Follow On Google News

जीवन को अच्छा बनाने वाले शास्त्रीय सुविचार

अनमोल वचन हमारे जीवन को बहुत ही सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक होते हैं। यह ऐसे ज्ञान हैं जो प्रत्येक मनुष्य के लिए लाभदायक होते हैं

शास्त्रीय संस्कारित सुविचार - अनमोल वचन

कुछ ऐसे जीवनोपयोगी अनमोल वचन, जिनके द्वारा मनुष्य जीवन बेहतर बन सकता है। यहाॅं कुछ विशेष अनमोल वचन नीचे प्रस्तुत किए गए हैं।

शास्त्रीय सुविचार

अनमोल वचन हमारे जीवन को बहुत ही सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक होते हैं। यह ऐसे ज्ञान हैं जो प्रत्येक मनुष्य के लिए लाभदायक होते हैं और मनुष्य को सांस्कारिक बनाते हैं तथा भौतिक और पारलौकिक उन्नति दोनों में सहायता प्रदान करते हैं। यह हमारे Best life style  के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते है; इन्हें जानना बहुत ही जरूरी होता है और जानकर इनका पालन करना कर्तव्य होता है।

100 महत्वपूर्ण Best life style अनमोल वचन

1. जिसका बलवान के साथ विरोध हो गया है, उस साधन हीन दुर्बल मनुष्य को जिसका सब कुछ हर लिया गया है उसको, कामी  को, तथा चोर को रात में जागने का रोग लग जाता है।

2. अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान, उद्योग, दुख सहने की शक्ति, धर्म में  स्थिरता, आस्तिक, श्रद्धालु ,क्षमाशील, क्रोध न करना, हर्ष , गर्व और लज्जा व उद्दंडता न करना,  अपने को ही पूज्य न  समझना -   पंडित के लक्षण हैं ।

3.  दूसरे लोग जिसके पहले से  किए हुए विचार को नहीं जानते बल्कि कार्य पूरा होने पर ही जानते हैं वहीं ज्ञानी है।

4. सर्दी-गर्मी, भय - अनुराग, संपत्ति - दरिद्रता ज्ञानी पुरुषों के कार्य  में विघ्न नहीं डाल पाते हैं।

5. शक्ति के अनुसार कार्य करने की इच्छा रखनी चाहिए एवं किसी वस्तु को तुच्छ समझकर अवहेलना  नहीं करनी चाहिए।

6.  बिना पूछे किसी के विषय में कोई भी बात किसी से नहीं करनी चाहिए।

7. भलाई करने वालों में दोष नहीं निकालना चाहिए, आदर होने पर अधिक हर्षित नहीं  चाहिए, अनादर से तुरंत क्रोधित नहीं  होना  चाहिए।

8. न  चाहने वालों को चाहना( शत्रु को मित्र बनाना)  एवं चाहने वालों का त्याग  करना( मित्र से द्वेष करना) मूर्खों का काम है ।

9. अपने कामों को व्यर्थ फैलाना, सर्वत्र संदेह करना, शीघ्र होने वाले काम में देर लगाना मूर्खों का काम है।

10. बिना पूछे भीतर नहीं जाना चाहिए।

11. जो अपने द्वारा भरण - पोषण के योग्य व्यक्तियों को बांटे बिना अकेले ही उत्तम भोजन करता है वह अच्छा वस्त्र पहनता है,  वह बड़ा क्रूर है ।

12. मनुष्य अकेला पाप करता है और  बहुत से लोग उससे मौज उड़ाते हैं । मौज उड़ाने वाले तो छूट जाते हैं, पर उसका कर्ता ही दोष का भागी होता है  ।

13.  बुद्धि से कर्तव्य - अकर्तव्य का निश्चय करके साम-दाम-दंड-भेद से शत्रु को वश में करो। 

