प्रायः हस्तरेखा के प्रारम्भिक जिज्ञासुओं में यह प्रवृत्ति होती है कि वे हाथ के आकार, अंगुलियों के आकार, त्वचा की बनावट तथा अंगूठे की स्थिति आदि के सम्पूर्ण परीक्षण की ओर ध्यान नहीं देते, जो कि बहुत आवश्यक है। वे सीधे रेखाओं और उन पर पाए जाने वाले चिन्हों के सम्बन्ध में अध्ययन करने लगते हैं। थोड़ी-सी दरदशिता से ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह हस्तरेखा विशेषज्ञ के लिए सही तरीका नहीं है। क्योंकि, रेखाओं और हाथ के चिन्हों के प्रभाव का मूल्यांकन, हम जिस हाथ का परीक्षण कर रहे हैं, उस हाथ के आकार आदि के आधार पर ही हो सकता है।
सबसे पहले हम हाथ के सम्बन्ध में कुछ सामान्य बातें बताएंगे, जो इस प्रकार उल्लिखित हैं:
हाथ का आकार
हाथ का आकार प्रायः शरीर के अंगों के अनुपात में ही होता है। किन्तु कभी-कभी समान ऊंचाई व शरीरवाले व्यक्तियों के हाथों में भी अन्तर देखा गया है। जब हाथ का आकार औसत से कुछ बड़ा हो, तब उसे बड़ा हाथ कहते हैं। जब हाथ का आकार औसत से छोटा हो तो उसे छोटा हाथ कहते हैं। जब हाथ की लम्बाई मणिबन्ध से मध्यमा अंगुली की नोंक तक अनुपात से ज्यादा लम्बी हो तो उसे लम्बा हाथ कहते है और जब ज्यादा छोटा हो तो उसे छोटा हाथ कहते है। जब हथेली की चौड़ाई अंगूठे के मूल के अनुपात से ज्यादा हो, तो उसे चौड़ा हाथ कहते हैं।
हाथ का पृष्ठ भाग
हाथ के दो भाग होते हैं। हाथ में जिस तरफ रेखाएं होती हैं उसे भीतरी भाग कहते हैं और दूसरी तरफ के भाग को हाथ का पृष्ठ भाग कहते हैं।
हाथ पर बाल
आमतौर से पुरुषों के हाथ के पीछे (पृष्ठ भाग पर) बाल होते है। कुछ पुरुषों के दूसरे पर्व में और कुछ के पहले पर्व में भी बाल होते हैं।
लम्बी अंगुलियां
हथेली मणिबन्ध से मध्यमा अंगुली के मूल तक फैली होती है। यदि मध्यमा अंगुली मूल हथेली के तीन-चौथाई भाग के बराबर हो तो अंगुलियों का आकार सामान्य समझा जाना चाहिए। यदि मध्यमा अंगुली मूल हथेली के तीन-चौथाई भाग से बड़ी हो तो अंगुलियां लम्बी समझी जानी चाहिए। यदि वे औसत लम्बाई से छोटी हों तो छोटी समझी जानी चाहिए।
लम्बी हथेली
मूल हथेली और अंगुलियों का अनुपात ऊपर बताया जा चुका है। यदि हथेली उससे ज्यादा लम्बी हो तो हथेली को लम्बी कहें। यदि हथेली निर्दिष्ट अनुपात से छोटी हो तो उसे छोटी हथेली कहें।
चौड़ी हथेली
जब हथेली के दोनों भाग चारों अंगुलियों की चौडाई से ज्यादा हो तो उसे चौड़ी हथेली कहते हैं। यदि यह चारों अंगुलियों की चौडाई के बराबर हो तो सामान्य, यदि यह संकरी हो तो, संकरी हथेली होती है। यदि हथेली की चौड़ाई औसत अनुपात से अधिक हो तो उसे भी चौड़ी हथेली कहते है।
ऊंचा और ज्यादा ऊंचा
जब हाथ खोलें तो अंगुलियों की तरफ का भाग ऊपरी भाग कहलाता है और हथेली की तरफ का भाग जो कलाई की तरफ होता है उसे निचला भाग कहते हैं। यदि हृदय-रेखा अपनी सामान्य स्थिति में न हो और वह हथेली के ऊपरी भाग में हो तो उसे ऊंची हथेली कहते है। किन्तु यदि यह रेखा हाथ के निचले भाग में हो तो यह नीची या नीचे की तरफ कहलाती है।
