मकर संक्रांति: भारतीयता को एक सूत्र में बांधने वाला महान उत्सव:
हमारी इस पवित्र भारत भूमि पर हम भारतीयों की आस्था व विश्वास का सामाजिक धार्मिक व भौगोलिकता से गहरा अटूट संबंध है। मकर संक्रांति और इस जैसे अनेक त्यौहार हमारी इस अमूल्य भारतीय संस्कृति को आज भी देश को एक अटूट सूत्र में बांधकर रखते हैं।
इस पर्व को मनाने के लिए बच्चों में जो उत्साह होता है कि, कल सुबह - सुबह स्नान करके, नए - नए कपड़े पहनना है और तिलवा, भेली, लड्डू तथा पकौड़ी खाना है व खूब पतंग उड़ाना है; इसका वर्णन ही नहीं किया जा सकता।
प्रायः 14 या 15 जनवरी को मकर संक्रांति नामक पर्व भारत के सभी राज्यों और विदेशों में भी भारतीयों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन से सर्दी का मौसम भारत के अनेक हिस्सों में शीत से राहत देना प्रारंभ कर देता है तथा इस दिन से दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं।
मकर संक्रांति क्या है:
भारतीय परंपरा में मूल रूप से 12 राशियां होती हैं जिनके नाम क्रम से हैं- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, और मीन।
ये एक - एक राशियाॅं कोई एक तारा नहीं होती है, बल्कि हमारे आकाश मंडल में अनेक तारागढ़ मिलकर इनके नाम के अनुसार आकृति बनाते हैं, जिन्हें कोई भी विशेषज्ञ व्यक्ति रात्रि के समय आकाश मंडल में देख सकता है।
भारतीय संस्कृति के अनुसार सूर्य देव इन्हीं राशियों में क्रमशः एक - एक माह व्यतीत करते हैं।
सूर्यदेव जिस राशि पर स्थित हो उसे छोड़कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करें; उस संक्रमित समय को संक्रांति कहा जाता है। ऐसी बारह संक्रांतियों में मकर, कुंभ, मीन, मेष, वृष, और मिथुन में स्थित सूर्य को उत्तरायण कहा जाता है, अर्थात धरती का उत्तरी गोलार्ध सूर्यदेव की तरफ झुका रहता है, और कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, राशि में स्थित सूर्य को दक्षिणायन कहा जाता है।
जब धनु राशि से सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो उसे संक्रांति को मकर संक्रांति कहा जाता है; और इस दिन से सूर्य देव का दक्षिणायन समाप्त होकर उत्तरायण शुरू हो जाता है।
मकर संक्रांति का शुभ मूहूर्त और महत्व
सामान्य मत के अनुसार संक्रांति से 16 घड़ी पहले और संक्रांति से 16 घड़ी बाद तक का समय अधिक फलदायक और शुभ होता है।
यदि दिन में संक्रांति हो तो पूरा दिन, अर्धरात्रि से पहले हो तो उस दिन का उत्तरार्ध, अर्धरात्रि के बाद हो तो आने वाले दिन का पूर्वार्ध, ठीक अर्धरात्रि में हो तो पहले और पीछे के तीन-तीन प्रहर का समय पुण्य काल होता है। इस समय दान, होम, जप - तप आदि का अधिक फल मिलता है।
मकर संक्रांति के दिन से खरमास समाप्त हो जाता है।
मकर संक्रांति की पूजन विधि
हमारी पवित्र भारत भूमि पर अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग प्रकार व परंपरा अनुसार मकर संक्रांति व अन्य त्यौहार मनाए जाते हैं, परंतु हम यहां पर अपने संस्कृति के पुराणों में वर्णित वंङ्गऋषि द्वारा बताई गई मकर संक्रांति पूजन की विधि का वर्णन कर रहे हैं--
यह त्यौहार सूर्यदेव के पूजन से सम्बन्धित है। मकर संक्रांति का जिस दिन संक्रमण हो, उस दिन प्रात: स्नानादि करके " मम ज्ञाताज्ञातसमस्तपातकोपपातकदुरितक्षयपूर्वक श्रुतिस्मृति पुराणोक्तपुण्यफलप्राप्तये श्रीसूर्यनारायणप्रितये च मकरसंक्रमणकालीनमयकालीनं वा स्नानदानजपहोमादिकर्माहं करिष्ये।" यह संकल्प करके सूर्यदेव को चन्दन पुष्पादिमिश्रित अर्घ्य दे।
अब चौकी या पवित्र भूमि पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर अक्षतों से अष्टदल बनाकर, उस अष्टदल पर स्वर्णमय या सामर्थ्यानुसार बनी हुई सूर्य देव की मूर्ति को समर्पित करके उनका पंचोपचार (गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य) पूजन और क्षमा याचना करने से अनेक प्रकार के पापों का क्षय, अनेक प्रकार के रोगों का निवारण, दीनता - हीनता का निवारण होता है तथा अनेक प्रकार की सुख - संपत्ति और संतान की वृद्धि होती है।
