नवरात्रि कलश स्थापना की सम्पूर्ण विधि
प्रिय मित्रों ! सबसे पहले तो आप यह जान लें कि यदि आप कोई भी कार्य, उसमें भी विशेष करके पूजा-पाठ का कार्य श्रद्धा पूर्वक लेकिन मनमाने ढंग से कर रहे हैं तो वह सुखदायक नहीं होगा; क्योंकि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है -
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।। (गीता 16/23)
अर्थ- जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर, अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न तो सिद्धि को प्राप्त होता है, न परम गति को और न सुख को ही।
अर्थात् प्रत्येक कर्म को करने के नियम होते हैं। यदि आपको किसी कर्म के करने की विधि की जानकारी न हो, तो आप जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करें।
कुछ लोग परम्परागत तरीकों से पूजा-पाठ करते हैं लेकिन मैं गलत परम्पराओं का विरोध करता हूं। व्यक्ति को चाहिये कि यदि पूजा-पाठ की परम्परागत विधि गलत है, तो वह उस परम्परा का तुरन्त त्याग कर दे, क्योंकि जब विधि ही गलत है तो फल भी गलत ही मिलेगा, तो फिर कोटापूर्ती करने से क्या फायदा। जो भी कार्य करें, धर्मशास्त्र के अनुकूल करें।
मैं यहां पर आप लोगों के लिए चैत्र नवरात्रि और शरदीय नवरात्रि दोनों की कलश स्थापना विधि और कलश स्थापना से संबंधित संपूर्ण जानकारियाॅं , श्री दुर्गा देवी पूजा विधि, दुर्गा सप्तशती पाठ की संपूर्ण विधि को प्रस्तुत कर रहा हूं ।
इस जानकारी को हमने कुछ महत्वपूर्ण पुराणों के अध्ययन से प्राप्त किया है। आप इस पूजा पद्धति में नित्य पूजा पाठ के सभी नियमों को भी शामिल करें, क्योंकि प्रत्येक नियम व मंत्रों को मैं इस एक लेख में लिख नहीं सकता, फिर भी 95% लिखा और समझाया हूं।
👉 सबसे पहले आप लोग नवरात्रि से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियों और सावधानियों को जान लीजिए -
नवरात्रि पूजा की महत्वपूर्ण जानकारियाँ :-
कलश स्थापना से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर -
प्रश्न 1. कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त कौन सा है ?
उत्तर - कलश स्थापना सदैव शुभ मुहूर्त में करें। सूर्योदय से दस घड़ी के बाद या अभिजित मुहूर्त दोपहर को कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त माना गया है।
नवरात्रि में कलश स्थापना प्रतिपदा तिथि को ही करनी चाहिए ।
प्रश्न 2. कलश स्थापना रात्रि में करना चाहिए या नहीं ?
उत्तर - कलश स्थापना रात्रि में या सूर्यास्त के बाद कदापि नहीं करना चाहिए ।
न रात्रौ: स्थापनम् कार्यं न च कुम्भाभिषेचनम । ( मत्स्य पुराण )
प्रश्न 3. नवरात्रि 2022 कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त -
उत्तर -
चैत्र नवरात्रि - 2 अप्रैल 2022 दिन शनिवार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजे से लेकर सुबह 07 बजे तक ,अथवा अभिजित मुहूर्त दिन 11:30 से 12:30 तक रहेगा ।
शारदीय नवरात्रि - 26 सितम्बर 2022 दिन सोमवार, अश्विन शुक्ल प्रतिपदा, शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 50 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 10 मिनट तक ,अथवा अभिजित मुहूर्त दिन 11:30 से 12:30 तक रहेगा ।
प्रश्न 4. कलश का पात्र कैसा होना चाहिए ?
उत्तर - कलश का पात्र तांबा , काॅंसा, सोना, चांदी या मिट्टी का होना चाहिए ।
यदि कलश का पात्र मिट्टी का हो तो उसे नया लेना चाहिये ।
प्रश्न 5. कलश को किस दिशा में रखें ?
उत्तर - कलश की स्थापना पूर्व , उत्तर दिशा या पूर्व - उत्तर के बीच ईशान कोण में करना चाहिए।
प्रश्न 6. कलश पर नारियल कैसे रखें ?
उत्तर - कलश पर नारियल को सदैव क्षैतिज तथा नारियल का नाभि या मुख ( जहां से नारियल पेड़ से जुड़ा रहता है ) को अपनी तरफ करके रखना चाहिए।
नारियल को नीचे मुख रखने से शत्रु वृद्धि, ऊपर मुख रखने से रोग वृद्धि , पूर्व मुख रखने से धन नाश होता है, और उत्तर या दक्षिणाभिमुख भी नहीं रखना चाहिए ।
प्रश्न 7. कलश तथा नारियल पर कौन से रंग का वस्त्र लगाएँ ?
