तुलसी के स्वास्थ्य लाभ
- तुलसी का वैज्ञानिक नाम: ओसिमम सैन्कटम
- तुलसी की प्रकृति: गर्म

शक्तिवर्धक :
एक छटाँक पीसे हुए तुलसी बीज को गाय के आधा लीटर दूध में उबालकर नित्य पीने से माँसपेशियाँ और हड्डियाँ मजबूत होती है। तुलसी के बीज दूध में उबालकर शक्कर मिलाकर पीने से ताकत बढ़ती है।
मिरगी :
तुलसी के हरे पत्तों को पीसकर मिरगी वाले के सारे शरीर पर प्रतिदिन मालिश करने से लाभ होता है।
बेहोशी :
तुलसी के पत्तों को पीसकर नमक मिलाकर उसका दो बूंद रस नाक में डालने से बेहोशी, मूच्छा में लाभ होता है।
मलेरिया :
(1) नित्य तुलसी के पत्तों का सेवन करने से मलेरिया नहीं होता। मलेरिया हो जाय तो बुखार उतरने पर प्रातः 15 तुलसी के पत्ते और 10 काली मिर्च खाने से पुन: मलेरिया बुखार नहीं चढ़ता। तुलसी के सेवन से सभी प्रकार के ज्वरों में लाभ होता है।
(2) 20 तुलसी के पत्ते, 10 काली मिर्च, दो चम्मच शक्कर का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया में लाभ होता है।
सामान्य ज्वर :
ज्वर, खाँसी, श्वास रोग में तुलसी की पत्तियों का रस तीन ग्राम, अदरक का रस तीन ग्राम, शहद 5 ग्राम मिलाकर सुबह-शाम चाटें, लाभ होगा।
दस तुलसी के पत्ते,तीन ग्राम सौंठ, पाँच लौंग, इक्कीस काली मिर्च, स्वाद के अनुसार चीनी डाल कर उबालें। जब पानी आधा रह जाये तो रोगी को पिलायें। ज्वर उतर जायेगा। यदि ज्वर में घबराहट हो तो तुलसी के पत्तों के रस में शक्कर मिला कर शर्बत बनाकर पिलायें।
जुकाम, खाँसी, गलशोथ, फेफड़ों में कफ जमा हो तो तुलसी के सूखे पत्ते, कत्था, कपूर और इलायची समभाग, नौ गुना शक्कर; सबको बारीक पीस लें। यह विचूर्ण बन जाता है। इसे चुटकी भर सुबह, शाम सेवन करने से जमा हुआ कफ बाहर निकल जाता है।
नाक में दुर्गन्ध :
तुलसी के पत्तों का रस या पिसे हुए सूखे पत्ते सूँघने से नाक की दुर्गन्ध दूर होती है और कीटाणु मर जाते हैं।
पुराना ज्वर और खाँसी :
जीर्ण ज्वर हो गया हो और साथ ही ऐसी खाँसी हो जिससे छाती में दर्द हो तो तुलसी के पत्तों के रस में मिश्री मिला कर पीने से लाभ होता है।
गले में खराश :
गले में खराश खट्टी चीजें खाने से हो तो 25 तुलसी के पत्ते एवं अदरक पीसकर शहद में मिलाकर चाटें, खराशें दूर हो जायेंगी।
जुकाम, ज्वर प्रतिरोधक :
15 तुलसी के पत्ते और चार काली मिर्चे हमेशा प्रातः खाते रहें तो जुकाम एवं ज्वर नहीं होंगे।
तुलसी की चाय :
लोग नित्य आदत के रूप में चायपत्ती की चाय पीते हैं, यह हानिकारक है। चाय के विधान पर तुलसी की चाय काम में लेने से अनेक रोग दूर होंगे तथा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।
तुलसी की चाय बनाने की विधि:
छाया में सूखी हुई तुलसी की पत्ती 50 ग्राम, बनफशा, सौंफ, ब्राह्मी बूॅंटी, लाल चन्दन बुरादा; प्रत्येक 30 ग्राम; इलायची, दाल-चीनी, ये सब दस ग्राम; मिलाकर कूट लें और इसे चाय के समान पानी में डालकर चाय बनायें तथा दूध-शक्कर मिलाकर पीयें। यह मात्रा 50 कप चाय की है। इससे सामान्य ज्वर, जुकाम, छींके आना ठीक हो जायेगा।