मकर संक्रांति का भारतीय इतिहास से संबंध:-
1. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी महाराज भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए समुद्र में विलीन हुई थी।
2. राजा भगीरथ ने मकर संक्रांति के दिन ही कपिल मुनि के श्राप से मरे हुए अपने पूर्वजों का तर्पण किया था।
3. आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व ही भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरायण के छह महीनों को पुण्य या शुभ काल बताये हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, कि जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं तो ऐसा समय शरीर के परित्याग के लिए शुभ होता है।
4. बाणों की शैया पर लेटे हुए पितामह भीष्म जी ने अपने शरीर का परित्याग सूर्य देव के उत्तरायण होने पर ही किया।
5. सन 1705 ई0 में गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों के खिलाफ पंजाब के मुक्तसर में आखिरी लड़ाई लड़ी थी, जिसमें उनके 40 शिष्य वीरगति को प्राप्त हुए थे।
मकर संक्रांति की कुछ विशेष खूबियां:-
1. स्थानीय रीति-रिवाजों और परंपरा के अनुसार अलग-अलग स्थानों पर इस पर्व को मनाने का तरीका और इस दिन बनने वाले पकवान भिन्न - भिन्न होते हैं।
2. उत्तर प्रदेश में इस पर्व को खिचड़ी के नाम से बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। माता-पिता अपनी विवाहित पुत्रियों के पास खिचड़ी पहुंचवाते हैं, जिसमें दाना, चुड़ा, ईख से बनी भेली, तिलवा, कपड़े, सब्जियां, अनाज व अन्य आवश्यक सामग्री शामिल होती है। बड़ी विवाहिता बहनें भी अपनी छोटी विवाहित बहनों के पास ऐसी ही खिचड़ी बड़े उत्साह से पहुंचवाती हैं।
3. मकर संक्रांति माघ मेले का पहला शाही स्नान होता है।
4. गोरखपुर में गोरक्षनाथ परंपरा में मकर संक्रांति के दिन देश-विदेश से श्रद्धालु आदि योगी गोरखनाथ जी के मंदिर में खिचडी चढ़ाने आते हैं। यहां ब्रह्म मुहूर्त में पहली खिचड़ी नेपाल के राज परिवार को चढ़ती है, फिर दिन भर यह क्रम चलता रहता है।
5. मकर संक्रांति को पंजाब में माघी और लोहडी के नाम से मनाया जाता है। यहां मुक्तसर साहिब में भव्य मेला का आयोजन होता है। मेले में आये लोग 1705 के ऐतिहासिक युद्ध को याद करके शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं।
6. मकर संक्रांति के दिन गंगा जी में स्नान करने का बहुत बड़ा महत्व है। यमुना, गोदावरी और नर्मदा नदी में भी इस दिन स्नान करने से विशेष फल मिलता है।
7. सूर्य के मकर राशि में प्रवेश कर जाने के फलस्वरूप उड़ीसा के लोग इसे भोगली बिहू नामक पर्व के रूप में मनाते हैं। आकर्षक परिधानों (वस्त्रों) और सुंदरतम गीतों से सजा बिहू नृत्य जगत प्रसिद्ध और सुंदरतम है।
8. कर्नाटक में इस परंपरा को लोग उत्तरायणी कहते हैं । इस दिन वहाॅं आटे को गुड़ व घी में सानकर इससे विभिन्न आकार जैसे चाकू, तलवार, चंद्रमा आदि बनाकर फिर घी में तलकर पकाया जाता है। फिर इनकी माला बनाकर और बीच में संतरा पीरो कर दिया जाता है। इस माला को घुघुती और काला कौआ कहा जाता है। इस माला को बच्चे गले में पहनकर खेत - खलियानों में घूम - घूमकर चिड़ियों व पशुओं को वह मीठी रोटी तोड़ - तोड़कर खिलाते है।
Conclusion:
मित्रों ! हमने मकर संक्रांति के पावन अवसर को बड़े ही विस्तृत और रोचक तथा सही ढंग से वर्णन किया है। हमें विश्वास है कि आप इस पावन पर्व के बारे में अच्छी तरह से जान गए होंगे और हमारा यह लेख आपके लिए अवश्य लाभकारी होगा। अगर हमारा लेख आपको अच्छा लगे तो आप इस वेबसाइट को फॉलो करें और सब्सक्राइब करें और अपने दोस्तों और अपने ग्रुप में शेयर करें।
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