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Nilsarswati stotra | दिव्य नीलसरस्वती स्तोत्र ला सकता है जीवन में परिवर्तन

भगवती सरस्वती माता का यह नीलसरस्वती स्तोत्र साधक के समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। सभी लोगों के लिए इस स्तोत्र का पाठ करना हितकर है। ब्रह्मचर

श्री नीलसरस्वती स्तोत्रम्

भगवती सरस्वती माता का यह नीलसरस्वती स्तोत्र साधक के समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। सभी लोगों के लिए इस स्तोत्र का पाठ करना हितकर है। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए प्रत्येक अष्टमी,नवमी व चतुर्दशी तिथि को इस स्तोत्र का पाठ करने से छह माह में सिद्धि प्राप्त हो जाती है, जैसा कि स्तोत्र में लिखा है। 

Nilsarswati stotra

इस स्तोत्र का ग्रहण काल में यथासामर्थ पाठ करने से भी स्तोत्र सिद्ध हो जाता है। स्तोत्र सिद्ध होने के बाद पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इस स्तोत्र का पाठ यदि मुक्ति कि इच्छा से किया जाए तो साधक को मोक्ष प्राप्त होता है, धन की इच्छा से किया जाए तो साधक को धन प्राप्त होने का योग बनता है। विद्यार्थी विद्या प्राप्ति के लिए इस स्तोत्र का पाठ करें, तो उनकी बुद्धि तीव्र होती है, जैसा कि इस स्तोत्र में लिखा है। इस स्तोत्र का पाठ दुख निवारण, संग्राम में, जंगल या कहीं भी भय के समय किया जाए तो साधक सुरक्षित रहता है, जैसा कि स्तोत्र में लिखा है।यह नीलसरस्वती स्तोत्र इस प्रकार है:

घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयंकरी, 

भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम्॥ 

ॐ सुरसुरार्जिते देवि सिद्ध-गन्धर्व-सेविते, 

जाड्य-पाप हरे देवि त्राहि मां शरणागतम्॥

जटाजूट समा युक्ते लोल-जिह्वान्त-कारिणी, 

द्रुत-बुद्धि-करे देवि त्राहि मां शरणागतम॥ 

सौम्य क्रोध धरे रूपे चण्डरूपे नमोऽस्तुते, 

सृष्टि रूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम्॥

जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्त वत्सला, 

मूढ़ता हर में देवि त्राहि मां शरणागतम्। 

वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि, बलि होम प्रिये नम:, 

उग्र तारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम्॥ 

बुद्धि देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे, 

मूढत्वं च हरेद्-देवि त्राहि मां शरणागतम्॥

इन्द्रादि- विलसद्-द्वन्द्व- वन्दिते करुणा मयी, 

तारे तारा-धिना-थास्ये त्राहि मां शरणागतम्॥ 

अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां यः पठेन-नर:, 

षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा॥ 

मोक्षार्थी लभते मोक्षं, धनार्थी लभते धनं, 

विद्यार्थी लभते विद्यां तर्क-व्याकरणादिकम्॥ 

इदं स्तोत्रं पठेद्‌यस्तु सततं श्रद्ययान्वितः, 

तस्य शत्रूः क्षयं यातिमहा प्रज्ञा प्रजायते॥ 

पीडायां वापि संग्रामे जाङये वने तथा भये, 

यइदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशय ॥ 

इति प्रणम्य स्तुत्वाच योनि-मुद्रां प्रदर्शयेत॥

!! इति नीलसरस्वती स्तोत्रम् !!

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