हाथ के विभिन्न आकार
प्राचीन हस्तरेखा विशेषज्ञों ने हाथ के सात प्रकार बताए हैं जो नीचे दिए जा रहे हैं:
1. सामान्य हाथ
यह हाथ देखने में खुरदरा व गंवारू होता है। इसकी हथेली मोटी, अंगुलियां छोटी व मोटी और नाखून भी छोटे होते है। ऐसे हाथ में केवल तीन मुख्य रेखाएं-जीवन, शीर्ष व हृदय-रेखा ही होती है। ऐसे हाथ में शीर्ष-रेखा, साधारणतया छोटी होती है। यह सबसे निम्न श्रेणी का हाथ समझा जाता है।
सामान्य हाथ के गुणधर्म:
यदि आप एक सामान्य हाथ का निरीक्षण कर रहे हो. जिसकी हथेली मोटी और भारी हो, छूने में खुरदरा और भद्दा लगे, छोटी छोटी अंगुलियां और अंगूठे का पहला पर्व भारी हो तो ऐसे हाथ वाले व्यक्ति से आप क्या बुद्धिमत्ता या विशेषता की आशा कर सकते हैं! ऐसे मनुष्य में पशु-प्रवृत्ति अधिक होती है, और यह क्रोध आने पर क्रूर-व्यवहार भी कर सकता है।
2. सूच्याकार हाथ
यह हाथ न बड़ा होता है और न छोटा। यह मध्यम आकार का हाथ होता है। यह साधारणतया मुलायम होता है। अंगुलियां अन्त में नुकीली होती हैं, किन्तु दार्शनिक हाथ की तरह नुकीली नहीं होती। नाखून लम्बे होते हैं। कुछ लोग इसे कलाकार का हाथ भी कहते हैं, क्योंकि ऐसे हाथवाले व्यक्ति की प्रवृत्ति गायन, अभिनय, चित्रकला आदि की ओर अधिक होती है। अंगुलियों का आखिरी भाग सूच्चाकार होने के कारण इसे सूच्चाकार हाथ कहते हैं।
सूच्याकार हाथ के गुणधर्म:
सूच्याकार हाथ की अंगुलियां अन्त की ओर धीरे-धीरे पतली होती जाती हैं, इसी से इसे सूच्याकार हाथ कहते हैं। वे प्रारम्भ में पूरी होती है और अन्त में सूच्याकार हो जाती है। यह हाथ मध्यम श्रेणी का होता है। न दार्शनिक हाथ की तरह बड़ा और न शान्तिनिष्ठ हाथ की तरह छोटा। सूच्याकार हाथवाले व्यक्ति तर्क व कारण की अपेक्षा प्रभाव तथा सहज ज्ञान से अधिक प्रेरित होते है। ये त्वरित विचार वाले और चतुर होते हैं । किन्तु उनमें, उन्हें प्राप्त करने के लिए अपेक्षित, निरन्तर श्रम व सहनशक्ति का अभाव होता है। कला की ओर उनका विशेष झुकाव होता है, पर कलानिपुणता की योग्यता के बजाय ये उन कलाओं की ओर विशेष अनुरक्त होते है जो उन्हें सुन्दर और उनके आंख-कान आदि को रूचिकर लगें। इनमें पसन्द और नापसंद का वेग भी प्रबल होता है। वे जल्दी ही उत्तेजित हो जाते है, पर उनकी यह उत्तेजना अधिक देर तक नहीं टिकती।
3. दार्शनिक हाथ
यह हाथ लम्बा पर नुकीला होता है। नाखून भी लम्बे व नुकीले वा अर्ध नुकीले होते हैं। अंगुलियों की गांठें उन्नत और पूरी तरह उभरी होती हैं।
दार्शनिक हाथ के गुणधर्म:
