हाथ में ग्रह क्षेत्रों की स्थिति या ग्रहों के पर्वत
प्रिय मित्रों! इस लेख में हमने हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार मनुष्य के हाथ में पाये जाने वाले या निर्धारित किए गये विभिन्न ग्रहों के स्थानों के बारे में आवश्यक जानकारी प्रदान की है कि हथेली में किस ग्रह का स्थान कहां पर होता है। तो इसके लिए आप इस लेख को पूरा ध्यान से पढ़िए:
हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार, मनुष्य के हाथ की हथेली में सात ग्रहों (सूर्य, चंद्र, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, मंगल) के आठ क्षेत्र/स्थान या पर्वत पाए जाते हैं या निर्धारित किये गये हैं। इसमें से मंगल के दो क्षेत्र होते हैं और अन्य सभी ग्रहों के 1-1 क्षेत्र होते है। हथेली में इन प्रत्येक ग्रह का स्थान इस प्रकार होता है:
"मंगल-क्षेत्र" दो होते हैं -
(2) अंगूठे के मूल और जीवन-रेखा के बीच में। यह मंगल का निचला क्षेत्र या द्वितीय क्षेत्र कहलाता है। यह जीवन रेखा से घिरा व जीवन रेखा के प्रारंभ होने से ठीक नीचे होता है।
सभी ग्रह क्षेत्र प्रायः हथेली में उठे हुए उभार के रूप में होते हैं, परन्तु मंगल का निचला क्षेत्र प्रायः उठा हुआ नहीं होता।
अब चार अन्य ग्रहों (बृहस्पति, शनि, सूर्य, बुध) के क्षेत्र चारों अंगुलियों के नीचे स्थित होते हैं, जो इस प्रकार है:
(4) दूसरी या मध्यमा अंगुली के नीचे "शनि-क्षेत्र" होता है।
(5) तीसरी या अनामिका अंगुली के नीचे "सूर्य-क्षेत्र" होता है।
(6) चौथी या कनिष्ठिका अंगुली के नीचे "बुध-क्षेत्र" होता है।
जिस हथेली में ग्रह क्षेत्रों के अच्छे उठान होंगे, उनमें ये क्षेत्र अच्छी तरह दिखाई देंगे।
(8) हथेली में अंगूठे के मूल की तरफ "शुक्र-क्षेत्र" होता है। यह क्षेत्र जीवन रेखा द्वारा पूर्णतया और चंद्राकार रूप में घिरा व जीवन रेखा द्वारा बनाए गये चन्द्राकार रूप के निचले हिस्से में होता है।
इस प्रकार सूर्य, चंद्र, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, मंगल; इन सात ग्रहों के कुल मिलाकर आठ ग्रह-क्षेत्र हथेली में पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों के अच्छे बुरे प्रभाव जानने से पहले यह जान लेना चाहिए कि इन क्षेत्रों से कौन-कौन सी बातें प्रकट होती हैं।
हथेली में पाए जाने वाले ग्रह क्षेत्रों से संबंधित विषेश बातें
ग्रह-क्षेत्र के संयुक्त उत्थान में उसके गुणों का मूल होता है। एक सामान्य उठा हुआ क्षेत्र ही अच्छा होता है। इसमें थोड़ा ज्यादा उठा हुआ क्षेत्र उसके महत्व गुणों को बढ़ा देता है, किंतु बहुत ज्यादा उठा हुआ क्षेत्र अच्छे गुणों को दोषों में बदल सकता है। उदाहरण के लिए; आत्मप्रशंसा- घमंड में, उदारता- फिजूलखर्ची में, अतिथिसत्कार- आडंबर में, दूरदर्शिता- संदेह में और सावधानी- भय में बदल सकती है।
यदि क्षेत्र उतना अच्छा उठा हुआ ना हो तब भी उसके अच्छे गुण उसी अनुपात में कम हो सकते हैं। यदि क्षेत्र बहुत अधिक दबा हुआ हो तो उस क्षेत्र के स्वभाविक गुण जातक में बहुत कम मात्रा में मिलेंगे, किंतु इसका यह अर्थ भी नहीं कि यदि क्षेत्र बहुत अधिक दबा हुआ है तो उसके सभी गुण पूर्णतया नहीं रहेंगे; क्योंकि बहुत से गुण केवल मात्र ग्रह-क्षेत्रों से ही नहीं आते, वरन् हाथ के दूसरों अन्य लक्षणों से भी आते हैं। उदाहरण के लिए; बुद्धिमानी या किसी भी बात को जल्दी समझने की क्षमता बुध-क्षेत्र के साथ ही साथ मस्तिष्क रेखा का भी स्वभाविक गुण होता है। और फिर अंगुलियों में भी अपने नीचे स्थित क्षेत्र के गुण स्वतः आ जाते हैं।
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि अंगुलियां और उनके नीचे स्थित क्षेत्रों के गुण परस्पर संबंधित होते हैं। एक अच्छा ग्रह-क्षेत्र यदि उस पर अंगुलियों भी अच्छी है तो वह अपने बहुत अच्छे गुण प्रकट करेगा। अच्छी अंगुली से हमारा तात्पर्य सामान्य लंबाई में कुछ अधिक लंबी, अच्छी बनी हुई और सीधी अंगुली से है।
यदि ग्रह क्षेत्र और अंगुली में से किसी एक में कुछ कमी है और दूसरा बलवान है तो एक की कमी दूसरे की शक्ति से पूरी हो जाती है। परंतु यदि ग्रह-क्षेत्र व अंगुली, दोनों ही दुर्बल हैं और चिन्ह भी विपरीत है तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे। बल्कि यह कहना ठीक होगा कि दोनों ही दुर्बलता एवं खराब चिन्हों के कारण परिणाम बुरे ही होंगे।
एक विशेष बात यह है कि कुछ हाथों में ग्रह-क्षेत्र की चोटी या सिरा निर्धारित अंगुली के ठीक नीचे नहीं होता और थोड़ा इधर-उधर होता है। जैसे कि, बृहस्पति-क्षेत्र की चोटी थोड़ी सी शनि-क्षेत्र की तरफ, शनि-क्षेत्र की चोटी थोड़ी सी बृहस्पति-क्षेत्र की तरफ या सूर्य क्षेत्र की तरफ, सूर्य-क्षेत्र की चोटी थोड़ी सी शनि-क्षेत्र या बुध-क्षेत्र की ओर तथा बुध-क्षेत्र की चोटी थोड़ी सूर्य-क्षेत्र की ओर झुकी हो सकती है। इस प्रकार की स्थिति में हमें निम्न पर विचार करना चाहिए:
यदि बृहस्पति-क्षेत्र की चोटी थोड़ी सी शनि-क्षेत्र की ओर झुकी हो तो बृहस्पति-क्षेत्र के कुछ गुणों और शनि-क्षेत्र के कुछ गुणों में साझेदारी होगी। उदाहरण के लिए; बृहस्पति-क्षेत्र का गुण है अभिमान और शनि-क्षेत्र का गुण है अन्तर-परीक्षण। अतः दोनों के मिलने से जातक में आत्मज्ञान की प्रवृत्ति होगी। किंतु यदि शनि-क्षेत्र बृहस्पति-क्षेत्र की ओर झुका हो तो जातक में विकृत अभिमान होगा। ग्रह-क्षेत्रों के पदच्युत या बहुत अधिक स्थानांतरित होने पर इसी प्रकार का प्रभाव देखना चाहिए।
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