14. पांच इंद्रियों को जीत कर 6 गुणों - संधि, विग्रह , मान , आसन , द्वैव द्विभाव , समाश्रय रूप को जानकर  स्त्री (परस्त्री), जूआ , मृगया( शिकार) , शराब,  कठोर वचन , दण्ड की कठोरता , अन्याय से धन का उपार्जन को छोड़कर सुखी हो जाइए ।

15.  अकेले स्वादिष्ट भोजन ना करो , अकेला किसी विषय का निश्चय ना करो , अकेले रास्ता ना चलो,  बहुत से लोग सोए हो तो उन्हें अकेला ना जागे ।

16.  क्षमाशील  पुरुषों में एक ही दोष है  कि लोग उसे असमर्थ समझ लेते हैं  । परंतु क्षमा बहुत बड़ा बल है ,  क्षमा असमर्थ मनुष्यों का गुण , समर्थों का भूषण है । इस जगत में क्षमा वशीकरण का रूप है  । एकमात्र क्षमा ही श्रेष्ठ शान्तिः का श्रेष्ठ उपाय है ।

17. दुष्टों का अधिक आदर नहीं  करना चाहिए ।

18 यह दो अपने शरीर को सुखा देने वाले विषैले कांटो के समान है -  निर्धन होकर बहुमूल्य वस्तु की इच्छा रखने वाला , असमर्थ होकर क्रोध करने वाला ।

19. ये दो पुरुष स्वर्ग से भी ऊपर स्थान पाते हैं-  शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाला, निर्धन होकर भी दान देने वाला।

20. स्त्री, पुत्र, व दास धन के अधिकारी नहीं  माने जाते ; इनके द्वारा कमाया गया धन  उसी का होता है जिसके ये अधिन  होते  हैं।

21.  दूसरे के धन का हरण,  दूसरे की स्त्री का संसर्ग करना, सुहृद मित्र का परित्याग, काम, क्रोध, लोभ कभी नहीं करना चाहिए।

22. भक्त सेवक तथा मैं आपका हूं ऐसा कहने वाले को अपने पर संकट आने पर भी उसे बचाना चाहिए।

23. 4 चीजें तत्काल फल देते हैं- देवताओं का संकल्प , बुद्धिमानों का प्रभाव, विद्वानों की नम्रता , पापियों का विनाश।

24. चार कर्म भय  दूर करने वाले हैं किंतु वे ही  यदि ठीक तरह से संपादित न हो तो भय उत्पन्न कर सकते हैं -   आदर के साथ अग्निहोत्र, आदरपूर्वक मौन का पालन, आदरपूर्वक स्वाध्याय, आदर के साथ यज्ञ का अनुष्ठान।

25.  माता-पिता, अग्नि, आत्मा, गुरु की सेवा करनी चाहिए।

26.  देवता, पितर ,मनुष्य, सन्यासी, अतिथि की पूजा से यश प्राप्त होता है।

27. उन्नति चाहने वाले पुरुषों को नींद, तन्द्रा ( ऊँघना ) डर, क्रोध , आलस्य , दीर्घसूत्रता (जल्दी हो जाने वाले काम में देर लगाने की आदत)  त्याग देनी चाहिए।

28. उपदेश न देने वाले आचार्य मंत्र उच्चारण न करने वाले होत्रा, रक्षा करने में समर्थ राजा, एवं कटु वचन बोलने वाली स्त्री को त्याग देना चाहिए। 

29.  दान, सत्य, कर्मण्यता ,अनुसूया (गुणों में दोष दिखाने की प्रकृति का अभाव), क्षमा एवं धैर्य को कभी नहीं त्यागना चाहिए।  

30.  चोर असावधान पुरुष से, वैद्य रोगी से ,मतवाली स्त्रियों से कमियों , पुरोहित यजमान से, राजा झगड़ने वालों से , विद्वान पुरुष मूर्खों से अपनी जीविका चलाते हैं।