खाँसी :
- पाँच लौंग भूनकर तुलसी के पत्तों के साथ चबाने से सब तरह की खाँसी में लाभ होता है।
- केवल तुलसी के पत्तों के काढ़े से भी खाँसी ठीक होती है।
- तुलसी की सूखी पत्तियाँ और मिश्री चार ग्राम की एक मात्रा लेने से खाँसी और फेफड़ों की घड़घड़ाहट दूर हो जाती है।
- तुलसी के पत्ते और काली मिर्च समान भाग लेकर पीस लें। इसकी मूँग के बराबर गोलियां बना लें। एक एक गोली चार बार दें। इससे कूकर खाँसी भी ठीक हो जाती है।
- तुलसी, अदरक और प्याज का रस शहद के साथ सेवन करने से खाँसी में लाभ होता है। बलगम बाहर आ जाती है।
- तुलसी की 12 ग्राम हरी पत्तियों का काढ़ा (Decoction) बना कर उसमें चीनी, गाय का दूध मिलाकर पीने से खाँसी और छाती का दर्द दूर होता है।
- तुलसी का सूखा चूर्ण, शहद में मिलाकर चाटने से खाँसी में आराम होता है।
- तुलसी, अदरक समान मात्रा में पीस कर एक चम्मच रस निकालें। इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर चाटें। इससे खाँसी, गले के रोग ठीक हो जाते हैं।
- 3 ग्राम तुलसी का रस, 6 ग्राम मिश्री; तीन काली मिर्च मिलकर लेने से छाती के जकड़ने, पुराने बुखार और खाँसी में लाभ होता है।
निमोनिया :
20 तुलसी के हरे पत्ते और 5 काली मिर्च पीसकर पानी में मिलाकर पिलाने से निमोनिया में लाभ होता है।
भोजन का पाचन :
भोजन के बाद तुलसी के 5 ताजे पत्तों को पीसकर पानी मिलाकर पीने से अजीर्ण (भोजन न पचना) दूर होता है। नित्य तुलसी के पाँच पत्ते सेवन करने से भोजन शीघ्र पचता है।
जुकाम :
- दस तुलसी के पत्ते, पाँच काली मिर्च पानी में मिलाकर चाय की तरह उबालें। फिर इसमें थोड़ा सा गुड़ और देशी घी या सैंधा नमक डाल कर पीयें। इससे ज़ुकाम में लाभ होता है।
- केवल तुलसी के पत्तों के काढ़े से भी जुकाम ठीक हो जाता है। तुलसी के पत्ते, काली मिर्च सौंठ को चाय की तरह उबाल कर शक्कर, दूध मिलाकर पिलाने से जुकाम में आराम होता है।
- तुलसी की पत्तियों को पीसकर सूँघने से बहता जुकाम रुक जाता है, बच्चों की सर्दी, खाँसी, कफ की गड़गड़ाहट में तुलसी के पत्तों का रस शहद में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
- बच्चों के श्वांस रोग में तुलसी के पत्तों का रस पाँच बूँद, आधा चम्मच शहद में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
आधे सिर का दर्द :
चौथाई चम्मच तुलसी के पत्तों का चूर्ण शहद के साथ सुबह, शाम चाटने से लाभ होगा।
सिर दर्द :
तुलसी के पत्ते छाया में सुखाकर रख लें। इन्हें पीस लें। इसे सिर दर्द के रोगी को सुँघाने से पीड़ा शान्त होती है तथा पागलपन की उत्तेजना ठीक होती है। तुलसी के पत्तों का रस और नींबू का रस समान मात्रा में पीने से सिर दर्द दूर होता है।
बच्चों के दस्त :
तुलसी और पान के पत्ते का रस समान मात्रा में गर्म करके पिलाने से बच्चों के दस्त साफ आते हैं, पेट फूलना, आफरा ठीक हो जाता है। .
