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कृपाचार्य के द्वारा शिखण्डी की पराजय, सुकेतु वध, धृष्टद्युम्न द्वारा कृतवर्मा व दुर्योधन का परास्त होना

इस प्रकार कौरव_सेना को अर्जुन की मार से पीड़ित होती देख कृतवर्मा, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, उलूक, शकुनि, दुर्योधन तथा उसके भाइयों ने आकर बताया। उस समय

 कृपाचार्य के द्वारा शिखण्डी की पराजय:

संजय कहते हैं- राजन्! इस प्रकार कौरव_सेना को अर्जुन की मार से पीड़ित होती देख कृतवर्मा, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, उलूक, शकुनि, दुर्योधन तथा उसके भाइयों ने आकर बताया। उस समय कुछ देर तक वहां घोर संग्राम हुआ, कृपाचार्य ने बाणों की इतनी बौछार की कि टिड्डियों के समान उन बाणों से सृंजयों की सारी सेना आच्छादित हो गयी।

Mahabharat Karanparv

 यह देख शिखण्डी बड़े क्रोध में भरकर उनका सामना करने के लिये गया और उनके ऊपर चारों ओर  से बाणवर्षा करने लगा। किन्तु कृपाचार्य अस्त्रविद्या के महान् पण्डित थे। उन्होंने शिखण्डी की वाणवर्षा शान्त करके उसे दस बाणों से बिंध डाला। फिर तीखे बाणों के प्रहार से उसके सारथि और घोड़ों को भी यमलोक पठा दिया। तब शिखण्डी सहसा उस रथ से कूद पड़ा और हाथों में ढ़ाल_तलवार लेकर कृपाचार्य पर झपटा। उसे अपने ऊपर आक्रमण करते देख कृपाचार्य ने अनेकों बाण मारकर ढ़क दिया। शिखण्डी ने भी बारंबार तलवार घुमाकर कृपाचार्य के बाणों को काट डाला।

तब कृपाचार्य ने अपने बाणों से शीघ्रतापूर्वक शिखण्डी की ढाल काट दी। अब वह सिर्फ तलवार लेकर ही उनकी ओर दौड़ा। कृपाचार्य अपने बाणों से उसे बार_बार पीड़ा देने लगे।

सुकेतु का वध:

 उसकी यह अवस्था देखकर चित्रकेतु_नन्दन सुकेतु तुरंत वहां आ पहुंचा और बाबा कृपाचार्य पर बाणों की झड़ी लगाने लगा। शिखण्डी ने देखा कि ब्राह्मण_देवता अब सुकेतु के साथ उलझे हुए हैं, तो वह मौका पाकर तुरंत भाग निकला। तदनन्तर सुकेतु ने कृपाचार्य को पहले नौ बाणों से बींधकर फिर तिहत्तर तीरों से घायल किया। इसके बाद उनके बाणसहित धनुष को काटकर सारथि के मर्मस्थानों में भी घाव किया।
यह देख कृपाचार्य ने तीस बाणों से सुकेतु के संपूर्ण मर्मस्थानों में चोट पहुंचायी। इससे सुकेतु का सारा शरीर कांप उठा, वह बहुत व्याकुल हो गया। उसी अवस्था में कृपाचार्य ने एक क्षुरप्र मारकर उसके मस्तक को काट गिराया। सुकेतु के मारे जाने पर उसके अग्रगामी सैनिक भयभीत हो सब दिशाओं में भाग गये। दूसरी ओर धृष्टद्युम्न और कृतवर्मा लड़ रहे थे। धृष्टद्युम्न ने क्रोध में भरकर कृतवर्मा की छाती में नौ बाण मारे तथा उसके ऊपर सायकों की भयंकर बौछार की।
कृतवर्मा ने भी हजारों बाण मारकर उस शस्त्र वर्षा को शान्त कर दिया, यह देख धृष्टद्युम्न ने कृतवर्मा के निकट पहुंच कर उसे आगे बढ़ने से रोक दिया और तुरंत ही उसके सारथि को भी तीखे भाले से मारकर यमलोक का अतिथि बनाया।इस प्रकार महाबली धृष्टद्युम्न ने अपने बलवान शत्रु को जीतकर साधकों की वर्षा से कौरव_सेना का बढ़ाव रोक दिया।

 धृष्टद्युम्न द्वारा कृतवर्मा व दुर्योधन का परास्त होना:

