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Mahakali stotra | संकट निवारण के लिए श्री ब्रह्मकृत काली स्तोत्र का करें पाठ

हम इस लेख में पराशक्ति, पतितपावनी, मंगलकरणी, दुखहरणी, संकटहरणी, जगतजननी जगदम्बा स्वरुपा भगवती महाकाली जी की वह परम शक्तिशाली स्तोत्र प्रस्तुत कर रहा ह

श्री ब्रह्मकृत काली स्तोत्र

हम इस लेख में पराशक्ति, पतितपावनी, मंगलकरणी, दुखहरणी, संकटहरणी, जगतजननी जगदम्बा स्वरुपा भगवती महाकाली जी की वह परम शक्तिशाली स्तोत्र प्रस्तुत कर रहा हूं जिसे स्वयं देव ब्रह्माजी नें भगवती महाकाली जी की कृपा पाने के लिए व भक्तों के संकट दूर करने के लिए रचा व गाया है। इस स्तोत्र का अर्थ स्वतः प्रकट है, और आप जैसे इसे पढ़ेंगे, अर्थ स्वतः स्पष्ट होता जाएगा। वह श्री ब्रह्मकृत काली स्तोत्र इस प्रकार है:

Mahakali stotra

नमामि कृष्णरुपिणीं कृष्णाङ्गयष्टिधारिणीम्। 

समग्रतत्व सागरं पारपारगह्वराम्॥1

शिवाप्रभा समुज्जवलां स्फुरच्छशाङ्कशेखराम्। 

ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रदीप्तिभास्कराम्॥2

महेन्द्रकश्यपार्चितां सनत्कुमारसंस्तुताम्। 

सुरासुरेन्द्रवन्दितां यथार्थनिर्मलाद्भुताम्॥3

अतर्क्युरोचिरुर्जितां विकारदोषवर्जिताम् । 

मुमुक्षुभिर्विचिन्तितां विशेषतत्वसूचिताम्॥4

मृतास्थिनिर्मितस्त्रजां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्। 

सुशुद्ध तत्व तोषणां त्रिवेदपारभूषणाम्॥5॥ 

भुजङ्गहारहारिणीं कपालखण्डधारिणीम्। 

सुधार्मिकौपकारिणीं सुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥6

कुठारपाशचापिनीं कृतान्तकामभेदिनीम्। 

शुभां कपालमालिनीं सुवर्णकल्पशाखिनीम्॥7

श्मशान भूमिवासिनीं द्विजेन्द्र मौलिभाविनीम्। 

तमोऽन्धकारयामिनीं शिवस्वभावकामिनीम्॥8

सहस्त्रसूर्यराजिंका धनञ्जयोग्र कारिकाम्। 

सुशुद्ध काल कन्दला सुशृङ्गवृन्दमञ्जुलम्॥9

प्रजायिनीं प्रजावतीं नमामि मातरं सतीम्। 

स्वकर्मकारणे गतिं हरप्रियाञ्चपार्वतीम्॥10॥ 

अनन्त शक्तिकान्तिदां यशोऽर्थ भुक्तिमुक्तिदाम्। 

पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्॥11

जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवि पाहिमाम्। 

जपन्ति ते स्तुवान्त ये शुभं लभन्त्यैमोक्षतः॥12॥ 

सदैव ते हतद्विषः परं भवन्ति सज्जुषः । 

जराः परे शिवेऽधुना प्रसाधि मां करोमि किम्॥13

अतीव मोहितात्मने वृथा विचेष्टितस्य मे। 

कुरु प्रसादितं मनो यथास्मि जन्मभञ्जनम्॥14

तथा भवन्तु तावका थथैव घोषितालका। 

इमां स्तुतिममेरितां पठन्ति कालिसाधकाः॥15

न ते पुनः सुदुस्तरे पतन्ति मोहगह्वरे ||

 इति श्री ब्रह्मकृत कालीस्तवः

जैसा कि इस स्तोत्र के पंक्तियों से स्पष्ट है कि, जो सज्जन मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करता है वह सर्वसंपन्न होकर संसार का सुख भोगता है, और अन्त में परम पद को प्राप्त करता है।

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