उत्तर - कलश तथा नारियल पर सदैव ही लाल या केसरिया रंग का वस्त्र और लाल धागा ( मौली या उपवस्त्र ) लपेटना चाहिए ।
प्रश्न 8. कलश के अंदर कौन सा द्रव्य डालना चाहिए ?
उत्तर -
धर्म वृध्दि के लिए गाय के गोबर के उपलों से बनी थोड़ी राख ,
किसी को वश में करने के लिए मोर पंख ,
श्री ( लक्ष्मी ) ,व्यापार या धन वृद्धि के लिए एक चांदी का सिक्का या किसी भी प्रकार का सिक्का अथवा मोती को डालना चाहिए ।
प्रश्न 9. अखण्ड दीपक को कलश के किस ओर रखना चाहिए ?
उत्तर - घी का अखंड दीपक कलश के सामने ,कलश से दायें तरफ या अपने से थोड़ा बायें तरफ रखें अथवा तिल के तेल का दीपक कलश के सामने की ओर, कलश से बायें तरफ या अपने से थोड़ा दाएं तरफ रखें ।
अखंड दीपक की स्थापना के लिए शुद्ध गाय का घी या शुद्ध तिल के तेल का ही प्रयोग करें।
दीपक को किसी सुंदर पात्र या अक्षत ( चावल ) पर रखें ।
प्रश्न 10. अखण्ड दीपक की जली हुई बाती कैसे बदलें ?
उत्तर - अखण्ड दीपक की बत्ती यदि जलकर छोटी हो जाए तो दूसरा अस्थायी दीपक जलाकर अच्छी बाती लगा दें ताकि दीपक की अखण्डता बनी रहे ।
प्रश्न 11. क्या कलश की स्थापना व्रत रखकर करनी चाहिये ?
उत्तर - कलश स्थापना व्रत या उपवास रखकर करें अथवा कलश स्थापना के दिन उपवास रखकर ही कलश स्थापना करें ।
प्रश्न 12. कलश की स्थापना मंत्र के द्वारा करें अथवा बिना मंत्रों के ?
उत्तर - मंत्र बोलते हुए ही कलश स्थापना तथा देवी पूजन करना चाहिए । बिना मंत्रों के कलश स्थापना को अच्छा नहीं माना जाता । यदि मंत्र ना बोल पाते हो तो ब्राम्हण को बुला लें और ब्राम्हण द्वारा ही कलश स्थापना करवाएं ।
प्रश्न 13. कलश स्थापना के बाद कलश को इधर-उधर रख या हिला सकते हैं कि नहीं ?
उत्तर - कलश स्थापना के बाद कलश को हिलाना या उसे इधर-उधर नहीं करना चाहिए या उससे छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए , वरना कलश स्थापना खंडित और विसर्जित मानी जाएगी ।
प्रश्न 14. कलश की स्थापना पुरुष को करनी चाहिए या स्त्री को ?
उत्तर - इस विषय में कोई रोक नहीं है ।
यदि कलश की स्थापना पुरुष कर रहे हैं तो उन्हें कुछ दिन पहले से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और स्वच्छता रखनी चाहिए ।
यदि कलश की स्थापना स्त्री कर रही हैं और यदि वे मासिक धर्म में हो , तो कलश की स्थापना ना करें। कलश की स्थापना समझदार बच्चे भी कर सकते हैं।
प्रश्न 15. क्या क्रोधित होकर कलश की स्थापना करनी चाहिए ?
उत्तर - नहीं! बिना भाव के या अनिच्छा से या विवश होकर कलश स्थापना ना करें ।
सदैव भावना युक्त होकर ही कलश स्थापना करनी चाहिए ।
कलश स्थापना की विधि
क्रम संख्या 12. ध्वजारोहण -
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: मंत्र बोलते हुए स्वास्तिक चिन्ह और उप वस्त्र लपेटा हुआ कलश को सप्तधान्य या अष्टदल पर रखें।
क्रम संख्या 17. कलश में जल -
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: मंत्र बोलते हुए कलश में जल भरें। ( जलं समर्पयामि )
क्रम संख्या 18.