31.  सत्य ,दान ,कर्मण्यता, अनसूया ( गुणो में दोष दिखाने का प्रवृत्ति का अभाव ) क्षमा व धैर्य को कभी नहीं त्यागना चाहिए ।

32. जो अपने बराबर वालों के साथ  विवाह,  मित्रता का व्यवहार तथा बातचीत करता है, हीन पुरुषों के साथ नहीं रहता और गुणों में बड़े-चढ़े पुरुषों को सदा आगे रखता है उस विद्वान की नीति श्रेष्ठ है|

33.  सत्यवादी , दूसरो को आदर करना , पवित्र विचार वाला ,स्वय भी लज्जाशील होना चाहिये।

34.  मनुष्य को चाहिए कि वह जिसकी  पराजय नहीं चाहता, उसको बिना पूछे भी कल्याण करने वाली, या अनिष्ट करने वाली , अथवा अच्छी बुरी  जो बात हो बता दे। 

35. अच्छे  उपायों का उपयोग करके सावधानी के साथ किया गया कोई कर्म यदि सफल न हो तो बुद्धिमान पुरूष को उसके लिए मन में ग्लानि नहीं करना चाहिए ।

36.  मनुष्य को पहले कर्मों के प्रयोजन, परिणाम तथा अपनी उन्नति का विचार करें फिर कार्य आरम्भ करना चाहिए।

37.  जल्दबाजी में घबराकर कोई भी निर्णय नहीं देना या लेना चाहिए।

38.  उद्दंडता सम्पत्ति को उसी प्रकार नष्ट कर देती हैं जैसे सुन्दर रूप को बुढ़ापा।

39.  अपनी उन्नति चाहने वाले व्यक्ति को वहीं वस्तु खानी या ग्रहण करनी चाहिये, जो खाने योग्य हो तथा खायी जा सके या ग्रहण की जा सके व पच सके व पचने पर हितकारी हो।

40.  इस कर्म को न करने से मेरा क्या लाभ होगा और न करने से क्या हानि होगी  इस प्रकार भलीभाँति विचार करकें ही कर्म करना या न करना चाहिए, लेकिन निज (परिवार का पोषण) कर्तव्यों में लाभ-हानि का विचार नहीं करना चाहिये।

41.  जिनका मूल (साधन) छोटा है और फल महान है, बुद्धिमान पुरुष को उनको शीघ्र ही आरम्भ कर देता है, वैसे काम में वह विघ्न नहीं आने देता। 

42.  कच्चा (कम शक्ति वाला) होने पर पके ( शक्ति संपन्न ) की भातीं अपने को प्रकट करे। ऐसा करने से वह (राजा, मनुष्य) नष्ट नहीं होता । 

43.  निरर्थक बोलने वाला, पागल तथा बकवाद करने वाले बच्चे से भी सब ओर से उसी भांति तत्व की बात ग्रहण कर लेनी चाहिये , जैसे पत्थर में से सोना निकाला जाता है। धीर पुरुष को जहां तहां से भावपूर्ण वचनों, सूक्तियाँ और सत्कर्म का संग्रह करना चाहिए । 

44.  बुद्धिमान पुरुष को अधिक बलवान के सामने झुक जाना चाहिए।

45.  सत्य से धर्म की रक्षा होती है, योग से विद्या की रक्षा होता है , सफाई से सुन्दर रूप की रक्षा होती है,  सदाचार से कुल की रक्षा होती है, मैंले वस्त्र से स्त्रियों की रक्षा होती है।

अपने सुख के समय अधिक हर्षित व अधिक घमंडी ना होना, एवं दूसरे के दुख में न हंसना अथवा दूसरों को दुखी देखकर खुश न होना ही सदाचारी के लक्षण है वह इसी क्रिया का नाम सदाचार है।

46.  न करने योग्य काम करने से, करने योग्य काम में प्रमाद करने से तथा कार्य सिद्ध होने के पहले ही मंत्र प्रकट हो जाने से डरना चाहिए और जिसे नशा चढ़े ऐसा पेय नहीं पीना चाहिए।

