज्ञान की परंपरा से संबंध स्थापित करने का एकमात्र उपाय सच्चा बोलना माना गया है। 

2. सिख साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान डॉक्टर तारण सिंह ने अपनी पुस्तक "भक्तिते शक्ति" (पृष्ठ 19) में लिखा है --

"सिख धर्म अपनी धर्म पुस्तक में बिल्कुल भारतीय है और राष्ट्रीय दृष्टिकोण को धारण करने वाला है। श्री गुरुग्रंथ साहिब अपने आपमें एक वेद है।

इतना ही नहीं;  डाॅ तारण सिंह अपनी एक अन्य पुस्तक "श्री गुरुग्रंथ साहिब का साहित्यिक इतिहास" (पृष्ठ 31) में लिखते हैं --  "वेद प्रभु के बारे में परंपरागत ज्ञान का स्रोत है। जब तक किसी मनुष्य को भारतीय धर्मग्रंथों का सम्यक् ज्ञान नहीं, जो हमारी परंपरागत निधि हैं, तब तक वह इस वेद (गुरुग्रंथ) को नहीं समझ सकेगा। यह महान ग्रंथ उसी प्राचीन सनातन ज्ञान से अविर्भूत हुआ है तथा उसी परंपरा को विकास प्रदान करता है। इस तरह यह नयी कृति भी है, परंतु सर्वथा नयी नहीं है, क्योंकि इसकी जड़ वेद में है। भारतीय ब्रह्मविद्या का सम्यक् ज्ञान ही किसी मनुष्य को श्री गुरुग्रंथ साहिब की वाणी का बोध प्राप्त करने के लिए सहायक सिद्ध हो सकता है। इसके बिना इस ग्रंथ के रहस्यमय भेदों को समझना कठिन है।"

3. सही बात तो यह है कि श्री गुरुग्रंथ साहिब में वेद-ज्ञान की परंपरा से संबंध स्थापित करने का एकमात्र उपाय सच बोलना कहा गया है। इसीलिए तो गुरु नानक देव जी ने वेदों की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि --

केहा कंचन तुहै सारू, अगनी गंढु वाए लोहारू।

गोरी सेती तुटै भतारू, पुर्ती गंढु पवै संसारि।

राजा मंगै दितै गंढ पाई, मुखिया गंढु पवैजा खाई।

काला गंढु नदी आ मोह झोल, गंढु परीती मीटे बोल।

बेदा गंढु बोले सचु कोई, मुइआ गंढु ने की सुत होई।

अर्थात् यदि कांसा, लोहा, स्वर्ण टूट जाए तो सोनार अग्नि से गांठ लगा देते हैं, यदि पत्नी के साथ पति टूट जाए तब संसार में पुत्री से गांठ बंध जाती है, यदि राजा कुछ मांगे तब देने से संबंध बनता है, भूखे प्राणों का सुख साथ तब बनता है यदि कुछ खाया जाए, अकाल से टूटे हुए जीवों का संबंध तब होता है यदि अत्यंत वर्षा हो जाए और नदियां उतरा कर चलें। प्रीति में गांठ मीठे बोलने से बनती है। यदि कोई सत्य बोले तो उसका वेदों के साथ संबंध बन जाता है। 

4. वेदों के प्रति श्री गुरुग्रंथ साहिब की वाणीकारों सिख धर्मगुरुओं की अपार श्रद्धा है। वे तो ऊँचे स्वर से घोषणा करते हैं कि वेद शास्त्र तो पुकार-पुकार कर मनुष्य को सीधे मार्ग पर आने को कहते हैं, परंतु यदि कोई बहरा सुने ही न, तो इसमें वेद शास्त्रों का क्या दोष है ?

सिख धर्म के पंचम गुरु अर्जुनदेव की वाणी श्री गुरुग्रंथ साहिब (पृष्ठ 408) में इस प्रकार है --

वेद सास्त्रन जन पुकारहि सुनै नाही डोरा।

निपटि बाजी हारि मूका पछताइओ मनि भोस।

अर्थात् वेद-शास्त्र, संतजन आदि पुकार-पुकार कर बतलाते हैं, पर माया के नशे के कारण बहरा हो चुका मनुष्य उनके उपदेश को सुनता नहीं। जब बिल्कुल ही जीवन बाजी हार कर अंत समय पर आ पहुंचता है तब यह मूर्ख अपने मन में पछताता है। 

5. सिख धर्म के 9वें गुरु तेगबहादुर जी ने वेदों के श्रवण मनन को भी साधु मार्ग अथवा संतमत में अनिवार्य माना है। इसीलिए तो वह गुरुमति साधना मार्ग में वेदों को महत्वपूर्ण स्थान देते हैं। इस संबंध में श्री गुरुग्रंथ साहिब (पृष्ठ 220) में उनकी वाणी इस प्रकार है--

कोउ भाई भूलियो मनु समझावे।

वेद पुरान साध मग सुनि करि निभरन न हरि गुन गावै।

6. वेद कहता है कि जो उस अक्षर ब्रह्म को नहीं जानता, वह ऋचाओं के पाठ से क्या प्राप्त कर सकता है ? ब्रह्मवेत्ता ही ब्रह्म के आनंदधाम में समासिन होता है। 

7. श्री तेग बहादुर जी का कहना है कि वेद-पुराण पढ़ने का यही लाभ होना चाहिए कि प्रभु का नाम-स्मरण किया जाए, क्योंकि राम शरण में ही सुख शांति है-

साधो राम सरनि बिसरामा।

वेद पुरान पढ़े को इह गुन सिमरे हरि का नामा।

वेद पुरान जास गुन गावत ता को नाम ही ऐ मो धारू रे।

!! निष्कर्ष !!

 प्रिय पाठक ! आपने देख लिया कि श्री गुरुग्रंथ साहिब का हिंदू धर्म से क्या संबंध है और इसीलिए जब से सिख धर्म का उदय हुआ, सिख धर्म के अनुयाई राजा-महाराजा लोग हिंदू धर्म का सदैव से साथ देते रहे हैं और समय के बदलते दौर में जब हिंदू धर्म पर मुगलों ने अत्याचार किया तो हिंदू धर्म की रक्षा के लिए हिंदू धर्म के राजाओं का साथ, सिख धर्म के अनुयाई राजाओं और मराठों ने दिया और मुगलों से जमकर लोहा लिया और उनके छक्के छुड़ा दिए। 

आज सिख धर्म के कुछ अनुयाई हिंदू धर्म या वैदिक सनातन धर्म या हिंदुओं से बगावत करते हैं या उनके खिलाफ रहते हैं जबकि हिंदू धर्म या वैदिक सनातन धर्म का विरोध ना ही कभी श्री गुरुग्रंथ साहिब ने किया और ना ही इनके तमाम गुरुओं ने, जो कि सभी के लिए पूजनीय हैं। 

वैदिक सनातन धर्म को यदि कोई सिख धर्म का अनुयाई गलत मानता है, तो यह सर्वथा उसकी भूल है क्योंकि सिख धर्म समय के बदलते दौर के कारण हिंदू धर्म से ही उत्पन्न हुआ है और हिंदू वैदिक सनातन धर्म के विचारों पर ही चलता है।

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