तब आपके सैनिक सिंहनाद करके धृष्टद्युम्न पर टूट पड़े, फिर घमासान युद्ध होने लगा। उस दिन अर्जुन संशप्तकों में, भीमसेन कौरवों में और कर्ण पांचालों में घुसकर क्षत्रियों का संहार कर रहे थे। एक ओर दुर्योधन नकुल_सहदेव से भिड़ा हुआ था। उसने क्रोध में भरकर नौ बाणों से नकुल को और चार सायकों से उसके घोड़ों को बींध डाला।
फिर एक क्षुराकार बाण से उसने सहदेव की सुवर्ण भरी ध्वजा काट दी। नकुल ने भी कुपित होकर आपके पुत्र को इक्कीस बाण मारे तथा सहदेव ने पांच बाणों से उसे घायल किया। अब तो आपका पुत्र क्रोध से आग-बबूला हो गया, उसने उन दोनों भाइयों की छाती में पांच_पांच बाण मारे। फिर दो भल्लों से उन दोनों के धनुष काट डाले। इसके बाद उन्हें इक्कीस बाणों से घायल किया। धनुष काट जाने पर उन दोनों भाइयों ने पुनः दूसरे धनुष लेकर दुर्योधन पर बड़ी भारी बाणवर्षा आरंभ कर दी। दुर्योधन भी बाणों की झड़ी लगाकर उन दोनों को रोकने लगा। उस समय उसके धनुष से निकलते हुऐ बात संपूर्ण दिशा को ढ़कयते दिखाती दे रहे थे। आकाश आच्छान्न होकर बाणमय हो रहा था।नकुल_सहदेव को उसका रूप प्रलयशीघ्रतालीन बादल के समान दिखायी देता था। ठीक उसी समय पाण्डव_सेनापति धृष्टद्युम्न वहां आ पहुंचा और नकुल_सहदेव को पीछे करके ही अपने बाणों से दुर्योधन की प्रगति रोकने लगा।
आपके पुत्र ने हंसकर धृष्टद्युम्न को पहले पच्चीस बाण मारे, फिर पैंसठ बाण मारकर सिंहनाद किया। तत्पश्चात् उसने एक तीखे क्षुरप्र से धृष्टद्युम्न के बाणसहित धनुष और दास्ताने काट दिये। तब आपके पुत्र ने धृष्टद्युम्न पर पंद्रह बाण छोड़े। वे बाण उसके कवच को छेदते हुए पृथ्वी में समा गये। इससे दुर्योधन को बहुत क्रोध हुआ।
उसने एक भल्ल मारकर धृष्टद्युम्न का धनुष काट डाला। फिर बड़ी शीघ्रता के साथ उसकी भृगुटियों में दस बाण मारे। धृष्टद्युम्न को भी अपना कटा हुआ धनुष और सोलह भल्ल अपने हाथ में लिये।
उसमें से पांच भल्लों के द्वारा उसने दुर्योधन के घोड़ों और सारथि को मार डाला, एक से उसका धनुष काट दिया और सामग्रियों सहित रथ, क्षत्र, ध्वजा, शक्ति, गदा और खड्ग आदि को नष्ट कर डाला। राजा दुर्योधन रथहीन हो गया, उसके कवच और आयुध आदि नष्ट हो गये।
यह देख उसके भाई उसकी रक्षा में आ पहुंचे। दण्डधारी नाम का राजा उसे अपने रथ में बिठाकर उसे रणभूमि से बाहर ले गया।

कर्ण द्वारा पांचाल आदि महारथियों का संहार:

 तदनन्तर कर्ण ने धृष्टद्युम्न पर धावा कर दिया। उन दोनों में महान् युद्ध छिड़ गया। उस समय पाण्डवों का या हमारे पक्ष का कोई भी योद्धा पीछे पैर नहीं हटाया था। पांचाल देश के लड़ाकू वीर विजय की अभिलाषा से बड़ी फुर्ती के साथ कर्ण पर टूट पड़े। उन्हें इस प्रकार विजय के लिये प्रयत्न करते देख कर्ण उनके अग्रगामी वीरों को बाणों से मारने लगा। उसने व्याघ्रकेतु, सुशर्मा, चित्र, उग्रायुध, जय तथा सिंहसेन को अपने बाणों का निशाना बनाया। उपर्युक्त वीरों ने भी रथों से कर्ण को घेर लिया। कर्ण बड़ा प्रतापी था, उसने अपने साथ युद्ध करते हुए इन आठों वीरों को आठ तीखे बाणों से मारकर खूब घायल कर दिया। फिर की हजार योद्धाओं का सफाया कर डाला। तत्पश्चात् जिष्णु, देवापि, भद्र, दण्ड, चित्र, चित्रायुध, हरि, सिंहकेतू, रोचमान्, शलभ को तथा चेदिदेशीय महारथियों को मौत के घाट उतारा। इस युद्ध में कर्ण ने जैसा पराक्रम किया, वैसा न तो भीष्म ने, न द्रोण ने और न दूसरे योद्धाओं ने ही कभी किया था। उसने हाथी, घोड़े, रथ और पैदल_ इन सबका महान् संहार किया। कर्ण का वह पराक्रम देख मेरे मन में ऐसा विश्वास होने लगा कि अब एक भी पांचाल योद्धा जीवित नहीं बचेगा। उस महासंग्राम में कर्ण को पांचाल सेना का संहार करते देख राजा युधिष्ठिर बड़े क्रोध में भरकर उसकी ओर दौड़े। साथ ही द्रौपदी के पुत्र, धृष्टद्युम्न तथा अन्य सैकड़ों वीरों ने पहुंचकर कर्ण को चारों ओर से घेर लिया। शिखण्डी, सहदेव, नकुल, जनमेजय, सात्यकि तथा बहुत से प्रभद्रक योद्धा धृष्टद्युम्न के आगे होकर कर्ण पर अस्त्र-शस्त्रों की वृष्टि करने लगे। जैसे गरुड़ अकेला होकर भी बहुत_से सर्पों को दबोच लेता है, उसी प्रकार कर्ण अकेला ही चेदि, पांचाल और पाण्डववीरों पर प्रहार कर रहा था। जब कर्ण पाण्डवों से उलझा हुआ था उसी समय भीमसेन रण में सब ओर विचार अपने यमदण्ड के समान वाणों से वाहीक, वसातीय, मद्र तथा सिंधुदेशीय योद्धाओं का संहार कर रहे थे । भीम के बाणों से मारे गये रथियों, घुड़सवारों, सारथियों, पैदल योद्धाओं तथा हाथी_घोड़ों की लाशों से जमीन पट गयी थी। सारी सेना भीमसेन  के भय से उत्साह खो बैठी थी। किसी से कुछ करते नहीं बनता था। सब पर दैत्य जा रहा था।
कर्ण पाण्डव सेना को भगा रहा था और भीम कौरव वाहिनी को खदेड़ रहे थे_ इस प्रकार रणभूमि में विचरते हुए उन दोनों वीरों की अद्भुत शोभा हो रही थी।

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