47. अच्छे वस्त्र वाला सभा को जीतता(अपना प्रभाव जमा लेता है) सवारी से चलने वाला मार्ग को जीत लेता है, शिलवान पुरुष सब पर विजय पा लेता है, पुरुष में शील ही प्रधान है जिसका वही नष्ट हो जाता है इस संसार में उसका जीवन धन बंधुओं से कोई प्रयोजन नहीं है।

48.  धन उत्तम पुरुषों के भोजन में मांस की, मध्यम लोगों के भोजन में गोरस की तथा दरिद्रों के भोजन में तेल की प्रधानता होती है, दरिद्र पुरुष सदा ही स्वादिष्ट भोजन करते हैं क्योंकि भूख ही स्वाद की जननी है, संसार में धनियों को भोजन की शक्ति नहीं होती किंतु दरिद्रों के पेट में काठ भी पच जाते हैं।

49. अधम  पुरुषों को जीविका न रहने से भय लगता है, मध्यम श्रेणी के मनुष्यों को मृत्यु से भय लगता है परंतु उत्तम पुरुषों को अपमान से ही महान भय होता है ।

50.  ऐश्वर्य का नशा सबसे बुरा है, क्योंकि ऐश्वर्य के मद से मतवाला पुरुष भ्रष्ट हुए बिना होश में नहीं आता ।

51.  जो जीवो को वश में करने वाली सहज पांच इंद्रियों से जीत लिया गया उसकी आपत्तियां शुक्ल पक्ष के चंद्रमा की भांति बढ़ती हैं।

52. मनुष्य का शरीर रथ है,  बुद्धि सारथी है,  मन लगाव है,  इंद्रियां उसके घोड़े हैं , आत्मा इसका सवार है , इनको वश में करके सावधान रहने वाला चतुर एवं बुद्धिमान पुरुष काबू में किए हुए घोड़ों से रथी के भातीं  सुखपूर्वक यात्रा करता है।

53. जो चित्त के वशीभूत व विकार भूत पास इंद्रिय रूपी  शत्रुओं को जीते बिना ही दूसरे शत्रुओं को जीतना चाहता है उसे शत्रु पराजित कर देते हैं।

54.  दुष्टों का त्याग ना करने से वह उनके साथ मिले रहने से निरापराध सज्जन भी समान ही दंड पाते जैसे सूखी लकड़ी मिल जाने से गीली लड़की  भी जल जाती है।

55.  गुणों में दोष देखना सरलता, पवित्रता, संतोष , प्रिय वचन बोलना, इंद्रिय दमन, सत्य भाषण तथा अचंचलता यह गुण दुरात्मा पुरुषों में नहीं होते।

56.  आत्मज्ञान , खिन्नता का अभाव, सहनशीलता, धर्म परायणता, वचन की रक्षा , तथा दान मनुष्य के महान गुण हैं ।

57. गाली देने वाला पाप का भागी होता है और क्षमा करने वाला पाप से मुक्त हो जाता है।

58. दुष्टों का बल है हिंसा,  राजाओं का बल है दंड देना, स्त्रियों का बल है सेवा और गुणवान वालों का बल है क्षमा।

59.  मधुर शब्दों में कही हुई बात अनेक प्रकार से कल्याण करती है, किंतु वहीं यदि कटु शब्दों में कई जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है । 

60.  देवता लोग जिसे पराजय देते हैं उसकी बुद्धि को पहले ही हर लेते हैं, विनाशकाल उपस्थित होने पर बुद्धि मलीन हो जाती है । 

61. सब तीर्थों में स्नान और सब प्राणियों में साथ कोमलता का बर्ताव यह दोनों एक ही समान है ।

62. इस लोक में जब तक मनुष्य की पावन कीर्ति का गान किया जाता है तब तक वह स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है ।