बच्चों के दाँत निकलना :
तुलसी के पत्तों का रस शहद में मिलाकर मसूड़ों पर लगाने से और थोड़ा-सा चाटने से दांत बिना कष्ट के निकल आते हैं। तुलसी के पत्तों का चूर्ण अनार के शर्बत के साथ देने से भी दांत सरलता से निकल आते हैं।
दाद-खुजली :
- तुलसी के पत्ते का रस 12 ग्राम नित्य पीयें।
- खाज, दाद पर तुलसी के पत्तों का रस और नींबू का रस समान मात्रा में मिलाकर लगाने से ठीक हो जाता है।
- तुलसी के पत्ते पानी में उबालकर उस पानी से फोड़ों को धोयें। ताजा पत्ते पीस कर फोड़ों पर लगायें।
- गर्मी, वर्षा में होने वाली फुन्सियों पर तुलसी की लकड़ी घिस कर लगायें।
दांत-दर्द:
तुलसी की पत्ती और काली मिर्च को पीस कर गोली बनालें। इसे दुखते दाँत के नीचे दबाए रखने से दाँत दर्द शान्त होता है। तुलसी के पत्ते दाँतों से चबाकर खाने से दाँत मजबूत होते हैं और मुँह की बदबू दूर होती है।
हैजा :
तुलसी की पत्ती और काली मिर्च को पीस कर गोली बनालें। इसी गोली को खाने से हैजा ठीक होता है।
पेचिश-दस्त :
- तुलसी की पत्ती को शक्कर के साथ खिलाने से पेचिश दूर होती है।
- पेट दर्द में तुलसी और अदरक के रस को सम भाग लेकर गर्म करके पीने से लाभ होता है। 12 ग्राम तुलसी का रस पीने से पेट की मरोड़ ठीक हो जाती है।
- तुलसी के पत्तों का काढ़ा पीने से दस्तों में लाभ होता है। दस ग्राम तुलसी के पत्तों का रस नित्य पीने से मरोड़ और अजीर्ण में गुणकारी है।
उल्टी :
तुलसी की पत्तियों का रस पीने से उल्टी बंद हो जाती है। पेट के कीड़े (कृमि) मर जाते हैं। शहद और तुलसी का रस मिलाकर चाटने से जी मिचलाना, उल्टी भी बंद होती है।
संग्रहणी :
तुलसी के पत्तों का चूर्ण और शक्कर हरेक तीन ग्राम मिला कर लें।
अजीर्ण, मन्दाग्नि :
20 पत्ते तुलसी, 5 काली मिर्च खाने के बाद चबाने से मन्दाग्नि ठीक हो जाती है। यह परीक्षित है। तुलसी के काढ़े में सैंधा नमक और सौंठ मिलाकर पीने से अजीर्ण ठीक होता है।
हिचकी :
तुलसी का रस 12 ग्राम, शहद6 ग्राम दोनों को मिला कर पीने से हिचकी बंद हो जाती है।
यकृत की खराबी :
एक गिलास पानी में 12 ग्राम तुलसी के पत्ते उबाल कर चौथाई पानी रहने पर छान कर पीने से यकृत बढ़ना एवं यकृत के अन्य रोग ठीक हो जाते हैं।
नकसीर :
तुलसी का रस 4 बूँद नाक में टपकाने से रक्तस्राव बंद होता है। पीनस, नाक में दर्द, घाव, फुन्सी हो तो तुलसी के सूखे पत्तों को पीस कर सूँघने से लाभ होता है।
बहरापन, कान का दर्द :
तुलसी के पत्तों का रस गर्म करके चार बूँद कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है। कान बहता हो तो लगातार कुछ दिन डालने से लाभ होता है।
रक्तस्राव :
रक्तस्राव, चक्कर आते हों तो तुलसी के 20 पत्तों को पीसकर 1 चम्मच शहद में मिला कर चाटें, लाभ होगा।
सिर चकराना, लू लगना :
तुलसी के पत्तों का रस 5 बूँद, चीनी 1 चम्मच, पानी आधा कप में मिलाकर पिलाने से लू नहीं लगती और लू लगने पर लाभ होता है। चक्कर नहीं आती।
प्रदरः
- तुलसी के पत्तों का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर प्रातः और शाम को 'नाटने से लाभ होता है।
- तुलसी के रस में जीरा मिलाकर गाय के दूध के साथ सेवन करें।
- स्त्रियों का अनावश्यक रक्तस्राव तुलसी की जड़ का चूर्ण चौथाई चम्मच एक पान में रख कर खिलाने से बंद हो जाता है। मासिक धर्म रुकने पर तुलसी के बीज सेवन करने से लाभ होता है।