यह हाथ सामान्यतया लम्बा होता है तथा मांस के बजाय इसमें हड्डियों अधिकता होती है । अंगुलियां लम्बी व नुकीली होती हैं और इसके जोड़ अच्छे फैले हुए होते हैं। नाखून भी लम्बे और दीर्घाकार होते हैं। ऐसे हाथ वाले व्यक्ति तीक्ष्ण बुद्धि वाले, विचारवान, ज्ञानी और रहस्यवाद के प्रति अभिमुख होते हैं । किन्तु ऐसे व्यक्ति रुपया कमाने और धन एकत्रित करने में अक्षम होते हैं। इन्हें सांसारिक वस्तुओं से बहुत थोड़ा मोह होता है। ऐसे हाथ में अच्छी धनरेखा (वैभव रेखा) का भी कोई महत्त्व नहीं होता। ऐसे हाथ वाले व्यक्ति धन के प्रति अधिक अनुरक्त नहीं होते। दार्शनिक या शान्तिनिष्ठ हाथ पर लम्बी धन रेखा वाले व्यक्ति के बजाय तो वर्गाकार हाथ में छोटी धनरेखा वाला व्यक्ति ही अधिक धन प्राप्त कर सकता है।
4. शान्तिनिष्ठ हाथ
यह दुबला और पतला हाथ होता है। यह हाथ दिखने में कोमल तथा आकर्षक होता है। अंगुलियां क्षीण और सूच्चाकार तथा नाखून दीर्घाकार होते हैं।
शान्तिनिष्ठ हाथ के गुणधर्म:
दार्शनिक हाथ वाले व्यक्ति के समान शान्तिनिष्ठ हाथ वाले व्यक्ति भी बहुत उपयोगी दृष्टिकोण वाले नहीं होते और शारीरिक व बौद्धिक प्रयत्न नहीं कर पाते। रुपया कमाना उनके स्वभाव के प्रतिकूल होता है। शान्तिनिष्ठ हाथ बहुत सुन्दर होता है। यह लम्बा, पतला और बहुत मुलायम होता है। इसकी अंगुलियां पतली और अन्त में नुकीली होती है। नाखून दार्शनिक हाथ की तरह दीर्घाकार किन्तु छोटे होते हैं । पूर्णतया शान्तिनिष्ठ हाथ बहुत ही कम होते हैं। वे व्यावहारिकता के बजाय अधिक काल्पनिक होते हैं। वे व्यवहार कुशल बिल्कुल नहीं होते और इनमें नियमबद्धता और यथार्थता की कमी होती है। दैनिक कार्य के बजाय गीत के साज और मधुर स्वर लहरी इन्हें अधिक रुचिकर लगती है। वे वास्तविक दुनिया के बजाय स्वप्नलोक में अधिक विचरण करते है। इनमें अन्तर्ज्ञान और धार्मिक भावना की प्रधानता होती है। धर्म की मूल व गहन भावना के बजाय इन्हें धार्मिक प्रवृत्तियां अधिक अच्छी लगती है। वे शान्त और गम्भीर होते है। वैभव और सम्मान ऐसे व्यक्तियों के अनुकूल नहीं पड़ता। वे सम्मोहन विज्ञान के अच्छे स्रोत तथा इस क्षेत्र में दूसरों से श्रेष्ठ होते हैं। वर्गाकार हाथ की व्यावहारिक कुशलता के बजाय ऐसे हाथ में शीर्ष रेखा काल्पनिकता अधिक दिखाती है।
दार्शनिक और शान्तिनिष्ठ हाथ शारीरिक गुण-दोषों की दृष्टि से कई बातों में समान होते हैं। इसलिए दोनों हाथों में एक-दूसरे से असमानता बताने के लिए दोनों हाथों के अन्तर बताते है जिससे दोनों हाथों के बारे में सुगमता से समझा जा सके।
दार्शनिक हाथ बड़ा और फैला होता है. जबकि शान्तिनिष्ठ हाथ छोटा व पतला होता है। पहले में हड्डियां निकली होती है दूसरे में नहीं। दार्शनिक हाथ में अंगुठा बड़ा होता है. शान्तिनिष्ठ हाथ में नहीं। पहले में अंगुलियां लम्बी और उनके जोड़ों में गांठें होती है जबकि दूसरे में अंगुलियां चिकनी और नाखून नुकीले होते हैं।
5. चपटा हाथ
जब अंगुलियों की पहली पर्व बाहर फैली हुई हो व प्रलेपनी की तरह चौड़ी हो तो ऐसी अंगुलियों वाले हाथ को चपटा हाथ कहते हैं। हथेली भी अंगुलियों के मूल या कलाई के पास चौड़ी होती है।
चपटा हाथ के गुणधर्म:
चपटे हाथ के सम्बन्ध में - यह हाथ एक तरफ ज्यादा चौड़ा होता है और दूसरी तरफ अधिक संकरा। जब अंगुलियों के मूल की तरफ से हथेली की चौड़ाई ज्यादा हो और कलाई की तरफ से कम, तो ऐसा हाथ प्रलेपनी जैसा हाथ कहलाता है। अथवा जब कलाई की तरफ से हथेली की चौड़ाई अंगुलियों के मूल के पास की अपेक्षा अधिक हो तब भी चपटा हाथ ही कहलाता है। पूर्ण रूप से चपटा हाथ होने के लिए यह आवश्यक है कि अंगुलियों के ऊपरी भाग भी प्रलेपनी जैसे हों।
जब अंगुलियों के मूल भाग की तरफ से हथेली की चौड़ाई कलाई के तरफ की अपेक्षा ज्यादा हो तो जातक उपरोक्त में वर्णित हाथ की अपेक्षा अधिक व्यवहार-कुशल होता है।
चपटे (प्रलेपनी) हाथ के कुछ ऐसे गुण-दोष बताये गये हैं जो उपरोक्त दोनों प्रकार के हाथों में पाए जाते है। जब हाथ कठोर और सख्त हो तो जातक में फुर्ती और जोश रहता है, किन्तु साथ ही उत्तेजना भी। वह निरन्तर कार्यशील और परिश्रमी बना रहता है और सफल भी होता है। किन्तु कठोर और सख्त हाथ के बजाय वह मांसल और कोमल हो तो जातक में अध्यवसाय की कमी होती है। चपटे हाथ वाले व्यक्ति स्वतंत्रता प्रेमी होते हैं और उनमें आविष्कार करने की विशेष योग्यता होती है। ऐसे हाथ प्राय: बड़े और सुडौल होते हैं। अंगुलियां लम्बी तथा भरी-पूरी होती हैं। वे पुरानी परिपाटी पर चलना पसन्द नहीं करते बल्कि नए विचारों को कार्यान्वित करते है। वे कार्यशील व्यक्ति होते हैं, किन्तु बहुत अधिक स्वतंत्र दृष्टिकोण होने के कारण वे स्वभाव से मिलनसार, पर चिड़चिड़े भी होते हैं।
6. वर्गाकार हाथ
वर्गाकार हाथ में अंगुलियों को छोड़कर हथेली की लम्बाई व चौड़ाई कम या ज्यादा बराबर-सी होती है। अंगुलियां भी नोक पर न ज्यादा चौड़ी और न ज्यादा सूच्याकार होती है।
वर्गाकार हाथ के गुणधर्म:
वर्गाकार हाथ वाले व्यक्तियों का मुख्य लक्षण यह है कि इनकी हथेली वर्गाकार होती है। दूसरे शब्दों में यह समझें कि हथेली की लम्बाई व चौड़ाई करीब करीब बराबर होती है। अंगुलियां भी अन्त में प्रायः वर्गाकार होती हैं। सांसारिक दष्टिकोण से ऐसा हाथ सबसे ज्यादा व्यवहार कुशल होता है। वर्गाकार हाथ वाले व्यक्ति में सामान्य ज्ञान की प्रबलता होती है और कठिन परिश्रम तथा अध्यवसाय से अपना उद्देश्य व सफलता प्राप्त कर लेते हैं। वे "सफलता में 99% पसीना (उद्यम) और एक प्रतिशत भावना" की कहावत को पूर्णतया चरितार्थ करते हैं। यदि वर्गाकार हाथ में वर्गाकार अंगुलियां हो तो व्यवहारिक दृष्टिकोण बढ़ जाता है। ऐसे हाथ वाले व्यक्ति और भी अधिक सांसारिक होते है और इसलिए परिश्रमी भी होते हैं। किन्तु यदि वर्गाकार हाथ में लम्बी अंगुलियां हों तो वे चित्त के मानसिक उत्थान को प्रकट करती हैं। ऐसा व्यक्ति स्वयं के विचारों को प्रस्तुत करता है और उन्हें सफलतापूर्वक कार्य रूप में परिणत करता है। लम्बी अंगुलियों वाला व्यक्ति छोटी अंगुली वालों की अपेक्षा अधिक तर्कशील और विचारवान होता है। यदि वर्गाकार हाथ की अंगुलियां लम्बी होने के अलावा गांठदार भी हों, तो ऐसे हाथ वाला व्यक्ति हरेक बात का आदि-अन्त समझकर ही उसमें आगे बढ़ता है।