62. सौत वाली स्त्री,  जुए में हारे जुआरी, भार ढोने से व्यथित शरीर वाले मनुष्य की रात में जो स्थिति होती है वही स्थिति उल्टा (झूठा) न्याय देने वाले वक्ता की भी होती है।

63. सोने के लिए झूठ बोलने वाला भूत और भविष्य सभी  पीढ़ीयों को नरक में  गिराता है,  पृथ्वी तथा नारी के लिए झूठ बोलने वाला तो अपना सर्वनाश कर डालता है ।

64. देवता लोग चरवाहों की तरह डंडा लेकर पहरा नहीं देते, वे जिसकी रक्षा करना चाहते उसको उत्तम बुद्धि से युक्त कर देते हैं।

65.  शराब पीना,  कलह, समूह के साथ वैर, पति-पत्नी में भेद पैदा करना है रास्ता कुटुंबा बालों में भेद बुद्धि उत्पन्न करना, राजा के साथ द्वेष, बुरे रास्ते इन्हें त्याग देना चाहिए। 

66.  हस्तरेखा देखने वाला, चोरी करके व्यापार करने वाला, जुआरी, वैद्य , शत्रु , मित्र , चारण इन सातों को कभी गवाह ना बनाएं।

67.   बुढ़ापा सुंदर रूप को, आशा धीरता को, मृत्यु प्राणों को , दोष देखने की आदत धर्म आचरण को, क्रोध लक्ष्मी को, नीच पुरुषों की सेवा सत्स्वभाव को ,काम लज्जा को ,अभिमान को सर्वस्व नष्ट कर देता है ।

68.  शुभ कर्मों से लक्ष्मी की उत्पत्ति होती है प्रगल्भता से बढ़ती है, चतुरता से जड़ जमा लेती और संयम से सुरक्षित रहती है।

69.   8 गुण पुरुष की शोभा बढ़ाते हैं-  बुद्धि , कुलीनता, दम,  शास्त्र ज्ञान , पराक्रम, बहुत न बोलना यथाशक्ति दान और कृतज्ञता ।

70. यज्ञ, अध्ययन , दान, तप  क्षमा, दया ,लोक का अभाव यह धर्म आठ प्रकार के मार्ग बताए गए हैं।

71.  जिस सभा में बड़े बूढ़े नहीं वह सभा नहीं, जो धर्म की बात न कहे वह  बूढ़े नहीं।

72.  बारंबार किया हुआ पाप बुद्धि को नष्ट कर देता है जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है वह सदा पाप ही करता रहता है।

73.  बारंबार किया हुआ  पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है जिसकी बुद्धि बढ़ जाती है वह सदा पुण्य ही करता है।

74.  दिनभर वह कार्य करें जिससे रात में सुख रहे, 8 महीने व कार्य करें जिससे वर्षा के 4 महीने सुख से व्यतीत कर सके , बाल्यावस्था में वह कार्य करें जिससे वृद्धावस्था में सुख पूर्वक रह सके और जीवन भर का कार्य करें जिसे मरने के बाद भी सुखी रह सके ।

75.  बुद्धि से विचार कर किए हुए कर्म श्रेष्ठ होते हैं। बाहुबल से किए जाने वाले कर्म मध्यम श्रेणी के होते हैं, जंघा से होने वाले कर्म अधम है,और भार ढोने का काम महाअधम है।

76.  दूसरों से गाली सुनकर स्वयं उन्हें गाली ना दें, क्षमा करने वाले वालों का हुआ क्रोध ही गाली देने वाले को जला डालता है ,और उसके पुण्य को भी ले लेता है।

77.  जैसे वस्त्र जिस रंग में रंगा जाए वैसा ही हो जाता है, उसी प्रकार यदि कोई सज्जन ,असज्जन ,तपस्वी अथवा चोर की सेवा करता है तो उस पर उसी का रंग चढ़ जाता है ।