- तुलसी के पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर सेवन करने से रक्त प्रदर ठीक हो जाता है।
प्रसव पीड़ा:
प्रसव पीड़ा के समय तुलसी के पत्तों का रस पिलाने से आवश्यकता से अधिक पीड़ा नहीं होती।
गर्भ निरोध :
मासिक धर्म बंद होने के बाद तीन दिन तक एक कप तुलसी के पत्तों का काढ़ा सेवन करने से गर्भ नहीं ठहरता, कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं होता। :
बाँझपन :
यदि किसी स्त्री को मासिक धर्म होता है, परन्तु गर्भ नहीं ठहरता तो मासिक धर्म के दिनों में तुलसी के बीज चबाने से या पानी में पीसकर लेने या काढ़ा बनाकर पिलाने से गर्भ धारण होगा। यदि गर्भ न रहे तो यह एक साल तक करें। इससे गर्भाशय निरोग, सबल बनकर गर्भ धारण योग्य बनता है।
पेशाब में जलन :
पेशाब में जलन होने पर 20 तुलसी की पत्ती चबाने से लाभ होता है।
मुंह में छाले :
तुलसी और चमेली के पत्ते चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
मुँहासे, झांई, काले धब्बे :
- खाज, दाद पर तुलसी के पत्तों का रस और नींबू का रस समान मात्रा में मिलाकर लगाने से ठीक हो जाता है। इससे चेहरे की छाइयाँ, मुँहासे, झांई, काले धब्बे व अन्य त्वचा के रोग भी ठीक हो जाते हैं।
- मुँहासे, शाइयों, काले दागों पर तुलसी का चूर्ण मक्खन में मिलाकर चेहरे पर मलें।
बच्चों के रोग :
पेट फूलना, दस्त, खाँसी, सर्दी, जुकाम, उल्टी होने पर तुलसी के पत्तों के रस में चीनी मिलाकर शर्बत बनालें। इसकी एक छोटी चम्मच पिलायें, ये सब रोग ठीक हो जायेंगे। नियमित प्रयोग से बच्चा स्वस्थ रहता है। बच्चों का उत्तम स्वास्थ्य बनाये रखने लिए तुलसी, अदरक का रस गर्म करके ठण्डा होने पर शहद मिलाकर पिलायें।
दमा :
तुलसी के रस में बलगम को पतला करके निकालने का गुण है। इसलिए यह जुकाम, खाँसी में उपयोगी है। तुलसी का रस, शहद, अदरक का रस, प्याज़ का रस मिलाकर लेने से दमा व खाँसी में बहुत लाभ होता है।
घावः
तुलसी की पत्तियों को छाया में सुखाकर बहुत ही बारीक पीसकर कपड़े से छानकर घाव पर छिड़कने से घाव भर जाता है। इसके पत्तों को पीसकर भी लगा सकते हैं।
घावों में कीड़े :
तुलसी के पत्तों को उबालकर उस पानी से घावों को धोयें। तुलसी के पत्तों का चूर्ण घावों पर छिड़कें। तुलसी के पत्तों के रस में पतला कपड़ा (गाज) भिगोकर पट्टी बाँधे।
सफेद दाग :
सफेद दाग, खुजली की फुन्सियाँ, घाव आदि पर तुलसी का तेल नित्य तीन बार लगाने से लाभ होता है।
तुलसी का तेल बनाने की विधि:
एक जड़, बीज व पत्ती सहित तुलसी का पौधा लें। इसे धोकर मिट्टी आदि साफ करलें। फिर इसे कूटकर आधा किलो पानी, आधा किलो तिल के तेल में मिलाकर धीमी-धीमी आँच पर पकायें। पानी जल जाने और तेल बनने पर मलकर छान लें। यह तुलसी का तेल बन गया, इसे लगायें। इसे सिर के बालों में न लगाएं।
तुलसी का मरहम बनाने की विधि:
जलना, खुजली, फोड़े, फुन्सी पर तुलसी की मरहम लगाना चाहिये। तुलसी के पत्तों का रस 250 ग्राम, नारियल का तेल 250 ग्राम, दोनों को मिलाकर धीमी आग पर गर्म करें। जल का भाग जल जाने पर गर्म तेल में ही 12 ग्राम मोम डालकर हिलायें। यह मरहम तैयार है। ऊपर लिखे सब रोगों में लाभदायक है।
सर्व रोग नाशक :