यदि वर्गाकार हाथ में शान्तिनिष्ठ हाथ की जैसी अंगुलियां हो तो उसकी उपयोगिता और व्यावहारिकता समाप्त हो जाती है। ऐसे हाथ वाला व्यक्ति किसी भी कार्य को बुद्धिमत्तापूर्वक आरम्भ तो कर सकता है किन्तु अध्यवसाय की कमी के कारण बीच में ही अधूरा छोड़ देगा। वर्गाकार हाथ वाले व्यक्ति की हथेली यदि सूच्याकार हाथ जैसी हो तो वह कला-संगीत या इसी प्रकार के कार्यों में सफलता पा सकता है। किन्तु यदि वर्गाकार हाथ में चपटे हाथ जैसी अंगुलियां हों तो संयुक्त गुणस्वरूप जातक कोई उपयोगी अविष्कार कर सकता है।
7. मिश्रित हाथ
ऊपर छह प्रकार के हाथ बतलाए गए हैं- सामान्य, सूच्याकार, दार्शनिक, शान्तिनिष्ठ, चपटा और वर्गाकार हाथ। जब उपरोक्त छह प्रकार के हाथों में से कोई हाथ किसी से भी मेल नहीं खाता. बल्कि उसमें कई प्रकार का मिश्रण होता है तो उसे मिश्रित हाथ कहते हैं।
मिश्रित हाथ के गुणधर्म:
जब हम किसी व्यक्ति, मित्र या परिचित के हाथ की परीक्षा करते हैं, तो ऐसा बहुत ही कम होता है कि उसमें किसी एक प्रकार के हाथ के ही गुण-दोष लक्षित हों। हाथों में बहुत कुछ, गुण-दोष एक प्रकार के हाथ के होते हैं तो अन्य गुण-दोष दूसरे प्रकार के हाथों के भी होते हैं। ऐसे हाथ मिश्रित हाथ कहलाते हैं। कभी-कभी हाथ का आकार एक प्रकार के हाथ से, हथेली दुसरे प्रकार के हाथ से, और अंगुलियां तीसरे प्रकार के हाथ से मिलती हैं। चारों अंगुलियां भी एक प्रकार की नहीं हो सकती। वे भी एक-दो या अधिक प्रकार की हो सकती है। जिन हाथ के गुण इनमें अधिक मिलें, उसी के गुणों की प्रमुखता होती है।
निष्कर्ष
हाथ परीक्षण के समय इस प्रकार की सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए कि जातक में किस प्रकार के गुण-दोष किस मात्रा में और कितनी प्रमुखता से विद्यमान हैं। इन सबके प्रभावों का समुचित विवेचन करके ही किसी परिणाम पर पहुंचना चाहिए। हाथ के आकार का परीक्षण करते समय हमें स्त्री और पुरुष के हाथ का अन्तर भी ध्यान में रखना चाहिए। स्त्री का हाथ छोटा और अधिक सुन्दर होता है। वह अधिक लचीला और मांसल होता है । इस तरह पुरुषों के वर्गाकार और चपटे हाथों में पाए जाने वाले बहुत-से गुण स्त्रियों के हाथों में कम मात्रा में मिलेंगे। किन्तु दूसरी ओर, स्त्री और पुरुष के दो शान्तिनिष्ठ हाथों में, स्त्री अपनी स्वाभाविक भावात्मकता, कोमलता तथा जन-प्रेरणा के कारण पुरुष से अधिक धार्मिक व शान्तिनिष्ठ होगी। कभी-कभी हमें जन्म से ही मूर्ख व्यक्ति के हाथ देखने का वास्ता पड़ जाता है। उसकी हथेली सामान्यतया पतली, लम्बी और इतनी कोमल होती है कि यदि आप उसे अपने हाथ भींचे या अपनी अंगुलियों से दबाएं तो वह सामना करने में थोड़ा सा भी समर्थ नहीं होती। हाथ की कमजोर मांसपेशियां दुर्बल मस्तिष्क का सूचक होती हैं और इनकी अंगुलियां भी चिकनी और छोटी होती है।
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