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: मंत्र बोलते हुए बारी बारी से कलश में चन्दन , सर्वौषधि , दूब , पॅंचपल्लव , पवित्रि , सप्तमृत्तिका , सुपारी , पॅंचरत्न , द्रव्य डालें ।
क्रम संख्या 18. कलश पर वस्त्र लपेटाना-
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: मंत्र बोलते हुए कलश पर वस्त्र लपेटें ।
क्रम संख्या 19 . कलश पर पूर्ण पात्र रखना -
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: मंत्र बोलते हुए चावल से भरे पूर्ण पात्र को कलश पर स्थापित करें ।
क्रम संख्या 20. कलश पर नारियल रखना -
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: मंत्र बोलते हुए लाल कपड़ा लपेटे हुए नारियल को पूर्ण पात्र के ऊपर रखें।
क्रम संख्या 21.आवाहन और ध्यान करें -
हाथ जोड़कर कलश में वरूण देवता के साथ वेदों , तीर्थों, नदियों , सागरों और सभी देवी - देवताओं और माता दुर्गा जी का आवाहन और ध्यान करें।
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: , ॐ अपां पतये वरुणाय नम: , ॐ दुॅं दुर्गायै नम: ।।
( अष्टौ भुजांङ्गीं महिषस्य मर्दिनीं सशंखचक्रां शरचाप धारिणीम् ।
तां सूर्यकोटिप्रतिमां लुलस्थितां दुर्गा सदा तां शरणं व्रजाम्यह्म् ।। )
क्रम संख्या 22. प्रतिष्ठा करें -
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: , ॐ अपां पतये वरुणाय नम: , ॐ दुॅं दुर्गायै नम: मंत्र बोलते हुए अक्षत - पुष्प को कलश के पास या ऊपर छोड़ दें।
क्रम संख्या 23. आसन -
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: मंत्र बोलते हुए अक्षत को कलश के ऊपर रख दें।
क्रम संख्या 24.
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: मंत्र बोलते हुए कलश पर पाद्य ( जल ) , अर्घ्य , स्नानीय जल, स्नानांग्म आचमन, पॅंचामृत स्न्नान , गन्धोदक स्न्नान , शुद्धोदक स्न्नान , आचमन , वस्त्र , आचमन , यज्ञोपवीत , आचमन , उपवस्त्र , आचमन , चन्दन, आचमन , अक्षत , आचमन, पुष्प सा पुष्पमाला , आचमन, सुगन्धित द्रव्य , आचमन , धूप , दीप , नौवैद्य , आचमन , गन्ध , ताम्बूल , दक्षिणा , आचमन जल चढ़ायें ।
क्रम संख्या 25. आरती करें -
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: मन्त्र बोलते हुए आरती दिखायें ।
क्रम संख्या 26. पुष्पाॅंजली समर्पित करना -
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: मन्त्र बोलते हुए कलश पर पुष्प समर्पित करें ।
क्रम संख्या 27. प्रदक्षिणा करें -
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: मन्त्र बोलते हुए प्रदक्षिणा करें।
क्रम संख्या 28. प्रार्थना करें -
देवदानव संवादे मध्यमाने महोदधौ ।
उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयम् ।।
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवा: सर्वा त्वयि स्थिता ।
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणा प्रतिष्ठिता: ।।
शिव: स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापति: ।
आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा: सपैतृका: ।।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यत: कामफलप्रदा: ।।
त्वत्प्रसादादिमां पूजां कर्तुमीहे जलोद्भव ।
सांनिध्यं कुरू मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा ।।
नमो नमस्ते ल्फटिकप्रभाय सुश्वेतहाराय सुमङ्गलाय ।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते ।।
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: , ॐ अपां पतये वरुणाय नम: , ॐ दुॅं दुर्गायै नम: ।।
क्रम संख्या 29. नमस्कार करें -
ॐ वरूणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारम् समर्पयामि कहकर कलश पर पुष्प छोड़ें ।
क्रम संख्या 30. समर्पण -
कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरूणाद्यावाहितदेवता: प्रीयन्तां न मम मन्त्र बोलते हुए हाथ में जल लेकर जल कलश के पास छोड़ते हुए समस्त पूजन कर्म भगवान वरुण देव को निवेदित कर दें ।
क्रम संख्या 31. क्षमा प्रार्थना -