तुलसी की प्रकृति गर्म है, इसलिए गर्मियों में कम मात्रा में लें। बड़ों के लिये 25 से 100 पत्ते एवं बालकों के लिए 5 से 25 पत्ते एक बार पीस कर शहद या गुड़ में मिलाकर नित्य तीन बार 2-3 माह लें। प्रातः भूखे- पेट पहली मात्रा लें। इस विधि से लेने से गठिया आर्थराइटिस, ओस्टियो आर्थराइटिस, स्नायुशूल, गुर्दों की खराबी से सूजन, पथरी, सफेद दाग (Leucoderma), रक्त में चर्बी (Blood Cholestrol) बढ़ना, मोटापा, क़ब्ज़, गैस, अम्लता (Acidity), पेचिश, कोलाइटिस, प्रास्टेट के रोग, मानसिक रूप से मंद बुद्धि (Mentally Retarted) बच्चे, सर्दी-जुकाम, बिवर-प्रदाह (Sinusitis), बार-बार बुखार (Fever) आना, घाव भरना, टूटी हुई हड्डियाँ जल्दी जुड़ना, घाव शीघ्र भरना, कैंसर, बिवाइयाँ, दमा, श्वास रोग, एलर्जी, आँखें दुखना, विटामिन 'ए' और 'बी' की कमी दूर होना, खसरा, चेचक, सिर-दर्द, आधे सिर का दर्द (Migraind) दूर हो जाते हैं।
हृदय रोग :
हृदय रोग, टॉन्सिलाइटिस, गले के रोग; तुलसी की माला पहनने से नहीं होते।
निरोग शरीर :
- जो व्यक्ति 6 तुलसी के पत्ते नित्य खा लेता है, वह अनेक रोगों से सुरक्षित रहता है तथा सामान्य रोग स्वतः ही दूर हो जाते हैं।
- तुलसी की पिसी हुई पत्तियाँ एक चम्मच शहद मिला कर एक बार नित्य पीते रहें। इससे आप निरोग रहेंगे और गालों पर चमक पैदा होगी।
बिजली गिरना :
तार की बिजली या वर्षा में आकाश से बिजली गिरने से व्यक्ति बेहोश हो गया हो, तो सिर तथा चेहरे पर तुलसी का रस मलने से वह होश में आ जाता है।
पानी शुद्ध करना :
पानी में तुलसी के पत्ते डालने से पानी शुद्ध हो जाता है।
आग से जलना :
आग से जलने पर तुलसी के रस को नारियल के तेल में मिलाकर लगाने से जलन दूर होती है, छाले तथा घाव ठीक हो जाते हैं।
स्मरण शक्तिः
दस तुलसी के पत्ते, पाँच काली मिर्च, पाँच बादाम, थोड़ा-सा शहद मिलाकर ठण्डाई की तरह पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
इन्फ्लूएञ्जा :
12 ग्राम तुलसी के पत्तों को 250 ग्राम पानी में औटा (Boil) लें। जब चौथाई पानी रह जाये तो छानकर सैंधा नमक मिलाकर गर्म-गर्म पिलायें ।
अधिक प्यास :
किसी भी रोग में यदि प्यास अधिक हो तो तुलसी के पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर, नीम्बू निचोड़ कर, मिश्री मिलाकर पिलाने से प्यास कम हो जाती है।
वात दर्द (Rheumatic Pain):
तुलसी के पत्तों को उबालते हुए इसकी भाप वातग्रस्त अंगों पर दें तथा इसके गर्म पानी से धोयें। तुलसी के पत्ते, काली मिर्च, गाय का घी तीनों मिलाकर सेवन करें। इससे वात-व्याधि में लाभ होता है। जापान में यह प्रयोग लोकप्रिय प्रयोग है।
स्नायुशूल :
तुलसी के बीजों का चूर्ण स्नायुशूल में लाभ करता है।
बाला पड़ना :
चमड़ी में घाव होकर उसमे से लम्बे धागे की तरह कीड़ा निकलता है। इसे बाला या नारू कहते हैं। जहाँ बाला निकलने वाला होता है वहाँ बहुत सूजन आ जाती है। इस सूजन वाले स्थान पर तुलसी की जड़ घिस कर लेप करने से बाला 2-3 इंच बाहर आ जाता है। इसे बाँध देना चाहिए। दूसरे दिन फिर इसी तरह लेप करें। इस प्रकार लेप करते रहने से पूरा बाला बाहर निकल आता है। बाला बाहर निकल जाने पर भी लेप करते रहना चाहिए जिससे घाव पूरा भर जाये ।
बाल गिरना, सफेद होना :
यदि कम आयु में बाल गिरते हों, सफेद हो गये हों, तो तुलसी के पत्ते का कच्चा रस और आँवले का तेल पानी में मिलाकर सिर में मलें। दस मिनट बाद सिर धोलें। इससे बालों की जड़े मजबूत होती हैं तथा बाल काले होते हैं। सावधानी रखें कि लगाते व सिर धोते समय इसका पानी आँखों में न जाये।