78.  सज्जनों के घर में इन चार चीजों की कमी कभी नहीं होती- तृण का  आसन, पृथ्वी, जल और चौथी मीठी वाणी।

79.  मित्रों से कुछ भी ना मांगते हुए उनके सार असार की परीक्षा ना करें।

80.  संताप से रूप नष्ट होता है, संताप से बाहुबल नष्ट होता है, संताप से ज्ञान नष्ट होता है, संताप से मनुष्य को रोग प्राप्त होता है।

81. सुख-दुख, उत्पत्ति, विनाश ,लाभ-हानि ,जीवन मरण, यह बारी-बारी से प्राप्त होते हैं। इसलिए धीरपुरूष को इनके लिये हर्ष व शोक नहीं करना चाहिए ।

82. बुद्धि से मनुष्य अपने भय  को दूर करता है, तपस्या से महान पद को प्राप्त करता है, गुरूशुश्रुसा उसे ज्ञान और योग शांति पाता है, जिसको धनवान व आरोग्यता प्राप्त है व  भाग्यवान है क्योंकि इसके बिना वह मुर्दे के समान है ।

83.  जो बिना रोग के उत्पन्न,कड़वा, सिर में दर्द पैदा करने वाला पाप से संबंध, कठोर तीखा और गरम है जो सज्जनो द्वारा पान करने योग्य है जिसे दुर्जन भी नहीं पी सकते - उस क्रोध को आप पी  जाइए।

84.  जो मनुष्य अपने साथ जैसा बर्ताव करें उसके साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिए  यदि  समर्थ हो तब यही नीति है।

85. कुल की रक्षा के लिए एक मनुष्य का, ग्राम की रक्षा के लिए कुल का, देश की रक्षा के लिए गांव का , और आत्मा के कल्याण के लिए सारी पृथ्वी त्याग देनी चाहिए।

86. आपत्ति के लिए धन की रक्षा करें धन के द्वारा स्त्री की रक्षा करें और स्त्री और धन दोनों के द्वारा सदा  अपनी रक्षा करें।

87.  पहले कर्तव्य , आय व्यय और उचित वेतन आदि का निश्चय करके फिर सुयोग्य सहायकों का संग्रह करें क्योंकि कठिन से कठिन कार्य सहायकों द्वारा साध्य होते हैं।

88.  जो सेवक स्वामी की आज्ञा देने पर उनकी बात का आदर नहीं करता किसी काम में लगाए जाने पर इनका इंकार कर जाता है अपनी बुद्धि पर गर्व करता है और प्रतिकूल वाले को शीघ्र ही त्याग देना चाहिए । 

89. अहंकार रहित , कायरता शन्य  शीघ्र कार्य पूरा करने वाला दयालु, शुद्ध हृदय, दूसरों के बहकावे  में न आने वाला ,निरोग और उदार वचन वादा इन 8 गुणों से युक्त मनुष्य को दूत बनाने के योग्य बताया गया है।

90.  सावधान मनुष्य विश्वास होने पर सायंकाल  में शत्रु के घर ना जाएं रात में छुपकर चौराहे पर खड़ा ना हो अधिक दयालु राजा व्यभीचारणी स्त्री राज कर्मचारी पुत्र भाई छोटे बच्चों वाली विधवा सैनिक और जिस का अधिकार छीन लिया गया हो वह पुरुष इन सब के साथ लेनदेन का व्यवहार ना करें।

91.  नित्य स्नान करने वाले मनुष्य को बल, रूप, मधुर ,स्वर,  उज्जन वर्ण ,कोमलता ,सुगंध, पवित्रता , शोभा ,सुकुमार और सुंदर स्त्रियां यह दस  लाभ प्राप्त होते हैं ।

92. थोड़ा भोजन करने वालों को निम्नांकित  6 गुण प्राप्त होते हैं- आरोग्य ,आयु, बल, सुख, सुंदर ,संतान, यह  बहुत खाने वाला ऐसा कहकर उस पर आक्षेप  नहीं  करते।