अपराध सहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया । दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ।। कहते हुए समस्त देवी - देवताओं से भूल चूक के लिए क्षमा माॅंग लें ।
अब आपका कलश स्थापना कार्य संपन्न हुआ ।
नवरात्रि में प्रतिदिन देवि पूजन विधि की कुछ महत्वपूर्ण जानकारी -
1. नवरात्रि में प्रतिदिन सुबह और शाम को स्नान करके शुद्धता से कलश का पंचोपचार पूजन करना चाहिए और तत्पश्चात भगवती दुर्गा जी का यथासामर्थ्य पंचोपचार या दसोपचार या षोडसोपचार पूजन करना चाहिए ।
2. छ: अंगुल से छोटी मूर्ति को रोज स्नान करना चाहिए । इससे बड़ी मूर्ति का केवल एक दिन स्नान कराते हैं।
3. मूर्ति का मुख कभी उत्तर की तरफ ना करें ।
4. भगवती दुर्गा जी को नवरात्रि में प्रतिदिन या अष्टमी के दिन श्रृंगार अवश्य चढ़ाएं ।
5. नवरात्रि में माता दुर्गा जी से ऊंचे आसन पर उनके सामने ना बैठें ।
6. नवरात्रि में कन्या पूजन , विप्र भोजन अवश्य कराना चाहिए। इसी से व्रत की पूर्णता होती है ।
7. नवरात्रि में हो सके तो दुर्गा सप्तशती का पूरा पाठ करें, नहीं तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र या सप्तश्लोकी दुर्गा का या दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला का पाठ करें अथवा उनके बीज मंत्र का ही जप करें ।
8. नवरात्रि में अंतिम दिन हवन जरूर करना या कराना चाहिए।
नवरात्रि में जप करने योग्य विशेष मंत्र :-
जप करने से पहले माला वंदना (ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः । ॐ मां माले महामाये सर्वशक्ति स्वरूपिणी। चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्द्धिदा भव। ॐ अविघ्नम् कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे। जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये। ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः।) अवश्य करें और जप के सम्पूर्ण नियमों का पालन अवश्य करें, अन्यथा मनमाने ढंग से श्रद्धा पूर्वक भी जप-तप करने से कोई भी अच्छा फल प्राप्त नहीं होता।
1. ॐ ऐँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ।
2. ॐ ह्रीं श्रीं दुॅं दुर्गायै नम: ।
3. ॐ ह्रीं दुर्गे रक्षिणी ।
4. ॐ ह्रीं काल्यै नम: ।
आप अपने इष्ट देव का अथवा अपने मनपसंद मंत्रों का जप कर सकते हैं ।
यदि नवरात्रि में श्री महाविद्या या श्री प्रत्यंगिरा महाविद्या का पाठ कराया जाए तो अनेक संकट दूर हो जाते हैं ।
दुर्गा सप्तशती पाठ विधि महत्वपूर्ण जानकारी :-
1. हाथ में पुस्तक रखकर पाठ न करें । पुस्तक को लाल आसन पर रखकर, पूजन करने के बाद पाठ करें।
2. पाठ करने से पहले संकल्प अवश्य करें ।
3. अध्याय के पाठ के बीच में ना उठे ; अगर उठते हैं तो उस अध्याय को फिर से पढ़ना पड़ेगा।
4. स्पष्ट पढ़ें , ना तेज पढ़ें ना बहुत धीरे-धीरे , रस युक्त व भाव युक्त होकर पढ़ें।
5.
पहले दिन - 1 अध्याय
दूसरे दिन - 2 अध्याय
तीसरे दिन - 1 अध्याय
चौथे दिन - 4 अध्याय
पाॅंचवें दिन - 2 अध्याय
छठवें दिन - 1 अध्याय
सातवें दिन - 2 अध्याय
का पाठ करते हुए दुर्गा सप्तशती पाठ को पूर्ण करना चाहिए ।
6. पाठ के अध्याय के अन्त में " इति " शब्द नहीं बोलना चाहिए ।
7. पाठ के अध्याय अन्त में हाथ में जल लेकर "ॐ जय जय मारकण्डेय पुराणे सावर्णिके मनवन्तरे देवीमहात्मये प्रथम: ॐ तत्सत् सत्या: सन्तु मम् कामा: श्री जगदम्बार्पणमस्तु " कहकर जल पृथ्वी पर छोड़ देना चाहिए ।
प्रिय मित्रों ! मैंनें यहां पर आप लोगों के लिए नवरात्रि कलश स्थापना विधि और कलश स्थापना से संबंधित संपूर्ण जानकारियों को बताया है । और भी कई जानकारियां प्राप्त करनी जरूरी हैं , जैसे सप्तशती पाठ में कीलक, अर्गला उत्कीलन इत्यादि का पाठ का क्या विधान है; इन सब की जानकारी हम अगले पोस्ट में देने का प्रयास करेंगे ।
इसमें जो कोई त्रुटि हो उसे आप अवश्य बताएं और कमेंट में अपने विचार तथा "जय माता दी " अवश्य लिखें । कृपया आप इसे अपने मित्रों में शेयर अवश्य करें।
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