गृधसी शूल:
तुलसी के पत्तों को पानी में उबाल कर उसकी भाप वात- नाड़ी पर दें।
मोटापा:
तुलसी के पत्तों का रस 10 बूंद एवं शहद दो चम्मच एक गिलास पानी में मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करने से मोटापा कम होता है। वसायुक्त भोजन कम खायें।
हृदय शक्तिवर्धक :
सर्दी के मौसम में तुलसी के 7 पत्ते, 4 काली मिर्च, 4 बादाम सबको ठंडाई की तरह पीसकर आधा कप पानी में घोलकर नित्य पीयें। इससे हृदय को शक्ति मिलती है। विभिन्न प्रकार के हृदय रोग ठीक हो जाते हैं।
पक्षाघात, लकवा :
तुलसी के पत्ते उबालकर रोगग्रस्त अंग को भाप देने, व धोने से लाभ होता है। तुलसी के पत्ते, सैंधा नमक, दही सबको पीसकर लेप करें।
कुष्ट रोग :
कुष्ट रोग में तुलसी के पत्तों को खाने व कुष्ट पर मलने से लाभ होता है।
स्वप्नदोष :
तुलसी की जड़ को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है।
धातु दौर्बल्य:
तुलसी के बीज 60 ग्राम, मिश्री 75 ग्राम दोनों को पीस लें। नित्य 3 ग्राम गाय के दूध से लें। इससे धातु दौर्बल्य में लाभ होता है। परीक्षित है।
शीघ्र पतन :
तुलसी की जड़ या बीज चौथाई चम्मच पान में रखकर खाने से शीघ्र पतन दूर हो जाता है। देर तक रुकावट होती है। वीर्य पुष्ट होता है।
वीर्य सम्बन्धी रोग :
3 ग्राम तुलसी के बीज या जड़ का चूर्ण समान मात्रा में पुराने गुड़ में मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से पुरुषत्व की वृद्धि होती है। पतला वीर्य गाढ़ा होता है तथा उसमें वृद्धि होती है। शरीर में गर्मी और शक्ति पैदा होती है। गैस और कफ से होने वाले अनेक रोग दूर होते हैं। यह 40 दिन लें।
बवासीर :
बवासीर पर तुलसी के पत्तों को पीस कर लेप करने या रस लगाने से लाभ होगा। तुलसी के पत्तों का सेवन भी नित्य करें। मरचा, मसाला, बैंगन का सेवन न करें।
विषैले वंश :
बर्र, भौरा, बिच्छू के काटने पर उस स्थान पर तुलसी के पत्तों को पीसकर नमक मिलाकर लगाने से जलन और कष्ट शीघ्र दूर हो जाते हैं। तुलसी के पत्तों का रस शरीर पर लगाने से मच्छर नहीं काटते।
बिच्छू, बर्र, सर्प काट ले तो तुलसी के पत्ते पीस कर जल में मिलाकर रोगी को पिलायें।
चेचक, ज्वर :
तुलसी के पत्तों के साथ अजवाइन पीस कर नित्य सेवन करने से चेचक का ज्वर कम रहता है।
चेचक की प्रतिरोधक :
जब चेचक या महामारी माता फैल रही हो, उस समय नित्य सवेरे तुलसी के पत्तों का रस पीना अच्छा है।
मुँह से दुर्गन्धः
तुलसी का पत्ता सब तरह की दुर्गन्ध का नाश करने वाला है। खाना खाने के बाद तुलसी के पत्ते चबाने से मुँह में दुर्गन्ध नहीं आती।
निष्कर्ष :
आपने समझ लिया होगा कि तुलसी के कितने उपयोग हैं। आज अधिकांश लोग केवल कृत्रिम दवाओं पर निर्भर हैं, और इस दिव्य पौधे को कुछ नहीं समझते। हालाँकि लोगों को कृत्रिम दवाओं के साथ साथ तुलसी उपचार भी करना चाहिए। जहाँ तुलसी के पत्ते उपलब्ध न हों, वहाँ होम्योपैथी से बनी तुलसी की मदर टिंचर ओसिमम सेंकटम काम में लेना चाहिए। चूंकि तुलसी के पौधे से प्राणवायु आक्सीजन भरपूर मात्रा में निकलता है, इसलिए वायुमण्डल को शुद्ध रखने के लिए हर घर में तुलसी का पौधा लगाना चाहिए।
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