93. अकर्मण्य, बहुत खाने, वाले सब लोगों से बैर करने वाले, अधिक मायावी ,क्रूर ,देश काल ,का ज्ञान न रखने वाले नंदित वेश धारण करने वाले मनुष्य को कभी घर में न ठहरने दें।

94.  बहुत दुखी होने पर भी कृपण, गाली बकने वाले, मूर्ख जंगल में रहने वाले, धूर्त, नीच से भी निर्दयी बैर बाधने वाले और कृतघ्न से कभी सहायता की याचना नहीं करनी चाहिए ।

95. ऐसा कौन बुद्धिमान होगा जो स्त्री, राजा, सापं, पढ़े हुए पाठ सामर्थसाली व्यक्ति, शत्रु ,भोग और आयुष्य पर पूर्ण विश्वास कर सकता है।

96.  जिसको बुद्धि से प्रताणित किया गया है उस जीव के लिए ना कोई वैद्य है ,न दवा है, न होम, न मंत्र, न कोई मांगलिक कार्य और न अथर्ववेदोक्त प्रयोग और न भलीभाती  सिद्ध बूटी ही है।

97. मनुष्य को चाहिए कि वह  सर्प , सिंह, अग्नि  और अपने कुल में उत्पन्न व्यक्ति का अनादर न करें, क्योंकि यह सभी बड़े तेजस्वी होते हैं।

98. धीर पुरुष को चाहिए कि जब कोई साधु पुरुष अतिथि के रुप में घर पर आवे तो सबसे पहले आचमन देकर जल लाकर उसके चरण पखारे फिर उसके कुछ सब पूछ कर अपनी स्थिति बतावें तदनन्तर आवश्यकता समझकर अन्न करावे।

99. वैद्य, चिर-फाड ,करने वाले जर्राह, ब्रह्मचर्य से भ्रष्ट, चोर, क्रूर, शराबी, गर्भहत्यारा, सेनाजीवी, वेद विक्रेता- ये  पैर  धोने के योग्य नहीं है तथापि यह यदि अतिथी होकर आवें तो  विशेष आदर के योग्य होते हैं।

100.  समुद्र में गोता लगाने से यदि मोती हाथ ना लगे तो यह न समझो कि समुद्र में मोती नहीं है। यदि तुम्हारा प्रथम प्रयास निष्फल हो , तो भी ईश्वर का नाम लेकर निरन्तर प्रयास करते रहो !

निष्कर्ष 

प्रिय मित्रों !  यही कुछ विशेष अनमोल वचन है जो हमने बहुत परिश्रम से गरुड़ पुराण, चाणक्य नीति और विदुर नीति से इकट्ठा किया है। इसको पढ़ने के लिए और इसके अनुसार चलने के लिए मैं आप लोगों से नम्र निवेदन करता हूं। इसके द्वारा आप अपने जीवन को सफल बनाएं।

Able People Encourage Us By Donating : सामर्थ्यवान व्यक्ति हमें दान देकर उत्साहित करें।

Thanks for reading: जीवन को अच्छा बनाने वाले शास्त्रीय सुविचार, Please, share this article. If this article helped you, then you must write your feedback in the comment box.

Getting Info...

Post a Comment

Comment your feedback on this article!

Recently Published

10+ Foods To Improve Your Vision

आँखों की कमजोरी या कमज़ोरी के लक्षण कई लोगों को होने वाली सबसे आम दृष्टि समस्याएं हैं आंखों में दर्द, आंखों में पानी आना, पढ़ते समय आंखों में पानी आ…
Cookie Consent
We serve cookies on this site to analyze traffic, remember your preferences, and optimize your experience.
Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.
AdBlock Detected!
We have detected that you are using adblocking plugin in your browser.
The revenue we earn by the advertisements is used to manage this website, we request you to whitelist our website in your adblocking plugin.
Site is Blocked
Sorry! This site is not available in your country.